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High Court News: उप्र राजस्व संहिता की धारा 67-ए लाभकारी प्रावधान, उदार व्याख्या की आवश्यकता, हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 67-ए एक लाभकारी प्रावधान है, जिसकी व्याख्या उदार और उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण से की जानी चाहिए। यह प्रावधान विधायी उद्देश्य को आगे बढ़ाने वाला है, न कि उसे विफल करने वाला।

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Abhishek Panday
High Court

हाईकोर्ट

प्रयागराज, वाईबीएन विधि संवाददाता।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 67-ए एक लाभकारी प्रावधान है, जिसकी व्याख्या उदार और उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण से की जानी चाहिए। यह प्रावधान विधायी उद्देश्य को आगे बढ़ाने वाला है, न कि उसे विफल करने वाला। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की एकलपीठ ने औरैया निवासी विनोद कुमार व दो अन्य की याचिका निस्तारित करते हुए दी है। याचीगण ने एसडीएम/तहसीलदार औरैया के 29 अप्रैल 2025 के आदेश और उसके विरुद्ध 30 अगस्त 2025 को पारित अपील आदेश को चुनौती दी थी।

कोर्ट ने कहा उसकी टिप्पणियां केवल धारा 67-ए के लाभकारी उद्देश्य तक सीमित है

याची पक्ष का कहना था कि वे ग्राम ककरही की भूमि के एक हिस्से पर काबिज हैं और राजस्व संहिता, 2006 की धारा 67-ए के तहत बंदोबस्त के हकदार हैं। ग्राम सभा भूमि प्रबंधन समिति ने उनके खिलाफ अतिक्रमण की शिकायत दर्ज कराई थी। राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचीगण ने यह आधार संबंधित प्राधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया था। धारा 67-ए (1) उन मामलों के निस्तारण से संबंधित है, जिनमें किसी गैर-आरक्षित ग्राम सभा भूमि पर 29 नवंबर 2012 से पूर्व मकान बने हैं। इस प्रावधान के तहत, कुछ शर्तों की पूर्ति पर ऐसे आवास स्थलों के कब्जे को नियमित किया जा सकता है तथा निवासियों को बेदखली से सुरक्षा मिलती है। कोर्ट ने कहा कि जब कोई वैधानिक प्रावधान लाभकारी होता है और किसी विशेष वर्ग के कल्याण के लिए बनाया गया होता है, तो अदालतों को उसकी व्याख्या उदारतापूर्वक करनी चाहिए, ताकि तकनीकी कारणों से पात्र लोगों को लाभ से वंचित न होना पड़े।न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि धारा 67-ए में दी गई शर्तें पूरी होती हैं, तो किसी भी तकनीकी या प्रक्रियात्मक आपत्ति के आधार पर लाभ देने से इंकार नहीं किया जा सकता।

           हाईकोर्ट ने याचीगण को संबंधित वैधानिक प्रावधानों के आधार पर नया दावा प्रस्तुत करने का अधिकार दिया है। साथ ही आदेश दिया है कि दो सप्ताह तक याचीगण के खिलाफ धारा 67 के अंतर्गत पारित 29 अप्रैल 2025 का आदेश प्रभावी नहीं रहेगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उसकी टिप्पणियां केवल धारा 67-ए के लाभकारी उद्देश्य तक सीमित हैं और इसे मामले के गुण-दोष पर राय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

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