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Photograph: (google)
प्रयागराज, वाईबीएन संवाददाता।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को प्रदेश की ग्राम पंचायतों की लोकोपयोगी सार्वजनिक जमीनों से अवैध कब्जा या अतिक्रमण के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर हटाने का निर्देश दिया है। साथ ही भूमि प्रबंधक समितियों के अध्यक्ष ग्राम प्रधान व सचिव लेखपाल को ऐसी सरकारी भूमि पर हुए अतिक्रमण की सूचना संबंधित तहसीलदार को देने का आदेश दिया है ताकि वह राजस्व संहिता की धारा 67की कार्यवाही पर अवैध कब्जे दारों को बेदखल कर भूमि मूल स्वरूप में बहाली कर सके। कोर्ट ने कहा कदम उठाते हुए प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों व उप जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि कानून की अवहेलना करने व विधिक दायित्व न निभाने वाले भूमि प्रबंधक समिति के अध्यक्ष व सचिव के खिलाफ कदाचार की विभागीय कार्यवाही करने का निर्देश दिया है।और कहा है कि अध्यक्ष व सचिव अतिक्रमण की सूचना नहीं देते तो यह आपराधिक न्यास भंग, षड्यंत्र में शामिल होना व अवैध कब्जे के लिए उकसाने का अपराध माना जायेगा। कोर्ट ने आदेश की प्रति प्रदेश के मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव, आयुक्तों, जिलाधिकारियों, उप जिलाधिकारियों तहसीलदारों, समिति के अध्यक्ष व सचिवों को अनुपालनार्थ भेजने का निर्देश दिया है। और साफ कहा है कि आदेश की अवहेलना सिविल अवमानना मानी जायेगी। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरी ने गांव चौंका, चुनार, मिर्जापुर निवासी मनोज कुमार सिंह की जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।
लापरवाह ग्राम प्रधानों के हटाने की कार्यवाही करने की छूट
जनहित याचिका में बावली(तालाब,) से अवैध कब्जा हटाने की मांग की गई थी। सरकार ने बताया धारा 67राजस्व संहिता की कार्यवाही चल रही है। कोर्ट ने प्रदेश के सभी तहसीलदारों को धारा 67की लंबित कार्यवाही निर्धारित 90दिन में पूरी करने का आदेश दिया है और कहा है कि केवल आदेश ही न दिया जाय , अतिक्रमण हटाकर जलाशयों,व सार्वजनिक भूमि की मूल रूप में बहाली भी की जाय। कोर्ट ने कहा ग्राम पंचायत की सार्वजनिक उपयोग की जमीन की संरक्षक भूमि प्रबंधक समिति होती है। इसलिए जहां भी अतिक्रमण हो उसका दायित्व है कि वह इसकी सूचना तहसीलदार को दे। समिति के अध्यक्ष ग्राम प्रधान व सचिव लेखपाल होते हैं।उनकी लापरवाही के कारण हाईकोर्ट में अतिक्रमण हटाने की मांग में काफी संख्या में याचिकाएं आ रही है। कोर्ट ने कहा जल ही जीवन है,जल के बिना जीवन संभव नहीं है। इसलिए हर कीमत पर जल बचायें। जलाशयों पर किसी प्रकार के अतिक्रमण की अनुमति नहीं दी जा सकती। सरकार अतिक्रमण हटाने के साथ हर्जाना वसूले,अर्थ दंड आरोपित करें, दंडित करे।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 2001मे हींचलाल तिवारी केस का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट ने देश के तालाबों,जलाशयों, जलश्रोतों आदि को संरक्षित करने का आदेश दिया है।दुखद है इसके बावजूद अतिक्रमण हटाने की याचिकाएं आये दिन आ रही है। राजस्व संहिता ने भूमि प्रबंधक समिति को अतिक्रमण की सूचना तहसीलदार को देने की जिम्मेदारी सौंपी है। और तहसीलदार को कहा है कि वह सुनवाई कर अतिक्रमण पाये जाने पर हटाकर बहाल करे। कोर्ट ने डीएम ,एसडीएम को लापरवाह ग्राम प्रधानों के हटाने की कार्यवाही करने की छूट दी है। और कहा है कि जो तहसीलदार धारा 67 की कार्यवाही तय नहीं कर रहे, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाय।
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