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Prayagraj News: एमएनआईटी इलाहाबाद ने फैकल्टी डॉ. वेंकटेश का निलंबन वापस लिया, छात्रों के आंदोलन के आगे झुका प्रशासन

एमएनआईटी इलाहाबाद में अनुसूचित जनजाति वर्ग से आने वाले फैकल्टी सदस्य डॉ. वेंकटेश के निलंबन को संस्थान प्रशासन ने दो महीने बाद वापस ले लिया है। यह निर्णय छात्रों, विभिन्न छात्र संगठनों और शहर के नागरिकों के संयुक्त आंदोलन के बाद लिया गया।

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Abhishek Panday
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एमएनआईटी इलाहाबाद ने फैकल्टी डॉ. वेंकटेश का निलंबन वापस लिया, छात्रों के आंदोलन के आगे झुका प्रशासन। Photograph: (वाईबीएन)

प्रयागराज, वाईबीएन संवाददाता। एमएनआईटी इलाहाबाद में अनुसूचित जनजाति वर्ग से आने वाले फैकल्टी सदस्य डॉ. वेंकटेश के निलंबन को संस्थान प्रशासन ने दो महीने बाद वापस ले लिया है। यह निर्णय छात्रों, विभिन्न छात्र संगठनों और शहर के नागरिकों के संयुक्त आंदोलन के बाद लिया गया। प्रदर्शनकारियों का आरोप था कि डॉ. वेंकटेश का निलंबन बिना ठोस कारण किया गया और उन्हें तनख़्वाह एवं शैक्षणिक कार्यों से भी वंचित कर दिया गया था। गौरतलब है कि पिछले सप्ताह छात्रों तथा सामाजिक संगठनों ने एमएनआईटी गेट पर विरोध प्रदर्शन किया था। आंदोलनकारियों ने चेतावनी दी थी कि यदि एक सप्ताह के भीतर निलंबन वापस नहीं लिया गया तो संस्थान को बड़े आंदोलन का सामना करना पड़ेगा। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि वंचित तबके से आने वाले शिक्षकों के साथ बढ़ते उत्पीड़न को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाएगा।

आंदोलन के दबाव में प्रशासन का निर्णय

लगातार विरोध, जनसमर्थन और संस्थान के भीतर बढ़ते तनाव को देखते हुए एमएनआईटी प्रशासन ने अंततः निलंबन आदेश वापस ले लिया। छात्रों और संगठनों ने इसे आंदोलन की ऐतिहासिक जीत बताया। आइसा प्रदेश अध्यक्ष मनीष कुमार ने कहा, “यह सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं बल्कि वंचित समुदाय के सम्मान और अधिकारों की लड़ाई है। शैक्षणिक संस्थानों में लगातार हो रहे उत्पीड़न के खिलाफ न्यायप्रिय लोगों ने आवाज उठाई और उसका परिणाम आज सभी के सामने है। आने वाले समय में भी जहाँ कहीं अन्याय होगा, हम एकजुट होकर लड़ाई लड़ेंगे।

सामूहिक एकता की जीत

डॉ. वेंकटेश के समर्थन में खड़े आंदोलन में आइसा, आईसीएम, एससीएस, आरर्वाइए, बाप्सा और एनएसयूआई सहित कई छात्र संगठन और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता शामिल थे। सभी संगठनों ने कहा कि यह जीत साझा संघर्ष, एकजुटता और निरंतर दबाव का परिणाम है। छात्र नेताओं का यह भी कहना है कि यह संघर्ष भविष्य में वंचित वर्ग के फैकल्टी और छात्रों के खिलाफ होने वाले किसी भी भेदभाव के खिलाफ मिसाल साबित होगा।

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