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Rampur News: रजा लाइब्रेरी में निदेशक डा. पुष्कर मिश्र ने फहराया तिरंगा, बोले- शक्ति के रूप में उभर रहा भारत, बड़ी महाशक्तियां बौखला रहींं

रामपुर रजा लाइब्रेरी में स्वतंत्रता दिवस की 79वीं वर्षगांठ मनाई गई। इस दौरान निदेशक डा. पुष्कर मिश्र ने ध्वजारोहण किया। उन्होंने कहा कि देश अब बड़ी शक्ति बनकर उभर रहा है।

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Akhilesh Sharma
रामपुर

रामपुर रजा लाइब्रेरी में ध्वजारोहण के बाद संबोधन करते निदेशक डा. पुष्कर मिश्र। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

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रामपुर, वाईबीएन नेटवर्क। रामपुर रज़ा पुस्तकालय में 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पुस्तकालय के निदेशक डॉ. पुष्कर मिश्र ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया। ध्वजारोहण के उपरांत अपने संबोधन में डॉ. पुष्कर मिश्र ने कहा कि हर वर्ष की भांति आज भी हम यहां स्वतंत्रता का उत्सव मनाने के लिए एकत्रित हुए हैं।

मैं समस्त रामपुर रज़ा पुस्तकालय परिवार, सीआईएसएफ परिवार एवं रामपुर के वासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई देता हूं। हर बार के स्वतंत्रता दिवस और इस बार के स्वतंत्रता दिवस में एक बहुत गहरा अंतर है। आप सब जानते हैं कि कुछ समय पूर्व हमने भारतीय सेना के शौर्य का उत्सव मनाने के लिए ‘तिरंगा यात्रा’ निकाली थी। पहलगाम में कुछ लोगों ने मज़हब पूछकर निर्दोषों की हत्या करने वाले कायरों को उनके बिलों में ही दफन कर देने वाली भारतीय सेना के शौर्य को यह स्वतंत्रता दिवस नमन करने का अवसर भी है।

भारत की शक्ति विश्व में कुछ लोगों को पच नहीं रही

भारत एक शक्ति के रूप में उभर रहा है और हम सभी विभिन्न मीडिया माध्यमों से यह जानकारी प्राप्त कर रहे हैं कि भारत की यह बढ़ती हुई शक्ति विश्व में कुछ लोगों को पच नहीं रही है। यह भारत के लिए सफलता और गौरव का क्षण तो है ही, साथ ही आज हम एक राष्ट्र के रूप में उस स्तर पर पहुँच चुके हैं, जहां बड़ी-बड़ी महाशक्तियां भारत को देखकर बौखला रही हैं। लेकिन यह हमारे लिए एक चुनौती भी है, क्योंकि हमें इन बौखलाई हुई शक्तियों का सामना भी करना होगा।

वीरता के मार्ग से ही सुरक्षित रह सकते हैं

"वीर भोग्या वसुन्धरा" वीरता ही वह मार्ग है जिसके द्वारा हम स्वयं को सुरक्षित रख सकते हैं और समृद्धि की ओर बढ़ सकते हैं। भारत ने अपने पांच हज़ार वर्ष से अधिक के इतिहास में कभी भी किसी देश पर कब्जा या आधिपत्य जमाने का प्रयास नहीं किया। हम निरंतर पूरे विश्व को शांति, अहिंसा और सत्य का मार्ग दिखाते रहे हैं। हमारे ऋषियों ने "आ नो भद्राः कृतवो यन्तु विश्वतः" का उद्घोष किया, जिसका अर्थ है.. पृथ्वी पर जहां भी, जैसे भी, सद्विचार हों, वे हम तक पहुंचे। भारत ने कभी अपने द्वार बंद नहीं किए; वह सदैव शुभ का स्वागत करता रहा है, चाहे वह कहीं से भी आ रहा हो। इसलिए, जो संकीर्ण मानसिकता के लोग हैं, जो चाहते हैं कि केवल उनके विचार और उनका मार्ग ही पूरे विश्व पर आधिपत्य जमाए, वे ऐसे समावेशी विचार से जो सबको स्वीकार करता है और सबका स्वागत करता है, स्वाभाविक रूप से बौखला जाते हैं। भारत "पृथिव्यां सर्वे मानवाः" का उद्घोष भी करता रहा है। इसका भाव है कि पृथ्वी पर जहां भी, जिस रूप में, जैसा भी मनुष्य है, वहां से वह परिष्कार और उत्कर्ष को प्राप्त हो. यही भारत का संदेश रहा है। हम इस मार्ग पर अडिग भाव से चलते रहेंगे। भारत के नेतृत्व ने सम्पूर्ण विश्व को यह संदेश दिया है कि भारत अपनी पांच हज़ार वर्षों से अधिक की विरासत को लेकर ही, अपनी संकल्पबद्धता और अडिगता के साथ, आने वाली पीढ़ियों को शांति, सुरक्षा, समृद्धि और सर्वस्वीकार के भाव से सिंचित करता रहेगा, परंतु इसे कोई भारत की दुर्बलता न समझे।

भारत के नेतृत्व ने आतंकियों के हृदय में भय पैदा किया

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मैं अभी कश्मीर की यात्रा से लौटा हूँ। कश्मीर विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रो. रियाज पंजाबी की आतंकियों ने हत्या कर दी थी। उन्होंने अपने अंतिम समय में कहा था-  राष्ट्र के conflict management को राष्ट्र की कमजोरी न समझो; यदि राज्य और राष्ट्र अपनी शक्ति के साथ उतर आया, तो पूरी पृथ्वी पर तुम्हें छिपने के लिए एक इंच भूमि भी नहीं मिलेगी। मैं भारत के नेतृत्व को साधुवाद देता हूं कि उन्होंने आतंकियों के हृदय में भय स्थापित कर दिया है। आज, यदि विश्व में कहीं भी भारत के विरोध में कोई षड्यंत्र रचा जा रहा है, तो उसकी रूह कांप जाती है। यह भारत की बढ़ती हुई शक्ति का परिचायक है। लेकिन भारत अपने शौर्य, अपनी शक्ति और अपने बल का उपयोग "परित्राणाय साधूनाम्" - अर्थात पृथ्वी की सज्जन शक्तियों की रक्षा - और "विनाशाय च दुष्कृताम्" - अर्थात जो शक्तियाँ अपनी दुष्टता से पृथ्वी की शांति, सुरक्षा और मानवता के समृद्धि मार्ग को बाधित करती हैं, उनका विनाश - के लिए करेगा।

भारत का संदेश- विश्व को शांति-समृद्धि और सुख और सुरक्षा का मार्ग दिखाएं

भारत को यह दायित्व हजारों वर्ष पूर्व ही उसके ऋषियों ने दे दिया था, जब उन्होंने "पृथिव्यां सर्वे मानवाः" कहा था। इसलिए, भारत के प्रत्येक नागरिक का- चाहे वह किसी भी मज़हब का हो, कोई भी भाषा बोलता हो, किसी भी पंथ या सम्प्रदाय का हो, किसी भी पूजा पद्धति का पालन करता हो, किसी भी लिंग या भूभाग का हो- यह धर्म है कि आज की इस अशांत और असुरक्षित होती पृथ्वी को, जहां 21वीं शताब्दी के 25 वर्ष बीतने के बाद भी युद्ध का कोई अंत नज़र नहीं आ रहा है, और कई राष्ट्र युद्ध में हैं या उसकी तैयारी कर रहे हैं, ऐसे में आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए, अपनी ऋषिवाणी का स्मरण करते हुए, सम्पूर्ण विश्व को शांति, समृद्धि, सुख और सुरक्षा का मार्ग दिखाएं। यही आज के इस 15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस का आह्वान भी है।

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