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प्रयागराज स्थित राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय पहुंची ईरानी पर्यटकों की टीम। Photograph: (वाईबीएन)
प्रयागराज, वाईबीएन संवाददाता। भारत और ईरान के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को सशक्त आधार प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल देखने को मिली। ईरान से आए 16 सदस्यीय शैक्षिक एवं सांस्कृतिक दल ने प्रयागराज स्थित राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय का भ्रमण कर भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा और समृद्ध पांडुलिपि धरोहर को नजदीक से देखा।
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बिलाल अस्दक के नेतृत्व में भ्रमण
ईरान से आए इस सांस्कृतिक दल का नेतृत्व डॉ. बिलाल अस्दक ने किया। इस अवसर पर पांडुलिपि अधिकारी गुलाम सरवर के निर्देशन में प्राविधिक सहायक (फारसी) डॉ. शाकिरा तलत ने टीम को लगभग एक दर्जन से अधिक दुर्लभ फारसी पांडुलिपियों का अवलोकन कराया। वहीं प्राविधिक सहायक (संस्कृत) हरिश्चन्द्र दुबे ने संस्कृत पांडुलिपियों का परिचय देते हुए उनके ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला।
फारसी और संस्कृत पांडुलिपियों से प्रभावित हुए विद्वान
टीम के सदस्यों ने ‘तारीख-ए-आलमगीर’, ‘गुलिस्तान-ए-सादी’, ‘आइन-ए-अकबरी’, ‘खतूत-ए-आलमगिरी’, ‘वाल्मीकि रामायण’, ‘कुरान शरीफ’, ‘भागवत’, ‘रामायण मसीही’ सहित कई प्राचीन पांडुलिपियों का अवलोकन किया। पुस्तकालय में संरक्षित चार फीट लंबी तुगरा पांडुलिपि और मुगल बादशाहों के मूल फरमान को देखकर ईरानी विद्वान अत्यंत उत्साहित दिखे। उन्होंने इन अद्वितीय पांडुलिपियों के चित्र भी अपने कैमरे में कैद किए।
ईरानी प्रोफेसर ने व्यक्त किया आभार और प्रशंसा
इमाम खुमैनी अंतर्राष्ट्रीय क़ज़्विन विश्वविद्यालय की फ़ारसी भाषा और साहित्य की प्रोफेसर शिरीन सादिग ने इस भ्रमण को “अपनी यात्रा का सबसे यादगार शैक्षणिक अनुभव” बताया। उन्होंने कहा हमें यहां मुगल काल की दुर्लभ फारसी पांडुलिपियों का अद्भुत संग्रह देखने को मिला। यह अनुभव न केवल भारत की समृद्ध साहित्यिक परंपरा को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि भारत सरकार प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण को लेकर कितनी सजग है। उन्होंने आगे कहा कि इस यात्रा ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत और ईरान के बीच सांस्कृतिक संबंध हजारों वर्षों पुराने हैं, जो साझा इतिहास और समान मूल्यों पर आधारित हैं। ऐसे कार्यक्रम दोनों देशों के बीच शैक्षणिक और सांस्कृतिक सहयोग को और प्रगाढ़ बनाएंगे।
साझी विरासत से मजबूत होंगे संबंध
ईरानी टीम ने अपने संयुक्त वक्तव्य में कहा कि प्रयागराज स्थित राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय की यात्रा ने उन्हें यह एहसास कराया कि ईरान और भारत के बीच बौद्धिक व सांस्कृतिक जुड़ाव कितना गहरा है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि भविष्य में अधिकाधिक ईरानी शोधार्थी भारत आकर इन साझा विरासतों पर शोध करेंगे, जिससे दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग के नए द्वार खुलेंगे।
अतिथियों का हुआ स्वागत
कार्यक्रम के अंत में पांडुलिपि अधिकारी गुलाम सरवर ने आए हुए अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया और उन्हें स्मृति चिह्न भेंट किए। इस अवसर पर पुस्तकालय के सभी अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित रहे। उल्लेखनीय है कि प्रयागराज का राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय देश के प्राचीनतम अभिलेखागारों में से एक है, जहां संस्कृत, फारसी, अरबी, उर्दू और प्राकृत भाषाओं की हजारों दुर्लभ पांडुलिपियां संरक्षित हैं। यह भ्रमण भारत-ईरान के साझा इतिहास को नई रोशनी में प्रस्तुत करने का एक सशक्त प्रयास साबित हुआ है।
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