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भूपेन्द्र सिंह चौधरी ने 2022 में प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली थी। फाइल फोटो। Photograph: (सोशल मीडिया)
लखनऊ, हरिशंकर मिश्र। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने बड़ी आसानी से जगदीश विश्वकर्मा के रूप में प्रदेश अध्यक्ष का नाम भले ही तय कर लिया है, लेकिन उत्तर प्रदेश में इस पद पर कौन बैठेगा?, यह इंतजार लंबा होता जा रहा है। इस साल का 10वां महीना शुरू होने के बाद यहां प्रदेश अध्यक्ष को लेकर सिर्फ कयासों का दौर है। यह तो तय है कि 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए ही इस पद के लिए किसी नाम का चयन किया जाएगा, लेकिन वह कौन होगा?, यह यक्ष प्रश्न है और प्रदेश में किसी भी नेता के पास फिलहाल इसका जवाब नहीं। यूपी में अध्यक्ष तय होते ही राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर भी मुहर लग जाएगी।
खत्म हो चुका है भूपेन्द्र सिंह चौधरी का कार्यकाल
भाजपा ने 25 अगस्त, 2022 को तत्कालीन पंचायत राज्य मंत्री भूपेन्द्र सिंह चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। उनका कार्यकाल अगस्त 2025 में समाप्त हो चुका है। चौधरी जाट समुदाय से आते थे और बीते लोकसभा चुनाव में यूपी पश्चिम में जाट मतों के महत्व को देखते हुए उन्हें इस पद पर बैठाया गया था, लेकिन विधानसभा चुनावों की जातीय गणित का आधार अलग होता है, इसलिए अब नए नाम पर मुहर लगनी है। वैसे भाजपा संविधान के अनुसार कोई भी नेता इस पद पर दो कार्यकाल तक रह सकता है। भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष के दावेदार कई नेता हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी के पीडीए नैरेटिव को देखते हुए इस बात की संभावना अधिक है कि पिछड़े वर्ग के किसी नेता को ही सूबे की बागडोर सौंपी जाए। भाजपा के सत्ता में आने में पिछड़े मतों की बड़ी भूमिका रही है, इसलिए वह हर कीमत पर इस वर्ग को अपने से जोड़े रखना चाहती है।
जटिल प्रश्न, किसे सौंपी जाए कमान
ओबीसी में किसे कमान सौंपी जाए, यह पार्टी के लिए तोड़ा जटिल प्रश्न है। जिन नेताओं के नामों की चर्चा है, उनमें उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह, जल शक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह, प्रदेश महामंत्री अमरपाल मौर्य, केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा और सांसद बाबू राम निषाद प्रमुख हैं। इनमें केशव प्रसाद मौर्य और स्वतंत्र देव सिंह पहले भी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। चूंकि केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में ही 2017 में भाजपा को उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत हासिल हुआ था, इसलिए पार्टी के कई बड़े नेता उन्हें ही अध्यक्ष बनाने के पक्षधर हैं। उनके पास संगठन का भी बड़ा अनुभव है और वह कुश्वाहा, मौर्य और शाक्य मतों पर खासा प्रभाव भी रखते हैं।
प्रदेश अध्यक्ष तय होने के बाद तय होगा राष्ट्रीय अध्यक्ष
भाजपा में पिछले साल संगठनात्मक चुनाव शुरू हुए थे और यह माना गया था कि इसके खत्म होते ही प्रदेश अध्यक्ष चुन लिया जाएगा। इसके लिए जरूरी 70 जिलों में अध्यक्ष चुना भी जा चुका है, लेकिन अभी तक प्रदेश अध्यक्ष पर आम राय नहीं दिख रही है। यह भी संभावना है कि भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के प्रदेश अध्यक्ष को लेकर जातीय समीकरण बैठाए। उदाहरण के लिये यदि राष्ट्रीय स्तर पर किसी सवर्ण को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी जाती है, तो यूपी में ओबीसी को दी जाएगी। यदि राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी को बैठाया गया, तो यूपी में किसी और को यह जिम्मा दिया जा सकता है। संभवतः यही कारण है कि कोरम पूरा होने के बाद भी राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम नहीं तय किया गया है।
ओबीसी नहीं तो कौन?
इस पहलू पर भी विचार किया जाना जरूरी है। एक संभावना यह भी है कि किसी दलित को अध्यक्ष बना दिया जाए। दलित चेहरों पर निगाह डालें तो पूर्व सांसद विनोद सोनकर का नाम हो सकता है। किसी ब्राहमण को यदि चुना गया तो पूर्व उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और गोविंद नारायण शुक्ल का नाम हो सकता है। गोविंद वर्तमान में महामंत्री भी हैं और उन्हें भी संगठन का अच्छा अनुभव है। यह तय है कि भाजपा पार्टी से लगातार जुड़े नेताओं को ही इस पद के लिये वरीयता देगी। दूसरे दलों से आए नेताओं के नाम पर विचार नहीं किया जाएगा।
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