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High Court News: मोदीनगर बम ब्लास्ट मामला, पुलिस कबूलनामे को अस्वीकार्य मानते हुए हाई कोर्ट ने दोषसिद्ध मोहम्मद इलियास को बरी किया

वर्ष 1996 में मोदीनगर-गाजियाबाद में चलती बस में हुए भयावह बम विस्फोट के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे मोहम्मद इलियास को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरी कर दिया है।

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Abhishek Panday
High Court

प्रयागराज, वाईबएन विधि संवाददाता। वर्ष 1996 में मोदीनगर-गाजियाबाद में चलती बस में हुए भयावह बम विस्फोट के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे मोहम्मद इलियास को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरी कर दिया है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि पुलिस के समक्ष दिया गया इकबालिया बयान साक्ष्य अधिनियम की धारा-25 के तहत अस्वीकार्य है और अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित नहीं कर सका। अदालत ने कहा कि कानूनी रूप से स्वीकार्य कोई साक्ष्य न होने के कारण “भारी मन से” इलियास को दोषमुक्त करना पड़ रहा है।

27 अप्रैल 1996 का खौफनाक हादसा, 18 की मौत और 48 घायल

घटना 27 अप्रैल 1996 की दोपहर की है। रुड़की डिपो की बस दिल्ली के आईएसबीटी से लगभग 53 यात्रियों को लेकर रवाना हुई थी। मोहननगर बस स्टॉप से 14 और यात्री सवार हुए। शाम करीब 5 बजे जैसे ही बस मोदीनगर के पास पहुंची, चालक की सीट के आगे के हिस्से में जोरदार विस्फोट हुआ। दस यात्रियों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि आठ अन्य ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। लगभग 48 यात्री गंभीर रूप से घायल हुए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शवों से धातु के टुकड़े मिले। डॉक्टरों ने मृत्यु का कारण विस्फोट से हुए अत्यधिक रक्तस्राव को बताया। फोरेंसिक जांच में ड्राइवर सीट के नीचे कार्बन अवशेष मिले, जिससे आरडीएक्स लगाए जाने की पुष्टि हुई। जांच में यह भी सामने आया कि धमाका रिमोट स्विच के जरिए किया गया था।

पाकिस्तानी नागरिक अब्दुल मतीन पर साजिश का आरोप, इलियास को बताया सहयोगी

अभियोजन के अनुसार, हरकत-उल-अंसार का कथित जिला कमांडर और पाकिस्तानी नागरिक अब्दुल मतीन उर्फ इकबाल इस हमले का मास्टरमाइंड था। उसके साथ भारत में रहने वाला मोहम्मद इलियास और तस्लीम वारदात में शामिल बताए गए। इलियास मूल रूप से बिहार के मुजफ्फरपुर का निवासी है और घटना के समय लुधियाना में रह रहा था। अभियोजन का दावा था कि उसे जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकियों ने इस विस्फोट को अंजाम देने के लिए तैयार किया था।

2013 में तस्लीम बरी, पर इलियास और मतीन को उम्रकैद

वर्ष 2013 में निचली अदालत ने सह अभियुक्त तस्लीम को बरी कर दिया था, परंतु इलियास और अब्दुल मतीन को विभिन्न धाराओं में उम्रकैद, कठोर कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई गई। तस्लीम को बरी किए जाने के खिलाफ सरकार ने कोई अपील भी दाखिल नहीं की थी। इलियास के खिलाफ मुख्य साक्ष्य उसका कथित इकबालिया बयान था। पुलिस ने दावा किया था कि जून 1997 में लुधियाना में गिरफ्तारी के बाद इलियास ने अपने पिता और भाई की मौजूदगी में बम लगाने की बात मानी थी। यह बयान सीबीसीआईडी अधिकारियों द्वारा ऑडियो कैसेट पर रिकॉर्ड किया गया था। खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन ने 34 गवाहों को परीक्षित कराया, प्रत्यक्षदर्शियों ने हादसे और विस्फोट की भयावहता को साबित किया। लेकिन कोई भी यह नहीं बता सका कि बम बस में किसने रखा था। क्योंकि बम दिल्ली में बस के रवाना होने से पहले रखा गया था, इसलिए किसी की पहचान संभव ही नहीं थी।

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टाडा का हवाला भी अदालत ने ठुकराया

अभियोजन ने तर्क दिया कि टाडा अधिनियम की धारा-15 के तहत पुलिस अधिकारी के समक्ष दिया गया कबूलनामा स्वीकार्य होता है। लेकिन अदालत ने कहा विस्फोट अप्रैल 1996 में हुआ था, उस समय टाडा लागू नहीं था। सलिए टाडा के विशेष अपवाद इस मामले में लागू नहीं हो सकते। साथ ही, जिस टेप रिकॉर्डर में कथित बयान दर्ज बताया गया, उसे कभी साक्ष्य के रूप में कोर्ट के सामने पेश ही नहीं किया गया। खंडपीठ ने अपने आदेश में लिखा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित नहीं कर सका। कोर्ट ने कहा कानूनी रूप से स्वीकार्य कोई साक्ष्य अपीलकर्ता के विरुद्ध शेष नहीं है। इस आधार पर अदालत ने इलियास की आपराधिक अपील स्वीकार करते हुए उसे बरी कर दिया।

घटना की त्रासदी को याद कर भावुक हुई अदालत

अपने फैसले में अदालत ने उल्लेख किया कि इस विस्फोट में 18 निर्दोष लोगों की जान गई थी और कई परिवार आज भी इस त्रासदी का दंश झेल रहे हैं। अदालत ने कहा कि यह आदेश “भारी मन से” दिया जा रहा है, परंतु न्यायालय कानून के दायरे से बाहर नहीं जा सकता।

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