Advertisment

Moradabad: महाभारत काल से जुड़ा है मुरादाबाद के अगवानपुर का इतिहास,पाण्डव युद्ध के बाद यहीं रहे थे अरसों

मुरादाबाद का अगवानपुर महाभारत काल से इतिहास के पन्नों में दर्ज है।यहां पर पाण्डव अपनी रानियों के साथ रुके थे। और रानियां अपनी दासियों के साथ रामगंगा नदी में स्नान करने जाती थीं।

author-image
Roopak Tyagi
ीुीाुीु

प्राचीन मंदिर।

Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

मुरादाबाद, वाईबीएन संवाददाता।

मुरादाबाद का अगवानपुर महाभारत काल से इतिहास के पन्नों में दर्ज है।यहां पर पाण्डव अपनी रानियों के साथ रुके थे। और रानियां अपनी दासियों के साथ रामगंगा नदी में स्नान करने जाती थीं। जहां पर सती मठ आज भी मौजूद है।द्वापर युग में पति की मौत के बाद महिलाएं सती हो जाती थीं।जिसकी घरोहर आज भी मुरादाबाद के अगवानपुर में देखने को मिलती है।आज भी इन मठो में सती हुई महिलाओं की अस्थियां मौजूद है। इन मठों के आगे कुछ टीले भी बने हुए हैं जिनकी खुदाई करने पर पुराने जमाने में इस्तेमाल किए जाने वाले मिट्टी के बर्तन भी देखने को मिलते हैं। इब्नबतूता की किताब सफरनामा में इस बात का जिक्र किया गया है। लेकिन अब टीले वाली जगह पर किसानों ने खेती किसानी करना शुरू कर दिया है।

यह भी पढ़ें:पैसे के लालच में मुरादाबाद के डॉक्टर दे रहे हैं सोना तस्करों का साथ

जनपद की नगर पंचायत अगवानपुर जिसका इतिहास बहुत पुराना है। भारत में जब मुगलकाल आया था तब मुगलों ने अगवानपुर का नाम बदलकर मुगलपुर कर दिया था लेकिन मुगलों के जाने के बाद अगवानपुर फिर से अपने नाम से जाने जाने लगा। सन 1363 में मिश्र से एक युवक इब्नबतूता जब 18 साल की उम्र में दुनिया का चक्कर लगाते हुए भारत आए तो कुछ समय अगवानपुर में भी रुके थे।भारत भ्रमण के बाद इब्नबतूता ने एक किताब लिखी।

Advertisment

यह भी पढ़ें:फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा से कोर्ट नाराज, वीडियो कांफ्रेंसिंग की दी सुविधा, फिर भी नहीं हुईं पेश

जिसका नाम सफरनामा इब्नबतूता है। इस किताब में अगवानपुर के इतिहास का जिक्र किया गया है। इसी के आधार पर एक किताब मुरादाबाद तारीख-ए-जद्दोजहद आजादी में भी अगवानपुर के इतिहास का जिक्र किया गया। इस किताब में बताया कि महाभारत के युद्ध के बाद पाण्डव अपनी रानियों के साथ अगवानपुर आकर रुके थे।साथ में उनकी सेना का कुछ हिस्सा भी उनके साथ था। किताब में कहा गया है जिन महिलाओं के पति की मृत्यु हो जाती थी वह महिलाएं अपने पति के साथ यहीं सती हो जाती थीं।जिसकी मठ आज भी अगवानपुर में देखने को मिलती हैं।

ytrjry
मशहूर दार्शनिक इब्नबतूता द्वारा लिखी गई किताब सफरनामा
Advertisment

 किताब में यह भी जिक्र किया गया है कि पाण्डव अगवानपुर में लंबे समय तक रुके थे। यहां मौजूद सती मठ के पास ही रामगंगा नदी है जिसमें पाण्डवों की सभी रानी पांच सौ पालकियों में सवार होकर स्नान करने जाती थी। रामगंगा नदी किनारे तीन सती मठ आज भी मौजूद है। सदियों पुराने होने की वजह से भले ही यह मठ टूट गए थे लेकिन भुर्जी समाज के लोगो ने इन मठों को आज भी जिंदा रखा हुआ है। ताकि ऐतिहासिक घरोहर को जिन्दा रखा जा सके।इन मठों के नीचे से आज भी महिलाओं की अस्थियां मौजूद हैं।वहीं शासन-प्रशासन की तरफ से पुरानी घरोहर को संजोकर रखने के लिए आज तक कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

यह भी पढ़ें:Moradabad: रेसिप्रेकल टैरिफ ने उड़ा दी निर्यातको की नींद, व्यापार पर पड़ सकता है असर

मशहूर दार्शनिक इब्नबतूता ने अपनी किताब सफरनामा में किया है जिक्र

Advertisment

इब्नबतूता ने अपनी किताब सफरनामा में कहा है कि वह फातिहा पढ़ने के लिए मजार-ए-शरीफ गए थे।मजार-ए-शरीफ के पास कुछ प्राचीन मठ हैं। जिनके साथ कई ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं।महाभारत युद्ध की तबाही के बाद पाण्डव कुछ अरसे के लिए यहां बस गए थे। यह मठ उस समय सती प्रथा करने वाली महिलाओं की याद में बनाया गया है। और यह भी प्रसिद्ध परंपरा है कि पांडवों की महिलाएं सुबह पांच सौ (500) पालकियों में सवार होकर रामगंगा नदी में स्नान करने जाती थीं। इसीलिए यह स्थान ज़ेवर खेड़ा के नाम से प्रसिद्ध है। महान यात्री इब्नबतूता कुछ समय के लिए अगवानपुर में रुके और फिर दिल्ली सल्तनत का दौरा करने के लिए अमरोहा चले गए।

ंिविविव
दीपक कुमार चंद्रा।

 सती मठ की देखरेख कर रहे दीपक कुमार चंद्रा ने बताया कि अगवानपुर स्थित इन सती मठों की देखरेख हमारे द्वारा की जाती है। लेकिन प्रशासन से हमें कोई मदद नहीं मिल रही है। हमारा भुर्जी समाज ने मिलकर चंदा इकट्ठा किया और इन मठों का सौंदर्यीकरण कराया है। जबकि ये घरोहर महाभारत काल से यहां पर मौजूद है। सरकार को इस घरोहर के लिए कुछ ना कुछ सोचना चाहिए। हमारी माताजी के द्वारा यहां पर पूजा पाठ की जाती है ज्यादा समय वही यहां पर रहती है। यहां तीन सती मठ मौजूद हैं जो कुछ साल पहले टूट गए थे। जिनका निर्माण भुर्जी समाज के लोगों ने मिलकर कराया है। सती मठ टूटने के बाद इनके नीचे से अस्थियां, नांद और कोयले निकले थे।यह मठ कितने पुराने हैं। इसकी पूरी तरीके से कोई जानकारी नहीं है।

ििुीु
फूलवती देवी।

 वहीं मंदिर को पुजारिन फूलवती देवी ने बताया कि पहले यहां पर हमारे परिवार के ही बीरबल यहां को देखरेख किया करते थे।उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले हमें यहां की जिम्मेदारी सौंपी थी। फिर उनकी मौत हो गई। अब द्वारा उनकी जिम्मेदारियों को निभाया जा रहा है। सरकार को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए। जैसे संभल में पुराने तीर्थों पर सरकार काम कर रही है ऐसे ही यहां पर भी सरकार द्वारा मठ के लिए कुछ ना कुछ करना चाहिए।

िुीुीुी
हाफिज नवाब अली।

 जिले के तारीख-ए-जद्दोजहद  आजादी और इब्नबतूता की सफरनामा जैसी ऐतिहासिक किताब रखने वाले हाफिज नवाब अली ने बताया कि ये कस्बा पहले मुगलपुर उर्फ अगवानपुर के नाम से जाना जाता था।यहां पुराने जमाने की सती मठ है और यह जगह जेवर खेड़ा के नाम से मशहूर है। 1363 में मिस्र के रहने वाले इब्नबतूता ने अपनी किताब सफरनामा में यहां के इतिहास और सती मठ का जिक्र किया है।

Advertisment
Advertisment