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एक दूसरे के प्रति सम्मान के भाव मुद्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री सुरेश कुमार खन्ना Photograph: (इंटरनेट मीडिया)
शाहजहांपुर, वाईबीएनसंवाददाताः72 सालकीउम्रमें 36 सालजनताकेनाम...यानीबचपन, युवावस्थासमेतकुलजीवनमेंआधीजिंदगीजनसेवाकोसमर्पित। हमबातकररहेहैंप्रतिकूलकोभीअनुकूलबना]राजनीतिकेशिखर पर सुशोभित प्रदेशकेवित्तएवंसंसदीयकार्यमंत्रीसुरेशकुमारखन्नाकी। 16 नवंबर यानी आज वह रक्तदान के साथ 73वें वर्ष में प्रवेश करेंगे। जन्मदिन के अवसर पर नगर विधायक सुरेश कुमार खन्ना की उन उपलब्धियों और उनकी जुझारू, जनता-मुखी राजनीति को याद किया जाना चाहिए जिसने उन्हें न सिर्फ शाहजहांपुर का प्रतिनिधि बनाया, बल्कि उत्तर प्रदेश की सियासत में एक मजबूत और भरोसेमंद स्तंभ के रूप में स्थापित किया है। उनकी विकास-दृष्टि, समावेशी नेतृत्व और लोगों के प्रति उनकी अपार प्रतिबद्धता उन्हें उस ‘जन-देवता’ के रूप में बनाती है। उनकेकृतित्व, व्यक्तित्वकोशब्दोंमेंबांधनामुश्किलसाहै, लेकिनजीवनकेकुछखासपलोंकोसाझाकरतेहुएगौरवकीअनुभूतिहोनास्वाभाविकहै।
बिस्मिल, अशफाक के पदचिन्हों से शिक्षा का सफर
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शहरकेमुहल्लादीवानजोगराजमें1953 को जन्में सुरेश कुमार खन्ना के पिता राम नारायण खन्नाओसीएफ के सामान्य कर्मचारी थे। काकोरी ट्रेन एक्शन के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक खां ने जिस विद्यालय एबीरिचइंटर कालेज से शिक्षा प्राप्त की, उसी विद्यालय से हाईस्कूल तक पढाई की। बाद में डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (आगरा) से स्नातक किया और लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की। छावनी परिषद की राजनीति, जीएफ कालेज में छात्र राजनीति के दौरान भारतमाता मूर्ति के लिए स्थापना के लिए संघर्ष किया और सफलता प्राप्त की।
वकालत नींव पर खडी की राजनीति की बुलंद इमारत
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सुरेश खन्ना ने वकालत को व्यवसाय के रूप में अपनाया। वर्ष 1984 में लोकदल (LokDal) के टिकट पर पहली बार विधानसभा लड़ा, लेकिन हार गए। उन्होंने हार से सीख ली। 1989 में उन्होंने भाजपा (BJP) के टिकट पर शाहजहांपुर से चुनाव लड़कर उन्होंने हिंदुत्व की शक्ति से नबाव सिकंदर अली खां को हराकरपहली जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने 1991, 1993, 1996, 2002, 2007, 2012, 2017 और 2022 में लगातार जीत दर्ज की, यानी नौवीं बार विधायक बने। लगातार जीत से राजनीति में बडा कद हो गया।
लोकसभा चुनाव खुद हारे, लेकिन जिसको चाहा वह जीतता रहा
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सुरेश खन्ना ने हार से सीख ली। 1984 में प्रथम विधानसभा चुनाव हारने के बाद से वह लगातार जीतते आ रहे हैं। यही हाल रहा वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में। केंद्रीय राजनीति की प्रथम हार से भी उन्होंने सीख ली। नगर विधानसभा को कर्मस्थली बनाया, इसके बाद वह जिले की राजनीति के केंद्र बन गए। उन्होंने दोबारा कभी लोकसभा चुनाव नहीं लडा, लेकिन वह किंगमेकर की भूमिका में बने हुए हैं। जिसको चाहा, जिताया, उनकी बदौलत ही अरुण सागर दूसरी बार लोकसभा सदस्य बने। मिथिलेश कुमार कठेरिया को राज्यसभा पहुंचा दिया। सतत जीत में उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता,धर्म या पार्टी-कार्ड से कहीं ऊपर –एक बड़ा कारक है।
नगर विकास से संसदीय कार्यमंत्री तक का सफर
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सुरेश खन्ना ने पहली बार नगर विकास व शहरी विकास (UrbanDevelopment) का मंत्रालय राज्यमंत्रीके रुप में संभाला। लाल जी टंडन से उन्होंने काफी कुछ सीखा। इसके बाद उन्होंने पर्यटन, नियोजन, नगर निकास, शहरी विकास तथा संबंधित मंत्रालयों के साथ ही विधानसभा के मुख्य सचेतक व विविध समितियों में अपनी योग्यता से प्रदेश की राजनीति में योगदान किया। 19 मार्च 2017 से संसदीय कार्य LegislativeAffairsमंत्रालय के साथ चिकित्सा शिक्षा (MedicalEducation)में अहम योगदान किया। 21 अगस्त 2019 से वित्तमंत्रालय का भी दायित्व निभा रहे हैं। इन विभागों में उनके काम ने विकास को गति दी है और उन्हें प्रशासन में एक कठोर लेकिन न्यायशील प्रशासक के रूप में प्रतिष्ठित किया है।
शाहजहांपुर में विकास को नई दिशा से बढीलोकप्रियता
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खन्ना ने शाहजहांपुर में हनुमत धाम, शहीद संग्रहालय, शहीद उद्यान, न्यूसिटी (ककरा), जैव विविधता पार्क, आडीटोरियम, सर्किट हाउस आदि विकास कार्यों के साथ शाहजहांपुर को नगर निगम स्मार्टसिटी में शामिल कराया। शाहजहांपुर विकास प्राधिकरण का भी गठन करा दिया। इससे विकास-परियोजनाओं को बढ़ावा मिला। स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रियता के साथ प्रदेश व देश की राजनीति में भी दखल बढ गया। सबसे खास बात यह है कि उन्हें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों से समर्थन मिलता है। मुस्लिम बहुल इलाकों में भी उनकी जीत सुनिश्चित रहती है, यही उनकी सुलभता और भरोसेमंद छवि को दिखाता है।
समय प्रबंधन, भक्ति भावना व कर्म साधना बडी ताकत
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सुरेश खन्नाकी कार्य-शैली में समय प्रबंधन, भक्ति भावना व कर्म साधना का अहम योगदान है। शाहजहांपुर में रहने पर सुबह घर सेहनुमत धाम तक पैदल भ्रमण पूजा-दर्शन से दिन की शुरुआत करते हैं। संकट मोचक हनुमान की भक्ति के साथ ही इसी दौरान लोगो के संकट दूर करने के पुरुषार्थ से वह राजनीति कर्म साधना को जीते हैं। स्थानीय पर्यटन, धार्मिक स्थलों को भी बढ़ावा देने से उनकी व्यक्तिगत छवि और जन-संबद्धता का दायरा लगातार बढता रहा।
प्रतिकूल को अनुकूल बनाने का करिश्माई व्यक्तिव, प्रभावी नेतृत्व शैलीबडी ताकत
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खन्ना की सबसे बड़ी खासियत है, वह अपने व्यवहार में सरलता, जनता के प्रति लगाव, और विरोधियों के साथ भी शांतिपूर्ण और सकारात्मक संबंध रखते हैं।उनकी लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण यह है कि वे “जन समस्या सुनना और हल करना” अपनी प्राथमिकता मानते हैं। सुबह छह बजे से रात में सोने तक वह जनसेवा के कार्यों में लगे रहते हैं। जिससे वे स्थानीय लोगों संकट मोचक, लोक-देवता जैसे रूप में देखे जाते हैं। उनकी प्रशासनिक क्षमता, विकास-उन्मुख दृष्टि और समावेशी मानसिकता ने उन्हें सख्त प्रशासक के साथ-साथ प्रिय नेता भी बनाया है। विपरीत परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेने की गजब की ताकत है। उदाहरण के तौर जानिए की जब प्रदेश में सपा सरकार थी, तब उन्होंने जोडतोड करके भाजपा प्रत्याशी के रूप में अजय प्रताप सिंह यादव के पक्ष में माहौल बनाकर जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा दिया।
राजभवन दूरदर्शी राजनीति व अंतःकरण के भाव का प्रतीक
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खन्ना ने “राजभवन नाम से कैंप कार्यालय” बनाया है, वह उनकी महत्वाकांक्षा और जन-केंद्रित सोच को दर्शाता है। यह बताता है कि वे सिर्फ विधायक या मंत्री नहीं हैं, बल्कि एक स्थायी राजनीतिक प्रतिष्ठान के रूप में जनता के करीब रहना चाहते हैं।यह कार्यालय उनकी पहचान को और मजबूत करता है और उनकी जनता-मुखी राजनीति का प्रतीक बनता है। यह भी दर्शाता है कि सक्रिय राजनीति के बाद उनका अंतिम पडाव राज्यपाल भी हो सकता है।
चुनौतियों से जूझ बनाए रिकार्ड
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उनके लगातार चुनाव जीतने का रिकार्ड इतना मजबूत है कि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज किए जाने की चर्चा भी उठी है। उनकी सियासत में यह दुर्दम्य पकड़ विरोधियों के लिए बड़ी चुनौती रही है।सालों से उनके खिलाफ बड़ी रणनीति बनाई गई, लेकिन भी मात देना मुश्किल हो गया। इसके बावजूद, उन्होंने विपक्षी विचारों को भय नहीं बनने दिया और विकास-मुद्दे को अपने नेतृत्व का केंद्र बनाया है।
70 के दशक में भी युवाओं सरीखा जोश
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आज यानी 16 नवंबर को वित्त एवं संसदीय कार्यमंत्री सुरेश कुमार खन्ना 73वें वर्ष में प्रवेश करेंगे। अभी भी युवाओं की तरह जोश, जुनून व जज्बा के साथ 18 घंटे तक कार्य करते हैं। उनका जीवन युवाओं के लिए दृढ़ संकल्प, ईमानदारी और निरंतर सेवा का प्रेरक संदेश देता है। साधारण पृष्ठभूमि से उठकर 1984 से लगातार जनता का विश्वास जीतना उनके समर्पण और नैतिक नेतृत्व का प्रमाण है। उनका जीवन-दर्शन यही सिखाता है कि लक्ष्य बड़ा हो तो मेहनत, अनुशासन और सकारात्मक सोच के बल पर हर चुनौती जीती जा सकती है। जनसेवा को उन्होंने पद से नहीं, कर्तव्य से जोड़ा, यही उन्हें विशिष्ट बनाता है। उनका जन्मदिन युवाओं को यह संदेश देता है कि निष्ठा, नैतिकता और कर्मशीलता ही सफलता का वास्तविक मार्ग है।
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