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भगवान् श्री कृष्ण Photograph: (इंटरनेट मीडिया )
शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता
कृष्ण को जितना जानो कम है जितना पढ़ो वो भी कम। उसके बावजूद तमाम उल्लेख ऐसे हैं जो मन को रोमांचित कर देते हैं। कृष्ण जीवन एक बहुत बड़ा सन्देश है। लोहिया नास्तिक होकर भी कृष्ण के अस्तिव पर शक नहीं करते बल्कि उन्हें कर्म का देवता मानते हैं।कृष्ण ने भारत को पश्चिम से पूरब में जोड़ा। लोहिया कहते हैं कि कृष्ण तो हर उस कर्म का आनंद लेना चाहते हैं जो एक साधारण मनुष्य करता है वह अपने देवत्व पर घमंड करने वाले देव हैं ही नहीं।कृष्ण की सभी चीजें दो हैं : दो मां, दो बाप, दो नगर, दो प्रेमिकाएं या यों कहिए अनेक। जो चीज संसारी अर्थ में बाद की या स्वीकृत या सामाजिक है वह असली से भी श्रेष्ठ और अधिक प्रिय हो गई है। यों कृष्ण देवकीनन्दन भी हैं, लेकिन यशोदानन्दन अधिक। ऐसे लोग भी मिल सकते हैं जो कृष्ण की असली मां, पेट-मां का नाम न जानते हों, लेकिन बाद वाली दूध वाली, यशोदा का नाम न जानने वाला कोई निराला ही होगा। द्वारका और मथुरा की होड़ करना कुछ ठीक नहीं, क्योंकि भूगोल और इतिहास ने मथुरा का साथ दिया है। किन्तु यदि कृष्ण की चले तो द्वारका और द्वारकाधीश, मथुरा और मथुरापति से अधिक प्रिय रहे।
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कान्हा को गोवर्धन पर्वत अपनी कानी उंगली पर क्यों उठाना पड़ा था? इसलिए न की उसने इन्द्र की पूजा बन्द करवा दी और इन्द्र का भोग, खुद खा गया और भी खाता रहा। इन्द्र ने नाराज होकर पानी, ओला, पत्थर बरसाना शुरू किया,तभी तो कृष्ण को गोवर्धन उठाकर अपने गो और गोपालों की रक्षा करनी पड़ी। कृष्ण ने इन्द्र का भोग खुद क्यों खाना चाहा?
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यशोदा मां, इन्द्र को भोग लगाना चाहती है, क्योंकि वह बड़ा देवता है, सिर्फ वास से ही तृप्त हो जाता है और उसकी बड़ी शक्ति है, प्रसन्न होने पर बहुत वर देता है और नाराज होने पर तकलीफ। बेटा कहता है वह इन्द्र से भी बड़ा देवता है, क्योंकि वह तो वास से तृप्त नहीं होता और बहुत खा सकता है और उसके खाने की कोई सीमा नहीं। यही है कृष्ण-लीला का रहस्य। वास लेने वाले देवताओं से खाने वाले देवताओं तक की भारत-यात्रा ही कृष्ण-लीला है।
लोहिया ने जो कृष्ण के बारे में लिखा वो खुद एक शोध है ।
अच्छा देखिये रसखान क्या कहते हैं-
सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तू पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥
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कभी इसकी गहराई में जाकर देखिये कि ऐसा क्या था कि कृष्ण ने बाकी देवताओं को देखकर छाछ पीछे छुपा लिया और जब देवताओं ने कहा कि छाछ ही तो है दे दीजिए हमें भी इसके आगे आप अमृत को भी छोटा मान रहे हैं तो कृष्ण रोने लगे और कहा पता है यह छाछ मुझे ऐसे ही नहीं मिला बल्कि इसको पाने के लिये मुझे नाच दिखाना पड़ा तब यह छाछ मिला।
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यही कृष्ण चरित्र है जो पूर्ण है और कृष्ण जीवन का यही सन्देश है कि जीवन का पूर्णता से आनंद लो इसमें अहम् के लिए जगह ही नहीं है, वरना तीनों लोकों का स्वामी छाछ के लिए गोपियों को नृत्य नहीं दिखाता।
लेखक
डॉ. स्वप्निल यादव
लेखक संकल्प भारत शोध न्यास के संस्थापक हैं।
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