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Lucknow News : उबले सिंघाड़ों से कीजिए गुलाबी मौसम का स्वागत

अगर आप लज्जत के मुरीद हैं और साथ में लखनवी भी हैं तो आपके लिए विकल्पों के असंख्य द्वार खुले हैं। मसलन मक्खन मलाई, मूंगफली, गोभी के पराठे। इनमें एक चीज ऐसी भी है, उसका गुलाबी दिनों को जायके से भरने में भी बड़ा हाथ है। वो हैं उबले सिंघाड़े। 

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Deepak Yadav
boiled water chestnuts

डालीगंज चौराहे पर उबला सिंघाड़ा बेचते हिमांशु और राहुल Photograph: (YBN)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता।  ठंड ने दस्तक दे दी है। सुस्त सुबहें और मुलायम दोपहरों के दिन। धूप सेंकती छतें और जल्दी ढल जाने वाली शामों के दिन। हमारी दिनचर्या भी इस नए मौसमी निजाम के साथ सामंजस्य बिठाने लगती है। कुछ खाने-पीने की चीजें हट जाती हैं तो कुछ नई जुड़ती हैं। अगर आप लज्जत के मुरीद हैं और साथ में लखनवी भी हैं तो आपके लिए विकल्पों के असंख्य द्वार खुले हैं। मसलन मक्खन मलाई, मूंगफली, गोभी के पराठे। इनमें एक चीज ऐसी भी है, जिसकी चर्चा तो ज्यादा नहीं होती, लेकिन इस गुलाबी दिनों को जायके से भरने में उसका भी बड़ा हाथ है। वो हैं उबले सिंघाड़े। 

बेहद कम दिनों का सीजन

जी हां, उबले सिंघाड़ों का नाम आते ही दाढ़ गीली होने लगती है। फिल्में बताती हैं कि पहले आप का जुमला लखनवी अदब की पहचान है। हालांकि कुछ चीजों में हम लखनवी पहले हम का नियम भी अपना लेते हैं। उनमें से एक हैं उबले सिंघाड़े। बेहद कम दिनों का सीजन होता है इनका, इसलिए जब भी लोगों को आसपास ये बिकते दिख जाते हैं, लोग इनका स्वाद लिए बगैर नहीं रहते। मुहल्लों में ठेले वाला सिंघाड़े लेकर आया नहीं कि लोग उसे घेर लेते हैं। चटनी के साथ पत्तल में उबले सिंघाड़े चट करते चटोरों को देखकर बाकी लोगों के मुंह में भी पानी आ जाता है। 

प्रतिदिन दो हजार तक की कमाई

इन दिनों डालीगंज पुल के पास ऐसे ठेलों की कतार सज जाती है। लोगों की भीड़ इन्हें घेरे रहती है। सबको पहले चाहिए। यहां पहले आप का नियम नहीं चलता। यहीं पर ठेला लगाने वाले हिमांशु कश्यप ग्राहकों को सौदा देते हुए बताते हैं कि कुछ दिनों की कमाई है, इसका पूरा फायदा उठा लेना है। फरवरी तक सीजन चलता है। इसके बाद व्रत का आटा बनाने के लिए सिंघाड़ों का इस्तेमाल होता है। 50 रुपये पाव और 160 रुपये किलो बिक्री होती है। सुबह से लेकर देर शाम तक करीब 15 सौ से दो हजार रुपये की कमाई हो जाती है।

40 किलो की बोरी 1200 से 1500 रुपये तक

डालीगंज के राहुल भी यही काम करते हैं। बताते हैं, सीतापुर रोड गल्ला मंडी या दुबग्गा से कच्चे सिंघाड़े लेकर आते हैं। 40 किलो की बोरी 12 सौ से 15 सौ रुपये में मिलती है। वहां मंडियों में कच्चा माल सीतापुर, मलिहाबाद, काकोरी और बाराबंकी से आता है। राहुल से पूछा कि उबले सिंघाड़े का सीजन इतने कम दिनों का होता है, बाकी पूरे साल क्या करते हैं। कहते हैं, बाकी साल मौसमी फल बेचते हैं, लेकिन इन दिनों में ठीक ठाक कमाई हो जाती है।

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उबला सिंघाड़ा पोषक तत्वों का भंडार

न्यूट्रीशनिस्ट रश्मि कहती हैं कि सिंघाड़ा एक सुपरफूड है। इसलिए इसे अपनी डाइट में जरूर शामिल करें। इसमें फाइबर, मैग्नीशियम, पोटैशियम, कैल्शियम जैसे कई पोषक तत्व होते हैं। हालांकि इसे कच्चा खाने के बजाए हल्का उबालकर या रोस्ट कर के खाएं। सिंघाड़े में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर को फ्री रेडिकल्स से बचाते हैं और स्किन हेल्थ का भी ध्यान रखते हैं।

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