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High Court News: डॉ सुशील सिन्हा को कमिश्नर के यहां भी नहीं मिली राहत, केपी ट्रस्ट अध्यक्ष पद पर पुनर्मतगणना का मामला

केपी ट्रस्ट के अध्यक्ष पद की पुनर्मतगणना के मामले में डॉ सुशील सिन्हा को कमिश्नर के यहां से भी राहत नहीं मिली। कमिश्नर ने स्थगन के बिन्दु पर उनकी प्रार्थना अस्वीकार कर दी है।

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Abhishak Panday
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फाइल फोटो Photograph: (google)

प्रयागराज, वाईबीएन संवाददाता।केपी ट्रस्ट के अध्यक्ष पद की पुनर्मतगणना के मामले में डॉ सुशील सिन्हा को कमिश्नर के यहां से भी राहत नहीं मिली। कमिश्नर ने स्थगन के बिन्दु पर उनकी प्रार्थना अस्वीकार कर दी है। एडवोकेट सत्यव्रत सहाय के अनुसार कमिश्नर ने सुनवाई के बाद कहा कि विचारण न्यायालय के गत 22 मार्च के आदेश के अवलोकन से स्पष्ट है कि इस न्यायालय के 16 दिसंबर 2024 के आदेश में विचारण न्यायालय को जो निर्देश दिये गये थे, उसी निर्देश के तहत ही आदेश किया गया है। कमिश्नर ने यह भी कहा कि विचारण न्यायालय के समक्ष लम्बित वाद की पृष्ठभूमि में वोटों की गणना संबंधी वाद था।

          विचारण न्यायालय ने अपने आदेश में विवेचना की है कि क्यों इस चुनाव वाद के निस्तारण के लिए पुनः मतगणना आवश्यक है। उस क्रम में विचारण न्यायालय ने सहायक रजिस्ट्रार फर्म्स सोसाइटीज एवं चिट्स फंड को दिशा निर्देश दिए गए अपीलार्थी ने अपनी बहस में विचारण न्यायालय के पुर्नमतगणना के आदेश में क्या विधिक त्रुटि है, इस पर कोई भी बिन्दु प्रकट नहीं किया। ऐसे में यह तर्क भी स्थगन देने के लिए पर्याप्त आधार नहीं माना जा सकता।

स्थगन प्रार्थना को किया अस्वीकार

अपील में कहा गया था कि केपी ट्रस्ट के पदाधिकारियों के चुनाव से सम्बन्धित वाद को अवर न्यायालय के सात अक्तूबर 2024 के आदेश द्वारा ग्राह्य योग्य मान लिया गया था, जिसके विरुद्ध अपीलार्थी ने कमिश्नर न्यायालय में अपील दाखिल योजित की, जिसपर 26 दिसंबर 2024 के आदेश से विचारण न्यायालय के सात अक्तूबर 2024 के आदेश को निरस्त करते हुए पक्षों को साक्ष्य व सुनवाई का अवसर प्रदान कर विधि अनुसार विश्लेषण करते हुए आदेश किए जाने के निर्देश दिये गए। उस क्रम में में अवर न्यायालय ने गत सात मार्च के आदेश में कमिश्नर न्यायालय के 26 दिसंबर 2024 के आदेश का अनुपालन नहीं हुआ है। अवर न्यायालय ने गत 22 मार्च के आदेश के माध्यम से चुनाव को अवैध या रद्द नहीं किया गया बल्कि सहायक रजिस्ट्रार फर्म्स सोसाइटीज एवं चिट्स को पुर्नमतगणना कराने का निर्देश दिया गया, जो उनके क्षेत्राधिकार में नहीं है।

              दूसरी ओर प्रतिपक्षी के अधिवक्ता ने विचारण न्यायालय के गत 22 मार्च के आदेश में की गई तथ्यपूर्ण विवेचना की ओर न्यायालय का ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि इस न्यायालय के 16 दिसंबर 2024 के आदेश के क्रम में विस्तृत विवेचना के बाद निष्कर्षतः वाद को पोषणीय मानते हुए विधारण न्यायालय ने उक्त आदेश किया है। अपील में यह माना गया है कि पोषणीयता के बिन्दु को विचारण न्यायालय ने 22 मार्च के आदेश में सम्मिलित करते हुए किया है। अपीलार्थी ने सात मार्च के आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में रिट याचिका की थी और स्वयं इसे निष्प्रयोज्य मानते हुए निरस्त करने की याचना की थी। सुनवाई और पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का अवलोकन करने के बाद कमिश्नर ने अपील सुनवाई विचारार्थ स्वीकार कर ली लेकिन स्थगन की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया।

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