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इमामबाड़ा किला में आखिरी मजलिस को खिताब करते मौलाना। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
रामपुर, वाईबीएन संवाददता। बिहार से आए मौलाना उरूज मेहंदी ने कहा कि अजादारी एक रस्म नहीं है, अजादारी एक मिशन है। रस्म किसी भी तरह से निभाई जा सकती है, लेकिन मिशन बामकसद होता है।
ऑल इंडिया सहर रामपुरी मेमोरियल एकेडमी के तत्वधान से इमामबाड़ा किला में हो रहे अशरा-ए-मजालिस की आखिरी मजलिस को खिताब करते हुए मौलाना ने कहा कि हुसैनियत कयामत तक जिंदाबाद रहेगी। यह न सोचे कि इस मिशन को हमने जिंदा कर रखा है। फज़ाइल ए इमाम हुसैन सुन कर इमामबाड़ा क़िले मे नारो की सदाये बुलंद होने लगी। अज़ादार ख़ूब रोए और फिर ताबूत ए इमाम हुसैन वा गहवराए मौला अली असग़र बरमद हुआ।
मजलिस शुरू होने से पहले इंजीनियर तकी अब्बास बेग ने सोज़ख्वानी की वा पेशक्वानी जनाब हसन मेहदी, अलीम ज़ैदी, मिर्ज़ा मोहम्मद हैदर वा अब्बास हैदर ने की। बादे मजलिस अंजुमन सिपाहे हुसैनी, अंजुमन क़ायम ए अज़ा, अंजुमन गुलामाने हुसैनी, अंजुमन परचम ए अब्बास वा असलम महमूद साहब ने अलविदाई नोहा पढ़ा।
मजलिस मे मौलाना अली मोहम्मद नकवी,मौलाना मूसा रजा,मौलाना मुजफ्फर, मौलाना अहसन, मिर्जा मुज्तबा अली बेग, तस्लीम सहरी,फैसल रिज़वी, इमरान रिज़वी, सईद नकवी, आशु बेग, आसिफ सहरी, तनविरुल हैदर,मेहंदी अब्बास , इरफान जैदी, शोबी बाबर हुसैन रिजवी, मासूम आगा, अकबर रिजवी, मून, बाबर जैदी ,मंसूर हुसैन समेत काफी तादाद में अजादार मौजूद रहे।
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