ग्रेटर नोएडा,
वाईबीएन संवाददाता। भारत- पाक सैन्य संघर्ष में पाकिस्तान की मदद करने के मामले में तुर्की का विरोध लगातार बढ़ रहा है। अब ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा यूनिवर्सिटी ने तुर्की के दो विश्वविद्यालयों के साथ हुए अपने करार को रद्द कर दिया है। पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पीओके स्थित आतंकी ठिकानों के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर चलाया। पाकिस्तान ने इस सैन्य कार्रवाई को खुद पर हमला मानते हुए रिएक्शन किया और भारत के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाते हुए हमले करने का प्रयास किया, हालांकि भारत के सुरक्षा चक्र को भेद पाने में कामयाब नहीं हो पाया। पाकिस्तान की ओर से किए गए हमलों में तुर्की के ड्रोन व हथियार इस्तेमाल किए जाने के पुख्ता सबूत सामने आने के बाद भारत ने तुर्की से भी हिसाब लेना शुरू कर दिया।
राजस्थान से हुई विरोध की शुरूआत
भारत- पाकिस्तान सैन्य संघर्ष के दौरान तुर्की के द्वारा पाकिस्तान की मदद किए जाने का मामला सामने आने पर सबसे पहले
राजस्थान से विरोध शुरू हुआ। उदयपुर के मार्बल कारोबारियों की एसोसिएशन ने तुर्की से मार्बल के आयात पर रोक लगाने का फैसला लिया और तमाम ऑर्डर रद्द कर दिए।
अजमेर के व्यापारियों ने तुर्की के सेब का बहिष्कार करने का ऐलान कर दिया है। इसी क्रम में गाजियाबाद की साहिबाबाद फल मंडी ने भी तुर्की के साथ बंद करने का ऐलान कर दिया।
इन दो विश्वविद्यालयों से रद किए करार
अब ताजा खबर ग्रेटर नोएडा से है, जहां शारदा यूनिवर्सिटी ने तुर्की की दो प्रमुख विश्वविद्यालयों के साथ अपने सभी करार खत्म कर दिए हैं। दरअसल शारदा यूनिवर्सिटी के तुर्की की Istanbul Aydin University और Hasan Kalyoncu University के साथ MOU थे, शारदा यूनिवर्सिटी ने दोनों के साथ सभी शैक्षणिक संबंध तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिए हैं। शारदा विवि के डायरेक्टर पब्लिक रिलेशन डॉ. अजित कुमार ने बताया कि, इन दोनों तुर्की यूनिवर्सिटीज के साथ MOU थे, जिन्हें हमने रद्द कर दिया है। पाकिस्तान के साथ संघर्ष के दौरान तुर्की के रुख को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है।
तुर्की से बड़ी संख्या में रिसर्च के लिए आते थे छात्र
हर साल तुर्की से बड़ी संख्या में छात्र रिसर्च और उच्च शिक्षा के लिए शारदा यूनिवर्सिटी आते थे, लेकिन अब यह आदान-प्रदान पूरी तरह बंद कर दिया गया है। शारदा यूनिवर्सिटी से पहले जामिया मिलिया इस्लामिया, जेएनयू और एलपीयू भी तुर्की का बायकॉट कर चुके है। यूनिवर्सिटी प्रशासन का कहना है कि राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है और इसमें कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
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