Moradabad: विद्यालय समय में शिक्षक राजनीति में व्यस्त, शिक्षा व्यवस्था पर सवाल
Moradabad: जनपद मुरादाबाद के दो सहायक अध्यापक वीरसिंह कंपोजिट विद्यालय बालापुर एवं त्रिवेंद्र सिंह कंपोजिट विद्यालय रामपुर बालभद्र की विद्यालय समय में लगातार अनुपस्थिति
प्राप्त जानकारी के अनुसार दोनों अध्यापक विद्यालय समय में नियमित रूप से गायब रहते हैं और अपने उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के पदों ब्लॉक अध्यक्ष और मंत्री का लाभ उठाकर विभागीय अनुमति के बिना विभिन्न विकासखंडों में घूमते पाए जाते हैं। 4 अप्रैल 2025 को भी दोनों अध्यापक ब्लॉक छजलैट के कांठ नगर स्थित साईं बैंक्विट हॉल में एक निजी कार्यक्रम में विद्यालय समय के दौरान उपस्थित थे। इस बात के प्रमाणस्वरूप जियो टैग फोटोग्राफ्स एवं लोकेशन डेटा संलग्न किए गए हैं।
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यह मामला केवल अनुपस्थिति तक सीमित नहीं है। 12 अप्रैल 2025 को "स्कूल चलो अभियान एवं शैक्षिक उन्नयन संगोष्ठी" के नाम पर बी.आर.सी. ठाकुरद्वारा में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें विकासखंड के कई अध्यापकों को कथित तौर पर बिना विधिवत विभागीय अनुमति के आमंत्रित किया गया। इसके लिए केवल व्हाट्सएप ग्रुप पर एक संदेश भेजा गया, जिसकी सत्यता और वैधता संदिग्ध है। आरोप है कि इस कार्यक्रम का स्कूल चलो अभियान से कोई वास्तविक संबंध नहीं था, न ही किसी प्रकार की रैली या जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
इन घटनाओं से कई सवाल उठते हैं:
क्या किसी शैक्षिक संगठन के पदाधिकारी को विद्यालय समय में विभागीय अनुमति के बिना कार्यक्रम में भाग लेने की छूट है?
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क्या इन अध्यापकों द्वारा बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम 2009 और उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली का उल्लंघन नहीं किया गया है? क्या विद्यालय की पत्र व्यवहार पंजिका में की गई प्रविष्टियों की सत्यता की जांच नहीं होनी चाहिए? क्या विद्यालय के प्रधानाध्यापक इस लापरवाही में अप्रत्यक्ष रूप से संलिप्त नहीं हैं?
इसके साथ ही, इन दोनों अध्यापकों के मोबाइल फोन की कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) जांचने की भी मांग उठ रही है, जिससे यह प्रमाणित किया जा सके कि विद्यालय समय में वे वास्तव में कहां उपस्थित थे। शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों से मांग की गई है कि इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष और व्यापक जांच कर दोषियों के विरुद्ध कठोर विभागीय कार्रवाई की जाए। साथ ही, इन शिक्षकों की शिक्षक डायरी और छात्रों की कार्यपुस्तिकाओं के माध्यम से यह भी परखा जाए कि उनके द्वारा दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता क्या रही है।
यदि समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो यह प्रवृत्ति अन्य शिक्षकों में भी अनुशासनहीनता को बढ़ावा दे सकती है और अंततः इसका खामियाजा मासूम बच्चों की शिक्षा को भुगतना पड़ेगा।