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तरही मुशायरे में मौजूद शायर।
रामपुर, वाईबीएन नेटवर्क। रामपुर की मशहूर व मारूफ रूहानी खानकाह अहमदिया कादरिया मुजद्दिदिया में 166वें सालाना उर्स मुबारक के मौके पर 27वां तरही मुशायरा बरोज इतवार फ़ुरक़ानिया हॉल में मुनअक़िद हुआ। खानकाह अहमदिया में यह उर्स हज़रत सैय्यदना शाह अहमद अली खां साहब अहमद रहमतुल्लाह अलैह (मुतवफ़्फा 1865) और हज़रत ख़तीब-ए-आज़म मौलाना शाह वजीहुद्दीन अहमद साहब कादरी मुजद्दिदी रहमतुल्लाह अलैह (मुतवफ़्फा 1987) की याद में मुनअक़िद किए जाते हैं।
बाद नमाज़-ए-असर क़ुरआन ख्वानी और क़ुल शरीफ़ हुआ। बाद नमाज़-ए-मग़रिब रामपुर की मशहूर इल्मी शख़्सियत डॉक्टर शआइरउल्लाह खां वजीही, मौलवी मुहम्मद नासिर खां कादरी और मौलवी अब्दुल वहाब खां फैज़ान की सरपरस्ती में मुनअक़िद होने वाले इस 27वें तरह़ी मुशायरे की निज़ामत के फ़राइज़ मुफ़्ती मआरिफ़ उल्लाह खां ने अंजाम दिए। आलमी शोहरत याफ़्ता शाइर अज़हर इनायती साहब ने मुशायरे की सदारत फ़रमाई. क़ारी फ़रहत सुलतान खां साहब की पुर सोज़ तिलावत-ए-कलाम-ए-मजीद से मुशायरा का आग़ाज़ हुआ. इस के बाद मौलवी मुहम्मद मुशाहिद फ़ुरक़ानी ने नात-ए-पाक पेश फ़रमाई. बादहू नातिया मिसरा तरह़ पर शुआरा-ए-किराम ने अपना कलाम पेश किया।
मिसरा तरह़ यूं था-
"जाता हूं मैं हबीब-ए-ख़ुदा के सलाम को"
सरकार ने बुलाया है अब मुझ गुलाम को---जाता हूं मैं हबीब-ए-ख़ुदा के सलाम को - जाबिर अहमद फुरकानी
बंदे ख़ुदा के बीच से हट जाएं सब ह़िजाब---पाले जो आप जैसे कुऊद ओ क़याम को - सामिर फुरकानी
उन पर दुरूदे पाक का शायद हो यह सिला--- जाता हूं मैं हबीब-ए-ख़ुदा के सलाम को -कमर रामपुरी
ज़ुल्मत के ख़ात्मे के लिए अपने नूर से---मबऊस रब ने कर दिया खैरउल अनाम को -मज़हर रामपुरी
दरकार कुछ भी क्यों हो फिर इक तश्ना काम को---होंटों से वह लगा दें जो कौसर के जाम को -मुहयिददीन गुलफाम
ज़ाते नबी में जिस ने फ़ना ख़ुद को कर दिया---शारिक़ कोई न पहुंचेगा उस के मक़ाम को -शारिक नोमानी
ऐ काश संगे दर पे हो नाज़िम जबीन मेरी---पँहुचे मेरी हयात वहीं इखतिताम को - अलिफ़ नाज़िम
रुसवाईयों के गार में गिरना ही था उसे---उम्मत ने जब भुला दिया इन के पयाम को -मुजाहिद फराज़
सच पूछिये तो अब है यही मेरा मशग़ला---करता हूं याद दिल से मैं ख़ैर-उल-अनाम को - आज़र नोमानी
नादान यह भी मेरी ग़ुलामी का है सुबूत--- जो सुन के चूम लेता हूं आक़ा के नाम को -मौलवी मुहम्मद नासिर ख़ान नासिर फ़ुरक़ानी
वह शख़्स जन्नती है मुक़द्दर का है बुलंद---देखा है जिस ने ख्वाब में खैर -उल-अनाम को - दिलकश जलौनवी
देखा है जब से रौजा ए खैर -उल-अनाम को--- जी चाहता नहीं है कहीं भी क़याम को - डॉक्टर अब्दुल वहाब सुखन
रोशन चराग़ ए ज़ीस्त है किरदार आप का---दुशवार कर रहे हैं हम आसान काम को -ह़स्सान अफ़ंदी
रो रो के सब सुनाऊँगा खैरउल अनाम को----जाता हूं मैं हबीब-ए-ख़ुदा के सलाम को - जावेद नसीमी
इंसान को शुऊर ए कुलू वश रबू दिया---यह जानता नहीं था ह़लाल ओ ह़राम को - जुनैद अकरम फ़ारूकी
सुख नैन की है आप से बस इतनी इल्तिजा---हर ग़म से ही बचाइये अपने ग़ुलाम को - ज़फ़र सुखनैन
आक़ा गए थे जब शब ए मेराज अर्श पर---अर्श-ए-बरीं भी झुक गया था एहतराम को - नूर वजीही
पढ़ता हूँ जब भी दिल से खुदा के कलाम को---पाता हूं ह़र्फ़ ह़र्फ़ में ख़ैर-उल-अनाम को -क़ारी यासीन अहमद ख़ान नातिक नोमानी
यह निस्बत ए नबी का शरफ है के बादशाह---झुक कर सलाम करते हैं उन के गुलाम को - बिलाल राज बरेली
जिल्लत जदह न रह, वही बन उम्मती के फिर---आज़ाद सब खड़े हों तेरे एहतेराम को -ह्यूमन आज़ाद
बरकत नसीब होगी हर एक सुबहो शाम को---आदत बनाओ अपनी दरूदो सलाम को = शाह फ़ज़ल अहमद अमरोहवी
कहते हैं आफ़रीन फ़रिश्ते गुलाम को---जाता हूं मैं हबीब-ए-ख़ुदा के सलाम को -अनीस अमरोहवी
नाते रसूले पाक के नजमी तुफ़ैल में--- एक रोज फिर बुलाएंगे आका ग़ुलाम को -नईम नजमी
कर ले क़ुबूल नात ए नबी बारगाह में---हक़ के लिए बना दे वसीला कलाम को -हक रामपुरी
ले जा रहे हैं ख़ुल्द में उन के ग़ुलाम को--- हाज़िर हों हूरयान-ए-बहिश्त एहतेमाम को - माइल आफ़नदी
ग़ार ए हिरा से पूछये, सदियां गुज़र गईं--- भूला नहीं है आज भी उन के क़याम को -फरीद शमसी
अज़हर तमाम उम्र न जागूं मैं ख़्वाब से---देखूं कभी जो ख़्वाब में ख़ैर-उल-अनाम को - अज़हर इनायती
नातिया नशिस्त के बाद मनकबती दौर का आग़ाज़ हुआ जिस का मिसरा-ए-तरह यूं था:
"याद-ए-वजीह में तो अजब ही सरूर है"
इस के तहत मुनदर्जा ज़ैल शोअरा का मुंतख़ब कलाम पेश-ए-ख़िदमत है.
सुन ले ख़िताब उन का जो सिद्क़-ए-दिली के साथ---हैं मोतदिल मिज़ाज, ये कहता ज़रूर है -सामिर फुरकानी
क़ैफ़ियतें हैं इल्म की, इर्फ़ां का नूर है---"याद-ए-वजीह में तो अजब ही सरूर है" - नूर वजीही
पाते हैं उन की याद से रूहों में ताज़गी---"याद-ए-वजीह में तो अजब ही सरूर है" - शकील कमर
क्या वस्फ़ था वजीह में, ये उस से पूछिये---इश्क़-ए-वजीह-ए-दीन में जो चूर चूर है -शारिक नोमानी
दिल से किया जो याद तो फिर मुझ को ये लगा---"याद-ए-वजीह में तो अजब ही सरूर है" - आजर नोमानी
उस के अहद में दूर तक उस की नहीं मिसाल---वह शख्स अपने दौर का एक कोह ए नूर है - नासिर फुरकानी
दिलकश ये कह दो उर्स की महफ़िल में बेख़तर---क़ाइल नहीं जो उर्स का, वो बे-शुऊर है - दिलकश जलौनवी
क्या थी निगाह जिस ने बदल डाली ज़िन्दगी---जितने वजीही चेहरे हैं, हर एक पे नूर है - अनीस अमरोहवी
रंजिश है, दुश्मनी है, न दिल में फुतूर है---अहले वजीह जो भी है, फितनों से दूर है - हस्सान आफ़नदी
दिल बाग़ बाग़ हो गया, चेहरा भी खिल उठा---"याद-ए-वजीह में तो अजब ही सरूर है" -मुशाहिद फ़ुरकानी
नातिक़ हर एक साहिब-ए-दिल को है एतेराफ़---"याद-ए-वजीह में तो अजब ही सरूर है"
- यासीन खान नातिक नोमानी
वाबसतगान आप के कहते हैं सब यही---"याद-ए-वजीह में तो अजब ही सरूर है" - शाह फजल अहमद अमरोहवी
जिस आदमी के दिल में नहीं इश्क़-ए-औलिया---सच बात ये है, उस को दिमाग़ी फुतूर है -ज़फ़र सुखनैन
ख़ानक़ाह-ए-अहमदिया क़ादरिया में शाम छः बजे शुरू हो कर ये शेरी नशिस्त रात दस बजे तक जारी रही. हज़रत मौलाना अब्दुल वह्वाब ख़ान फ़ैज़ान की पुर असर दुआ पर ये महफ़िल इख़्तेताम पज़ीर हुई. इस महफ़िल-ए-शेअर-ओ-सुख़न में शोअरा-ए-किराम के अलावा कसीर तादाद में अहल-ए-शहर ने शिरकत फ़रमाई।
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