वक्त की गर्दिशों का ग़म ना करो, हौसले मुश्किलों में पलते हैं। इसी कहावत को बहराइच जनपद की रहने वाली हैंडबॉल खिलाड़ी पायल सिंह ने साकार करके दिखाया है।बहराइच जनपद के छोटे से गांव नयागांव निवासी पायल सिंह के पिता अशोक कुमार ऑटो चालक हैं। उनके परिवार में 3 बहनों के अलावा माता पिता हैं।
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2017 से टीम की कमान संभाल रही पायल, खिलाड़ियों को भी देती हैं प्रशिक्षण
पायल सिंह 2017 से मंडल टीम की कमान संभाल रही है। पायल को 2017 में मंडल टीम की कप्तानी सौंपी गई। तब से वह कई राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में टीम का नेतृत्व कर चुकी हैं। स्टेडियम में कोई हैंडबाल कोच न होने के कारण, पायल खुद नए खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देती हैं। टीम को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रही हैं।
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इकलौते भाई की मौत ने तोड़ दिए थे सपने, फिर शुरू की प्रैक्टिस
पायल सिंह ने जानकारी बताया कि वह 2021 में कानपुर में जूनियर नेशनल खेल रही थीं। तभी 14 अप्रैल को उनके इकलौते भाई निखिल की अचानक मौत हो गई। यह सदमा पायल के लिए बहुत बड़ा था, और वह पूरी तरह टूट गईं थी, मगर 2023 में उन्होंने हिम्मत जुटाई और दोबारा मैदान में वापसी की। आज पायल न केवल खुद खेल रही हैं, बल्कि हैंडबाल प्रतियोगिताओं में रेफरी की भूमिका भी निभा रही हैं, ताकि अपने परिवार को आर्थिक रूप से सहयोग कर सकें। उनकी कहानी हर उस खिलाड़ी के लिए प्रेरणा है, जो संघर्षों से हारने की बजाय उन्हें जीत में बदलने का जज़्बा रखते हैं।
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अपनी मेहनत के बल पर जीते मेडल
2010 में सोनकपुर स्टेडियम में पायल सिंह पहली बार अपने कॉलेज बलदेव सिंह इंटर कॉलेज की तरफ से बास्केटबॉल खेलने आईं थी,जिसके बाद यहां खिलाड़ियों को हैंडबॉल खेलता देख इस खेल में उनकी रुचि बढ़ गई और बास्केटबॉल छोड़कर वे हैंडबॉल खेलने लगीं, हैंडबाल की शुरुआत करने के बाद, पायल ने लगातार छह साल मेहनत की और कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया, जिसमें सबसे पहले 2016: जूनियर नेशनल,राजस्थान, 2017: जूनियर नेशनल, नोएडा, 2018: फेडरेशन कप, पंजाब,2018: जूनियर नेशनल, कर्नाटक, 2019: ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स, बनारस (स्वर्ण पदक), 2020: नेशनल चैंपियनशिप, कानपुर (ब्रॉन्ज मेडल) और 2023: नेशनल चैंपियनशिप, बनारस में खेलकर मेडल जीते।
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2017 से लगातार कर रही कप्तानी
आर्थिक तंगी और तमाम बाधाओं को पार कर पायल सिंह अपनी सफलता की कहानी लिख रही हैं। मंडल हैंडबाल टीम की कप्तान रह चुकीं पायल, एक समय अपने इकलौते भाई की मौत से पूरी तरह टूट गई थीं. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अब तक सात बार नेशनल खेल चुकी हैं। 2019 में ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में स्वर्ण पदक जीता और 2017 से लगातार मंडल टीम की कप्तानी कर रही हैं। वर्तमान में वह विभिन्न प्रतियोगिताओं में रेफरी की भूमिका भी निभा रही हैं। जिससे वह अपने परिवार को आर्थिक सहायता दे सकें।