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AIMIM प्रमुख ओवैसी व बसपा प्रमुख मायावती का फाइल फोटो। Photograph: (सोशल मीडिया)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। खिचड़ी अभी पूरी तरह पकी नहीं है या तो हांडी की आंच कमजोर है या फिर दाल भी पूरी तरह नहीं गली, लेकिन इतना तय है कि बिहार में AIMIM ने यदि तीन सीटों पर बसपा को बिना शर्त समर्थन दे दिया है तो अपने लिए उत्तर प्रदेश की राजनीति में संभावनाओं के दरवाजे भी खोल लिए हैं। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती गुरुवार से बिहार में अपनी रैलियों की शुरुआत करने जा रही हैं तो उनके निशाने पर वह तीन सीटें भी होंगी, जिन पर AIMIM ने अपने उम्मीदवारों को न उतारकर बसपा को समर्थन दे रखा है। बिहार के इस औवेसी फैक्टर का एसिड टेस्ट हो रहा है तो यूपी में इसका परीक्षण हो सकता है क्योंकि सपा के पीडीए किले में इसके जरिये ही सेंधमारी की जा सकती है।
यूपी में अब तक नहीं हुआ है BSP और AIMIM का गठबंधन
बिहार में बहुजन समाज पार्टी ने सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। बसपा प्रमुख मायावती ने पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि वह अकेले ही चुनाव लड़ेंगी। हालांकि 2020 का चुनाव BSP और AIMIM ने गठबंधन कर लड़ा था, जिसका लाभ AIMIM को हुआ था और उसने पांच सीटों पर जीत हासिल की थी। यूपी में AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अभी तक बसपा से गठबंधन नहीं किया है लेकिन इस बार यह उम्मीद इसलिए बढ़ जाती है कि क्योंकि बसपा ने 2027 के चुनाव के लिए वही फार्मूला तय किया है जो उसने 2007 में किया था और बहुमत हासिल किया था। यानी कि सभी जातियों के थोड़े-थोड़े वोट हासिल करके मुस्लिम मतों में सेंधमारी करना।
बिहार में BSP को वोट प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद
बसपा प्रमुख मायावती बिहार चुनाव के लिए इसलिए भी गंभीर हैं क्योंकि पार्टी के राष्ट्रीय स्वरूप का दर्जा बनाए रखने के लिए वोट प्रतिशत बढ़ना जरूरी है। सभी सीटों पर प्रत्याशी लड़ाने का निर्णय भी इसी रणनीति का हिस्सा है। इसीलिए चुनाव की पूरी जिम्मेदारी उन्होंने अपने भतीजे और नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आनंद को दे रखी है। जहां तक सीटों की बात है तो उसकी उम्मीदें यूपी से सटे जिलों पर टिकी हैं। बिहार के 19 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जो यूपी से सटे हैं। मायावती अपनी रैलियों में इन क्षेत्रों को जमकर निशाना बनाएंगी।
यूपी में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं मायावती
वैसे तो मान्यवर कांशीराम के परिनिर्माण दिवस पर लखनऊ में आयोजित विशाल रैली में मायावती यह घोषणा कर चुकी हैं लेकिन राजनीति में कुछ भी अंतिम सत्य नहीं होता। BSP और AIMIM का फैक्टर यदि बिहार में कुछ कर दिखाता है तो इस पर विचार शुरू हो जाएगा। AIMIM प्रमुख ने बसपा के लिए जो साफ्ट कार्नर अपनाया है, यह एक तरह से भविष्य की राजनीति का आमंत्रण भी है। 2012 से बसपा के वोटों का ग्राफ गिरता जा रहा है और मुस्लिम भी उससे छिटक रहे हैं। ऐसे में उसे भी एक ऐसे दल की दरकार है, जो मुस्लिम वोटो में बंटवारा कराए। AIMIM की बात करें तो यूपी में वह अब तक सिर्फ छोटे दलों के साथ ही गठबंधन करता रहा है। उसे भी किसी बड़े दल के सहारे की जरूरत है।
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