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पीडीए की पॉलिटिक्स में कहां चूक कर गए अखिलेश Photograph: (YBN)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने ही एक बयान को लेकर न सिर्फ विवादों में फंस गए हैं, बल्कि इसे उनकी एक बड़ी राजनीतिक चूक भी माना जा रहा है। अयोध्या में हुए दीपोत्सव को लेकर उन्होंने बयान दिया था कि वहां हर साल दीयों-मोमबत्ती की जगह क्रिसमस की तर्ज पर लाइट की व्यवस्था की जानी चाहिए थी। इसको लेकर भाजपा को उन पर हमलावर होने का मौका मिल गया क्योंकि दीयों की खरीद से उत्तर प्रदेश के प्रजापति समाज को लाभ होता है। प्रजापति पिछड़ा वर्ग से आते हैं और अखिलेश के इस बयान ने खुद उनके ही बनाए पीडीए नैरेटिव को धक्का पहुंचाया है। भाजपा से भला इस मौके पर चूक कहां से होती इसीलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद तक उन पर हमलावर हो गए हैं।
इस बार अयोध्या में जलाए गए 26 लाख दीये
अयोध्या में दीपोत्सव के बहाने योगी सरकार सनातन की धर्मध्वजा को जन मानस के बीच ले जाती रही है। यही वजह है कि साल दर साल यह आयोजन और भव्य होता जा रहा है। इस वर्ष ही राम की पैड़ी पर 26 लाख से अधिक दीये जलाए गए। यह कार्यक्रम लोक आस्था से तो जुड़ता ही है, इसके राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। योगी सरकार ने एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत OBC और SC-ST को साधने की मुहिम शुरू की थी जिसका 2022 के विधानसभा चुनाव में उसे लाभ भी मिला। इसी योजना के तहत प्रजापति और कुम्हारों को उनके उत्पादों का लाभ मिलना शुरू हुआ था। इसीलिए अखिलेश का बयान आते ही भाजपा ने उसे प्रजापतियों और कुम्हारों के आत्म सम्मान से जोड़ना शुरू कर दिया।
डैमेज कंट्रोल की कोशिश ताकि राजनीतिक नुकसान न पहुंचे
बहरहाल अखिलेश यादव ने जल्द ही महसूस कर लिया कि राजनीतिक रणनीति के रूप में उनसे एक बड़ी भूल हो गई है। इसीलिये उन्होंने तत्काल ही डैमैज कंट्रोल की कोशिश की और यह घोषणा की कि उनकी सरकार आने पर सरकार प्रजापति समाज से करोड़ों रुपये के दीये खरीदेगी। इस समाज को इतना आर्थिक लाभ होगा कि उनके घर पर महीनों दीवाली रहे। उन्होंने अपने बयान को राजनीतिक मोड़ भी दिया कि सरकार दीपोत्सव के ठेकों में उत्तर प्रदेश के लोगों की उपेक्षा कर रही है। हम चाहते हैं कि दीया भी उत्तर प्रदेश का हो, बाती भी तेल भी और रोशनी भी। सरकार उत्तर प्रदेश के लोगों की उपेक्षा करके दीया तले अंधेरा करने का पाप न करे। ऐसा करना उनकी मजबूरी भी थी क्योंकि पीडीए के हितों के खिलाफ जाना सपा का राजनीतिक रूप से नुकसान पहुंचा सकता था।
पीडीए नैरेटिव को नुकसान पहुंचा सकता था अखिलेश का बयान
प्रदेश में यदि प्रजापति समाज की राजनीतिक भागीदारी की बात करें तो उनकी संख्या काफी है और कुछ सीटों पर उनके मत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। सपा हर चुनाव में प्रजापति समाज को एससी वर्ग में शामिल करने की मांग उठाती रही है और अपनी सरकार में इस आशय का प्रस्ताव भी केंद्र सरकार को भेज चुकी है। प्रजापति समाज का एक बड़ा हिस्सा सपा से जुड़ाव भी रखता है, हालांकि भाजपा भी इस समाज को अपने से जुड़ा बताती है। सपा के पीडीए में पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक को एकजुट करने की बात है। पिछड़ों में यादवों का उसे लगभग पूरा सपोर्ट मिलता रहा है, कुर्मी मतों में भी उसकी हिस्सेदारी है लेकिन अन्य पिछड़ी जातियों के समर्थन की उसे दरकार है। अखिलेश के बयान का असर अन्य पिछड़ों में शामिल जातियों पर ही हो सकता था, इसलिए उन्होंने अपने बयान को दूसरी तरफ मोड़ने में देरी नहीं की।
योगी समेत अन्य भाजपा नेता हुए हमलावर
फिर भी तीर कमान से निकल चुका है। भाजपा ने इसे भुनाना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीखा तंज करते हुए कहा कि मिट्टी को लेकर कुम्हारों की पीड़ा को अगर बबुआ न समझा होता तो वह यह बचकाना बयान नहीं देते। उन्हें नहीं मालूम है कि दो करोड़ लोग मिट्टी के दीयों से लेकर बर्तन बनाने के कारोबार में जुटे हुए हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि देवी-देवताओं से जुड़े कार्यक्रमों को लेकर सपा की दृष्टि नकारात्मक है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने भी अखिलेश पर निशाना साधा कि जो व्यक्ति दीपावली के दीयों को पैसे की बर्बादी कहे वह सनातन धर्म को समझ ही नहीं सकता। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि अखिलेश यादव को माफी मांगनी चाहिये क्योंकि उनके बयान से हिंदू भावनाएं आहत हुई हैं। उन्हें प्रजापति समाज से भी माफी मांगनी चाहिए क्योंकि ऐसी सोच उऩके रोजगार पर भी चोट है।
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