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High Court News: सड़क के बिना जीवन नर्क के समान इसलिए इससे अतिक्रमण हटाएं: हाई कोर्ट

एक महत्वपूर्ण निर्णय में इलाहाबाद हाई कोर्ट राज्य में सार्वजनिक भूमि अतिक्रमण 90 दिनों के भीतर हटाने का निर्देश दिया, बल्कि यह भी कहा है कि कानून के अनुसार कार्य करने में विफल रहने वाले अधिकारियों के खिलाफ विभागीय और आपराधिक कार्यवाही की जाए।

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Abhishak Panday
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प्रयागराज, वाईबीएन विधि संवाददाता। एक महत्वपूर्ण निर्णय में इलाहाबाद हाई कोर्ट राज्य में सार्वजनिक भूमि अतिक्रमण 90 दिनों के भीतर हटाने का निर्देश दिया, बल्कि यह भी कहा है कि कानून के अनुसार कार्य करने में विफल रहने वाले अधिकारियों के खिलाफ विभागीय और आपराधिक कार्यवाही की जाए। न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की एकलपीठ ने सार्वजनिक जमीन पर अतिक्रमण हटाने में उदासीन ग्राम प्रधान तथा लेखपाल के खिलाफ दीवानी अवमानना की कार्यवाही करने का अधिकार प्रदेशवासियों को दिया है। यह कार्यवाही हाई कोर्ट में की जा सकेगी। झांसी के मुन्नीलाल उर्फ हरिशरण की जनहित याचिका निस्तारित करते हुए कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है। कोर्ट ने कहा, अगर किसी सड़क पर कोई बाधा या अतिक्रमण है तो व्यक्ति गलत तरीके से कैद होने को मजबूर हो जाएगा और बिना रास्ता या सड़क, जीवन नर्क के समान है। सड़क आवश्यक है क्योंकि यह व्यक्ति की ही नहीं, बल्कि समाज के व्यापक जनमानस की शिक्षा, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, सम्मान आदि भी प्रभावित करती है, इसलिए रास्ते या सड़क पर अतिक्रमण नहीं होना चाहिए। इसलिए इसके प्रति जीरो टारलेंस की नीति अपनाते हुए अतिक्रमण यथाशीघ्र हटाया जाना चाहिए। अतिक्रमणकारियों पर हर्जाना लगाएं और यदि आवश्यक हो तो दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय और आपराधिक कार्यवाही करें। कोर्ट ने कहा, अदालत पहले ही यह मान चुकी है कि फुटपाथ और फुटपाथ पैदल चलने वालों के लिए हैं और इनका उपयोग व्यावसायिक गतिविधियों (जैसे फेरी लगाना या कार क्लिनिक चलाना) या निजी ढांचे के लिए नहीं किया जा सकता। इसलिए, संबंधित अधिकारी इन्हें बाधाओं से मुक्त रखें।

कोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों तथा उपजिलाधिकारियों को निर्देश

कोर्ट ने झांसी के जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया है कि वह उपजिलाधिकारी की अध्यक्षता में टीम गठित कर याची की शिकायत की जांच कराएं। यदि राजस्व अभिलेखों में दर्ज सार्वजनिक रास्ते पर अतिक्रमण पाया जाता है तो संबंधित क्षेत्रीय लेखपाल के विरुद्ध आवश्यक कार्रवाई की जाए जिसने पहले सार्वजनिक भूमि पर ऐसे अतिक्रमण से इन्कार करते हुए रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। यह प्रक्रिया 90 दिनों की अवधि के भीतर पूरी की जाए। कोर्ट ने इस बात पर दुःख जताया कि अदालत सार्वजनिक उपयोग की भूमि पर अतिक्रमण से संबंधित जनहित याचिकाओं से भरी है। कोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों तथा उपजिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह ऐसे लोगों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करें जो किसी अतिक्रमण के संबंध में संबंधित तहसीलदार या तहसीलदार (न्यायिक) को इस आदेश की तिथि से 60 दिनों के भीतर सूचना नहीं दे। इसे उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता नियम, 2016 के नियम 195 के अंतर्गत कदाचार माना जाए।

कोर्ट ने कहा है कि ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत की भूमि प्रबंधक समिति का अध्यक्ष होने के नाते, कानून के तहत उसे सौंपी गई ग्राम पंचायत की संपत्ति का संरक्षक है, यदि वह उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता नियम, 2016 के नियम 66 के तहत सूचना नहीं दे रहा है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। डीएम उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम के तहत प्रधान को हटाने की कार्यवाही करें। भूमि पर अतिक्रमण की जानकारी राजस्व आर.सी. प्रपत्र संख्या 19 द्वारा संबंधित तहसीलदार/तहसीलदार (न्यायिक) को 60 दिनों के भीतर प्रस्तुत की। यदि कोई तहसीलदार या तहसीलदार (न्यायिक) उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 67 (नियम 67(6) के साथ) के अंतर्गत अतिक्रमण हटाने संबंधी कार्यवाही कारण बताओ नोटिस की तिथि से 90 दिनों के भीतर नहीं करता और पर्याप्त कारण नहीं बताता तो इसे अंतर्गत कदाचार माना जाएगा। कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को भी यह निर्देश दिया है कि वे अतिक्रमण हटाने में राजस्व अधिकारियों को सभी सहयोग और सहायता प्रदान करें। सुनिश्चित करें कि अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया शांतिपूर्ण हो और सार्वजनिक व्यवस्था बनी रहे। विभागों के आयुक्तों, जिलाधिकारियों, अध्यक्षों/सचिवों/प्रभारी अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि वह मुख्य सचिव को हर साल अतिक्रमण हटाने और दोषी अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई से अवगत कराएं।

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