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हाईकोर्ट
प्रयागराज, वाईबीएन विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्टों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे अपने फैसले या तो पूरी तरह हिंदी में लिखें या पूरी तरह अंग्रेजी में। कोर्ट ने कहा कि दोनों भाषाओं को मिलाकर लिखे गए निर्णय सामान्य हिंदी भाषी व्यक्ति के लिए समझना कठिन हो जाता है। पीठ ने आगरा की सत्र अदालत के एक फैसले का उदाहरण देते हुए बताया कि 54 पन्नों के उस निर्णय में 63 पैराग्राफ अंग्रेजी, 125 हिंदी और 11 दोनों भाषाओं के मिश्रण में लिखे गए थे। हाईकोर्ट ने इसकी प्रति मुख्य न्यायाधीश और राज्य के सभी न्यायिक अधिकारियों को भेजने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि उद्धरण जैसे—सुप्रीम कोर्ट/हाईकोर्ट के अंग्रेजी अंश या मृत्युकालिक कथन अपनी मूल भाषा में दिए जा सकते हैं, लेकिन उनका अनुवाद अनिवार्य रूप से जोड़ा जाना चाहिए।
दहेज हत्या में पति की बरी करने का निर्णय बरकरार
मामले में हाईकोर्ट ने 2021 की दहेज हत्या के एक प्रकरण में आरोपी पति को दोषमुक्त करने के ट्रायल कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन दहेज की मांग से जुड़ी किसी भी तरह की क्रूरता साबित नहीं कर सका। विवाह के सात वर्ष के भीतर पत्नी की मृत्यु एल्यूमिनियम फॉस्फाइड विषाक्तता से हुई थी, लेकिन गवाहों के बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खाते और मृत्यु के पूर्व उत्पीड़न के प्रमाण नहीं मिले। रिकॉर्ड में यह भी सामने आया कि पति ने स्वयं पत्नी को अस्पताल पहुंचाया, उपचार के बिल चुकाए और अंतिम संस्कार कराया। हाईकोर्ट ने इसे आरोपी के सद्भावपूर्ण आचरण का संकेत बताते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों का सही मूल्यांकन किया है। इसी आधार पर अपील खारिज कर दी गई।
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