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नियमों की नहीं,रिश्तों की चली कलम,शिक्षा विभाग में बुलेरो घोटाला,मुरादाबाद में नियमों की उड़ी धज्जियां

मुरादाबाद जिले में जिला विद्यालय निरीक्षक (DIOS) देवेंद्र कुमार पांडेय द्वारा विभागीय कार्यों में एक चपरासी की निजी बुलेरो गाड़ी का इस्तेमाल करवाने का मामला सामने आया है।

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Anupam Singh
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मुरादाबाद, वाईबीएन, संवाददाता। क़लम से जो तालीम का नक़्शा खींचते हैं,आज वही कुर्सियों पर बैठ कर सियासत सींचते हैं। ये कहावत शिक्षा विभाग के तैनात के अधिकारी पर बिल्कुल सटीक बैठती है।जिस शिक्षा विभाग पर देश की भावी पीढ़ियों को गढ़ने की जिम्मेदारी है, उसी विभाग से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने उसकी साख पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। मुरादाबाद जिले में जिला विद्यालय निरीक्षक (DIOS) देवेंद्र कुमार पांडेय द्वारा विभागीय कार्यों में एक चपरासी की निजी बुलेरो गाड़ी का इस्तेमाल करवाने का मामला सामने आया है, जिला विद्यालय निरीक्षक ने यह बिना किसी प्रक्रिया,टेंडर या सरकारी स्वीकृति के कार्यालय में तैनात चपरासी पर अपनी मेहरबानी लुटाई है।

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सूत्रों के अनुसार, विभाग में वाहन की आवश्यकता थी, लेकिन नियमानुसार टेंडर आमंत्रित करने की बजाय सीधे कार्यालय के चपरासी की निजी गाड़ी को विभागीय उपयोग में लगा दिया गया। यह न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि पद का दुरुपयोग और सत्ता के दायरे में अपनों को अनुचित लाभ पहुंचाने का उदाहरण भी है।

नियमों को ताक पर रखा गया और चुपचाप चपरासी की गाड़ी सरकारी बन गई

इस प्रकरण में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि एक चपरासी के पास इतनी महंगी गाड़ी कैसे? क्या उसका आय स्रोत विभाग के समक्ष घोषित है? क्या संपत्ति विवरण की जांच हुई? यह महज एक वाहन का मामला नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह है।

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चपरासी की बुलेरो पर उठे सवाल,उसके पीछे छिपा है पूरा जाल

यह मामला शिक्षा विभाग जैसी संवेदनशील संस्था के नियमों को नकारने और रिश्तों को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति को उजागर करता है। जब विभाग के उच्च अधिकारी स्वयं नियमों का पालन नहीं करेंगे, तो फिर अधीनस्थ कर्मचारियों से क्या अपेक्षा की जा सकती है?

विभागीय सूत्रों के अनुसार, इस पूरे मामले को लेकर अब उच्च स्तर पर जांच की मांग की जा रही है। यदि शीघ्र कठोर कार्रवाई नहीं की गई, तो यह प्रकरण एक खतरनाक मिसाल बन सकता है, जहाँ सरकारी प्रक्रियाओं को नकार कर निजी संपर्कों और लाभ को प्राथमिकता दी जाएगी।

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मुख्य सवाल जो उठते हैं:

एक चपरासी के पास बुलेरो जैसे वाहन का स्रोत क्या है?

क्या विभाग ने संपत्ति का सत्यापन किया है?

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बिना टेंडर और अनुमति के वाहन का चयन कैसे हुआ?

क्या यह सत्ता और पद का दुरुपयोग नहीं है?

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