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फाइल फोटो Photograph: (वाईबीएन)
प्रयागराज, वाईबीएन संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 43 साल पुराने हत्या के मामले में दोषसिद्धि की पुष्टि आदेश को वापस लेने की मांग करने वाली अभियुक्त लक्ष्मण की अर्जी को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत दिये गए अंतिम आदेश पर पुनर्विचार का अधिकार नहीं है। न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की खंडपीठ ने कहा कि अपीलकर्ता को पर्याप्त अवसर दिया गया, लेकिन उसने जानबूझकर तीन दशक से अधिक समय तक सुनवाई से बचने का प्रयास किया। कोर्ट ने कहा कि यह आदेश तथ्यों और साक्ष्यों का परिशीलन कर गुण-दोष के आधार पर पारित किया गया था, न कि चूकवश।
अपीलकर्ता का पक्ष
अभियुक्त के वकील ने कहा कि पूर्व अधिवक्ता का निधन हो जाने से उसे अपील की जानकारी नहीं थी। उसे निर्णय की जानकारी 30 मई 2025 को मिली और दो जून को उसने सीजेएम इटावा की अदालत में आत्मसमर्पण किया। अभियुक्त का कहना था कि वह लंबे समय से पंजाब के मुक्तसर साहिब में अपने भाई के साथ रह रहा था और इसलिए नोटिस का जवाब नहीं दे सका।
सरकारी अधिवक्ता ने किया विरोध
सरकारी अधिवक्ता ने अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने मार्च 2025 में साक्ष्यों के पुनर्मूल्यांकन के बाद ही दोषसिद्धि को बरकरार रखा था। कोर्ट के रिकॉर्ड और सीजेएम इटावा की रिपोर्टों से स्पष्ट है कि अभियुक्त 30 वर्षों से जानबूझकर फरार था। गैर-जमानती वारंट के बावजूद उसने पेशी से परहेज किया।
यह है मामला
यह मामला फफूंद थाना क्षेत्र के सिंगलामऊ गांव का है। 25/26 अक्टूबर 1982 की रात करीब एक बजे चौकीदार कुंजीलाल की हत्या कर दी गई थी। मृतक के भतीजे श्यामलाल ने छह लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी। आरोप था कि लालटेन की रोशनी में शिवनाथ उर्फ कैप्टन और लक्ष्मण बंदूक से लैस थे, जबकि अन्य पिस्तौल, लाठी, कंटा और कुल्हाड़ी लिए हुए थे। अपर सत्र न्यायाधीश (तृतीय) आर.सी. पांडेय ने 30 जुलाई 1983 को लक्ष्मण को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। घटना के बाद वह तीन महीने तक फरार रहा था और फिर आत्मसमर्पण किया था। वहीं सहआरोपी शिवनाथ उर्फ कैप्टन पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था।
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