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Moradabad: जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने किसानो को गन्ने की फसल को बीमारी से बचाने के सुझाव दिए

Moradabad: लाल सड़न गन्ने का सबसे भयंकर रोग है जिसे गन्ने का कैंसर भी कहते है, यह रोग कोलेटोट्राइकम फलकेटम नामक फफूंद द्वारा होता है, इस रोग के लक्षण जुलाई-अगस्त माह से दिखाई देना प्रारम्भ होते है,

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Narendra Singh
वाईबीएन

Photograph: (moradabad)

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मुरादाबाद वाईबीएन संवाददाता  वर्तमान समय में कही-कही पर गन्ने की फसल में लाल सड़न रोग की समस्या देखने को मिल रही है, जिसके दृष्टिगत जिला कृषि रक्षा अधिकारी डा0 राजेन्द्रपाल सिंह द्वारा गन्ने के लाल सड़न रोग के नियंत्रण एवं बचाव हेतु सुझाव एवं सलाह दी जा रही है, जिन्हें अपनाकर किसान भाईयों द्वारा गन्ने के लाल सड़न रोग पर प्रभावी नियंत्रण कर फसल में होने वाली क्षति को रोका जा सकता है। 

गन्ने में लाल सड़न वाली बीमारी लगने के बाद पैदावारी पर असर पड़ता है 

 लाल सड़न गन्ने का सबसे भयंकर रोग है जिसे गन्ने का कैंसर भी कहते है, यह रोग कोलेटोट्राइकम फलकेटम नामक फफूंद  द्वारा होता है, इस रोग के लक्षण जुलाई-अगस्त माह से दिखाई देना प्रारम्भ होते है, जो फसल के अन्त तक दिखाई देते हैं। 
लाल सड़ रोग के लक्षण- ग्रसित गन्ने में अगोले की तीसरी से चौथी पत्तियां एक किनारे अथवा दोनों किनारों से सूखना प्रारम्भ हो जाती हैं तथा धीरे-धीरे पूरा अगोला सूख जाता है। गन्ने को लम्बवत् फाड़ने पर इसके तने का गूदा लाल रंग का दिखाई देता है जिसमें सफेद धब्बे दिखाई पड़ते है। फटे हुए भाग में सिरके जैसी गन्ध आती है तथा गन्ना आसानी से बीच से टूट  जाता है, कभी-कभी गन्ने की पत्ती की मध्य शिरा पर लाल रंग के घब्बे पाये जाते हैं जो बाद में पूरी मध्यशिरा को घेर लेते हैं। कभी-कभी भूरे लाल रंग के घब्बे गन्ने की पत्ती पर भी पाये जाते हैं। 

कृषक भाई गन्ने की बुबाई के समय मिट्टी और बोए जाने वाले बीज की जांच आवश्यक करवा लें 

लाल सड़क रोग का प्रसार- गन्ने का लाल सड़ने रोग एक संक्रामक रोगजनक मुख्य रुप से संक्रमिक मिट्टी और बोए गए बीज के माध्यम से फैलता है। किसान रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग प्रयोग करें जैसे सी0ओ0-85, एल0के0-94184 आदि। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गांठों पर लालिमा दिखे तो किसान भाईयों को ऐसे सेट का प्रयोग नहीं करना चाहिए। किसान भाईयों को बुवाई के पूर्वाेपचारित गन्ने के बीज का ही प्रयोग करना चाहिए। रोगग्रस्त पौधे को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए।

फसल को बीमारी से बचाने के लिए करें उचित कीटनाशक दवा का छिड़काब 

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 जिस खेत में रोग लगा है उसकी मेंढ़ बन्दी कर दें ताकि पास के खेत में उस खेत का पानी न जाये। कार्बेडाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 की 1.5 से 2.0 कि0ग्रा0 मात्रा अथवा काॅपर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 2.5 से 3.0 कि0ग्रा0 मात्रा को 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दरे से छिड़काव करें। ट्राइकोडर्मा विरडी की 2.5 से 5.0 कि0ग्रा0 मात्रा प्रति हेक्टेयर का प्रयोग डन्चिग विधि द्वारा करें। कृषि सम्बन्धी किसी भी जानकारी के लिए 
किसान अपने नजदीकी ब्लाक स्तरीय कृषि रक्षा इकाई या जिला कृषि रक्षा कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं l 

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