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रामकथा के समापन पर आरती करते आयोजक Photograph: (वाईबीएन)
शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता। मंगलमय परिवार की ओर से ओसीएफरामलीला मैदान में आयोजित श्रीराम कथा का भावविभोर कर देने वाले भरत–मिलाप प्रसंग के साथ समापन हो गया। कथाव्यास पंडित विजय कौशल महाराज ने भक्ति, प्रेम और त्याग से ओतप्रोत इस प्रसंग का ऐसा वर्णन किया कि पूरा पंडाल अयोध्या और चित्रकूट के मिलन-स्थल में परिवर्तित होता दिखाई दिया।
महाराज ने कहा कि राजकुमार भरत का राम से वन में मिलन केवल भाइयों का मिलन नहीं था, बल्कि यह समर्पण, नैतिकता और आदर्श भक्ति का शिखर था। भरत के हृदय में राम के लिए जो प्रेम था, वह संसार के अन्य सभी प्रेम से श्रेष्ठ है। नंदिग्राम से निकलते समय भरत के मन में एक ही संकल्प था, राम को अयोध्या वापस लेकर जाना। महाराज ने वह मार्मिक क्षण सुनाया जब भरत ने दूर से राम को आते देखा और दौड़कर उनके चरणों से लिपट गए।
रिश्ते रक्त से नहीं, भावनाओं से बनते हैं, बोले कथाव्यास
रामचरितमानस की चौपाइयों - ‘बड़ी मिलिभगति…’ और ‘कहहु राम करि…’—का पाठ करते ही वातावरण भावपूर्ण हो उठा। श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गईं और पूरा पंडाल भक्ति के सागर में डूब गया। महाराज ने कहा कि भरत का प्रेम यह संदेश देता है कि रिश्ते रक्त से नहीं, बल्कि भावनाओं से बनते हैं। भरत ने राम को राजा मानकर स्वयं को उनका दास मान लिया और सेवा में समर्पित कर दिया, यही भक्ति की सर्वोच्च अवस्था है।
यह श्रत्द्धालुगण रहे मौजूद
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मनोज दीक्षित, डॉ. संजय पाठक, राजपूत रेजीमेंट के पुष्पेंद्रगंगवार, एडीएम (वित्त एवं राजस्व) अरविंद कुमार आदि विशिष्टजन उपस्थित रहे। वैदिक पूजन अंकुर शुक्ल, बृजराज दास, आदेश कुमार, विश्वास अग्नि शर्मा, दिनेश शुक्ल, आलोक द्विवेदी आदि ने कराया।
प्रसाद के लिए लगी लंबी कतारें
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कथा के बाद भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें प्रसाद ग्रहण करने को श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगीं। भीड़ बढ़ने से व्यवस्थाएं कुछ देर के लिए लड़खड़ा गईं। पानी की कमी के चलते गिलास समाप्त हो गए और बच्चों को अंजलि से पानी पीना पड़ा। धूप में इंतजार करते हुए श्रद्धालु कुछ समय तक परेशान भी हुए, लेकिन इसके बाद सबको प्रसाद वितरण सुचारु रूप से कराया गया।
भक्ति, प्रेम और आदर्श से परिपूर्ण भरत–मिलाप की यह अध्यात्ममय संध्या देर रात तक श्रद्धालुओं के मन में भक्ति की छाप छोड़ गई।
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