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High Court News: प्रधानमंत्री मोदी पर पाकिस्तान निर्मित वीडियो साझा करने के आरोपी की जमानत मंजूर

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंभीर अपराध के आरोप में गिरफ्तार सावेज की जमानत मंजूर कर ली। जिस पर अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियों वाला एक पाकिस्तान निर्मित वीडियो प्रसारित करने का आरोप है।

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Abhishak Panday
allahabad high court

फाइल फोटो Photograph: (वाईबीएन)

प्रयागराज, वाईबीएन विधि संवादाता।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंभीर अपराध के आरोप में गिरफ्तार सावेज की जमानत मंजूर कर ली। जिस पर अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियों वाला एक पाकिस्तान निर्मित वीडियो प्रसारित करने का आरोप है। न्यायमूर्ति संतोष राय की पीठ ने सावेज की अर्जी पर दिया है। जिस पर 'भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने' और 'भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों' सहित गंभीर अपराधों का आरोप लगाया गया था। उसे इसी साल 10 मई को गिरफ्तार किया गया था। पीठ ने मुकदमे के निस्तारण को लेकर अनिश्चितता, जेलों में भीड़भाड़ और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई के मौलिक अधिकार जैसे कारकों को ध्यान में रखा। याची ने अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर पाकिस्तान में तैयार एक वीडियो प्रसारित किया, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी को पुलवामा और पहलगाम आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।

कोर्ट की शर्तों पर दी गई जमानत

यह भी आरोप है कि वीडियो सांप्रदायिक शांति भंग करने, राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने और सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। हालांकि, यह एक स्वीकृत तथ्य था कि सावेज ने वीडियो नहीं बनाया था, बल्कि उसे केवल प्रसारित किया था। जमानत की मांग करते हुए, अधिवक्ता ने तर्क दिया कि मोबाइल फोन की बरामदगी पूरी तरह से झूठी थी और जांच अधिकारी ने जांच के दौरान किसी भी स्वतंत्र गवाह से पूछताछ नहीं की थी। यह भी प्रस्तुत किया गया कि आवेदक के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (2), 147, 152, 196, 197 (1) (डी) और यूएपीए की धारा 13 (ए) के तहत दंडनीय अपराध के तहत आरोप नहीं लगाए गए थे। पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की है। याची का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। राज्य सरकार ने तर्क दिया कि अपराध गंभीर प्रकृति के है और ऐसी सामग्री का प्रसार देश की संप्रभुता, अखंडता और एकता के लिए हानिकारक है। अभियुक्त को रिहा करने से ऐसे कृत्यों की पुनरावृत्ति का खतरा होगा। कोर्ट ने कहा कि जहां मुकदमे का निस्तारण अनिश्चित हो, वहां मुकदमे से पहले की कैद को लंबा नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी ध्यान में रखा कि आवेदक का कोई पूर्व आपराधिक इतिहास नहीं है और आरोपपत्र पहले ही दाखिल किया जा चुका है। इसलिए, अदालत ने उसे निजी मुचलके और दो भारी जमानत राशि जमा करने की शर्त पर जमानत दे दी। जिसमें यह भी शामिल था कि वह सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेगा, गवाहों को धमकाएगा नहीं, या अनावश्यक स्थगन की मांग नहीं करेगा। आवेदक-अभियुक्त की ओर से अधिवक्ता बिपिन शुक्ला और विमलेश कुमार दुबे ने बहस की।

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