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UPRVUP Photograph: (Social Media)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। यूपी में बिजली विभाग इन दिनों चर्चा में है। विद्युत संबंधी शिकायतों के निस्तारण में हीलाहवाली पर पिछले चार दिन से विभाग में घमासान मचा है। उपभोक्ताओं के साथ खुद ऊर्जा मंत्री भी अधिकारियों की लचर कार्यशैली से नाराज हैं। कई बार चेतावनी देने के बाद भी नजीता ढाक के तीन पात है। इस बीच विद्युत उपभोक्ता परिषद ने ऊर्जा विभाग में जारी घमासान की असली वजह उजागर करते हुए कहा कि बिजली दरों में और कनेक्शन शुल्क में प्रस्तावित वृद्धि, रोस्टर के आधार पर विद्युत आपूर्ति पर ऊर्जा मंत्री चुप रहे। अचानक उनकी चुप्पी विस्फोटक बन गई।
निजीकरण की राह में आई बड़ी अड़चन
परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि बिजली विभाग में घमासान की असली वजह निजीकरण है। उन्होंने कहा कि कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्कॉम के निजीकरण के मसौदे में नियामक आयोग ने गंभीर कमियां निकाली हैं। सीएजी ने पावर कारपोरेशन से मसौदा और दस्तावेज तलब किए। इससे निजीकरण पर अड़े ऊर्जा मंत्री एके शर्मा को बड़ा झटका लगा है। ऊर्जा मंत्री को यह नागवार गुजरा कि निजीकरण के दस्तावेज में इतनी खामियां थीं कि कैग और नियामक आयोग को बीच में हस्तक्षेप करना पड़ा। ऐसे में अब आने वाले समय में बिजली कंपनियों का निजीकरण आसान नहीं होगा।
120 दिन की डेडलाइन खत्म
अवधेश वर्मा ने कहा कि 25 मार्च को आर्डर जारी करके निजीकरण का मसौदा 120 दिन में कैबिनेट से मंजूर कराने की तैयारी थी। यह डेडलाइन आरएफपी डॉक्यूमेंट में तय की गई थी। ऊर्जा मंत्री ने 23 जुलाई को शक्ति भवन में अधिकारियों को बिजली कटौती, भ्रष्टाचार और मनमानी करने पर फटकार लगाई। 24 जुलाई को 120 दिन की डेडलाइन पूरी हो गई। कैबिनेट से मंजूरी तो दूर निजीकरण का मसौदा तक तैयार होने से ऊर्जा मंत्री भड़के हुए हैं। उपभोक्ताओं के नाम पर नैरेटिव सेट करना ठीक नहीं है। वर्मा ने कहा कि अगर ऊर्जा मंत्री को सच में उपभोक्ताओं की चिंता होती, तो तीन साल पहले ही बिजली से जुड़ी समस्याओं पर कार्रवाई करते। अब चिंता जताना सिर्फ दिखावा है।
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