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High Court News 16 साल से अधिक उम्र की बीबी से यौन संबंध दुष्कर्म नहीं, हाई कोर्ट

न्यायमूर्ति अनिल कुमार (दशम) की एकल पीठ ने आदेश में कहा, अपीलार्थी इस्लाम उर्फ पलटू को दुष्कर्म के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि घटना के समय पीड़िता 16 वर्ष से अधिक उम्र की थी और दोनों के बीच शारीरिक संबंध उनके निकाह के बाद बने थे।

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Abhishak Panday
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फाइल फोटो Photograph: (google)

प्रयागराज, वाईबीएन विधि संवाददाता।नाबालिग पत्नी से दुष्कर्म के दो दशक पुराने मामले में सुनाई गई दोषसिद्धि व सजा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रद कर दी है। कहा है कि किसी व्यक्ति को 15 वर्ष से अधिक आयु की नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने के लिए केवल इंडिपेंडेंट थॉट बनाम भारत संघ (2017) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद ही दोषी ठहराया जा सकता है, उससे पहले नहीं। संबंधित मामले में शीर्ष अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (दुष्कर्म) के अपवाद दो को जिसमें यह प्रावधान था कि 15 वर्ष से अधिक आयु की पत्नी से यौन संबंध दुष्कर्म नहीं है, 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की पत्नी के रूप में पढ़ा है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि संशोधन भविष्य में लागू होगा न कि पूर्वव्यापी प्रभाव से। न्यायमूर्ति अनिल कुमार (दशम) की एकल पीठ ने आदेश में कहा, अपीलार्थी इस्लाम उर्फ पलटू को दुष्कर्म के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि घटना के समय पीड़िता 16 वर्ष से अधिक उम्र की थी और दोनों के बीच शारीरिक संबंध उनके निकाह के बाद बने थे।

दुष्कर्म के आरोपी शौहर को सात साल कैद की सजा रद, अपराध से बरी

प्राथमिकी में आरोप था कि अपीलार्थी शिकायतकर्ता की 16 वर्षीय नाबालिग बेटी को बहला-फुसलाकर भगा ले गया था। अपीलार्थी ने दलील दी कि उसने और कथित पीड़िता ने 29 अगस्त 2005 को निकाह किया। निकाहनामा भी प्रस्तुत किया गया। निचली अदालत ने पाया था कि पीड़िता के बयान के आधार पर यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि उसे बहला-फुसलाकर भगाया गया था। अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों ने निकाह किया और महीने भर कालपी व भोपाल में किराए के कमरे में खुशहाल विवाहित जोड़े की तरह साथ रहे। हालांकि, निचली अदालत ने अपीलार्थी को दोषी ठहराया क्योंकि पीड़िता नाबालिग थी। न्यायमूर्ति ने कहा, माता-पिता की गवाही से ऐसा कुछ भी पता नहीं चलता जिससे यह पता चले कि अपीलार्थी ने पीड़िता को साथ ले जाने के लिए उसे बहकाया था। पीड़िता ने अपने बयान में बताया था कि जब अपीलार्थी ने उसे अपने साथ घूमने चलने के लिए कहा तो वह स्वेच्छा से गई। इसलिए धारा 363 के तहत "फुसलाना" और "ले जाना" अपराध नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा, मुस्लिम कानून के तहत विवाह की न्यूनतम आयु 15 वर्ष है। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत लड़की के विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है। प्रश्न यह था कि कौन सा कानून प्रभावी होगा। इंडिपेंडेंट थॉट्स मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा, "उक्त फैसले में, आईपीसी और पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों पर भी चर्चा की गई थी और यह माना गया था कि आईपीसी और पॉक्सो में दी गई दुष्कर्म की परिभाषा में कोई अंतर नहीं है।

                दुष्कर्म की परिभाषा कुछ ज्यादा विस्तृत है। यह देखते हुए कि नाबालिग पत्नी से दुष्कर्म के संबंध में धारा 375 में संशोधन फैसले की तारीख से प्रभावी किया गया था, पीठ ने कहा कि अपीलार्थी को 2005 में नाबालिग पत्नी के साथ विवाह बाद यौन संबंध बनाने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। मुकदमे से जुड़े संक्षिप्त तथ्य यह हैं कि आपराधिक अपील अपर सत्र न्यायाधीश, न्यायालय संख्या आठ, कानपुर देहात की ओर से 11 सितंबर 2007 को पारित निर्णय और आदेश के विरुद्ध दायर की गई थी। भोगनीपुर थाने में धारा 363 आईपीसी के अंतर्गत पांच वर्ष सजा और एक हजार रुपये का जुर्माना, धारा 366 आईपीसी में सात वर्ष सजा और एक हजार रुपये का जुर्माना व धारा 376 आईपीसी में सात वर्ष की सजा और दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया था।

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