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तिलहर के कब्रिस्तान में होलिका दहन के लिए तैयारी को पहुंचे मुतवल्ली लाला भाई Photograph: (ybn network )
शाहजहांपुर ,वाईबीएन संवाददाता
जब इंसानियत और मोहब्बत की रोशनी दिलों में हो तो जाति धर्म ऊंच नीच की बात अपने आप खत्म हो जाती है। दिखता है तो सिर्फ इंसानियत और भाईचारे का जज्बा। होली पर तिलहर में ऐसी ही एक मिसाल दशकों से कायम है जो आने वाली पीढ़ियों को भाईचारे का संदेश देने के लिए काफी है।मोहल्ला इमली में हिंदू और मुसलमान दोनों मिलजुल कर होली के रंगों और रमजान के बीच एक दूसरे के चेहरे पर मुस्कुराहट देखने के लिए बेताब रहते हैं। यही वजह है कि कब्रिस्तान की चहारदिवारी में दोनों समुदाय के लोग होली पर एक दूसरे के गले लगकर परस्पर सलामती की दुआ मांगते हैं।
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भाईचारे की लौ जला रहे 65 वर्षीय मसहूद हसन उर्फ लाला भाई
शाहजहांपुर जिले के तिलहर कस्बे में हर साल होली का त्योहार एक अनूठी रौशनी में नहाया होता है। यहां एक कब्रिस्तान में होली दहन का आयोजन होता है, जो सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की एक बेमिसाल मिसाल पेश करता है। जहां देश के कई हिस्सों में प्रशासन को सद्भाव बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, वहीं तिलहर में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर होली का त्योहार धूमधाम से मनाते हैं। यह कब्रिस्तान निजामिया तलैया मोहल्ले में स्थित है, जहां दशकों से होली दहन की परंपरा निभाई जा रही है।आपसी भाईचारे कि यह अद्भुत मिसाल कई पीड़ियो से कायम है। इस भाईचारे की लौ जलाकर इंसानियत के बगीचे को रोशन कर रहे हैं 65 वर्षीय मसूद हसन उर्फ लाला भाई। कब्रिस्तान के मुतवल्ली का कहना है कि उन्होंने अपने दादा अहमद हुसैन उर्फ मद्दू खां द्वारा आजादी से पहले लगाए गए उस पौधे को सीखने की कोशिश की है जो समाज में मोहब्बत और भाईचारे की खुशबू फैला रहा है।
मुसलसल हो जिसका ईमान वही तो है असली मुसलमान
आज जहां समाज में लोग छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा फसाद करने पर आमादा हो जाते हैं और धर्म व जाति का जहर बोकर नफरत की खेती करते हैं। वही दशकों से कब्रिस्तान में होलिका दहन पारस्परिक सद्भाव के साथ होता चला आ रहा है । लाला भाई का कहना है लगभग 50 साल से मुतवल्ली होने के नाते उनकी सहमति से मोहल्ले के लोग कब्रिस्तान में होलिका दहन के बाद आकर हंसी-खुशी आखत डालते हैं और दोनों समुदायों के लोग एक दूसरे की खुशी में शामिल होते हैं। झगड़ा और मनमुटाव तो सोचा भी पाप है। उनका कहना है मुसलसल है जिसका ईमान वही तो है सच्चा मुसलमान। जब तक वह जिंदा है यह भाईचारे की परंपरा कायम रहेगी।
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कब्रिस्तान में होलिका दहन, हिंदू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल
शाहजहांपुर जिले के तिलहर नगर में हर साल होली का त्योहार आपसी सौहार्द और भाईचारे की नई रोशनी बिखेरता है। यहां एक ऐतिहासिक कब्रिस्तान में होली दहन का आयोजन होता है, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का जीवंत प्रमाण है। जहां देश के अन्य हिस्सों में प्रशासन को सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने पड़ते हैं, वहीं तिलहर में यह परंपरा सदियों से बिना किसी विघ्न के चली आ रही है। निज़ामिया तलैय्या /इमली मोहल्ले में स्थित इस कब्रिस्तान में हर वर्ष धूमधाम से होलिका दहन किया जाता है, जिसमें दोनों समुदायों के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। सदियों पुरानी परंपरा, अखंड भाईचारे की लौ तिलहर के इस कब्रिस्तान में होली जलाने की परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है। 65 वर्षीय मशहूद हसन खान उर्फ लाला, जो इस कब्रिस्तान के मुतवल्ली हैं, इसे दिल से आगे बढ़ा रहे हैं। उनके अनुसार, यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आपसी प्रेम और सौहार्द का प्रतीक है। होली के दिन हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग एकत्रित होकर होलिका दहन करते हैं और फिर एक-दूसरे को रंग-गुलाल से सराबोर कर उल्लास मनाते हैं। यह दृश्य हर साल एक नई प्रेरणा देता है और समाज को प्रेम व भाईचारे का संदेश देता है।
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नफरत के दौर में प्रेम और सौहार्द का संदेश
आज जब समाज में धर्म और जाति के नाम पर वैमनस्य फैलाने की कोशिशें की जा रही हैं, तब तिलहर का यह आयोजन शांति और एकता का दीप जलाए हुए है। आमतौर पर होली के दौरान कई शहरों में मस्जिदों और कब्रिस्तानों को तिरपाल से ढक दिया जाता है ताकि रंगों से उन्हें बचाया जा सके, लेकिन तिलहर में ठीक इसके विपरीत हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग मिलकर होलिका दहन करते हैं और उल्लासपूर्वक त्योहार मनाते हैं। यह आयोजन दर्शाता है कि यदि इरादे नेक हों तो सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखना कोई मुश्किल कार्य नहीं है।
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पूरे देश के लिए एक प्रेरणास्रोत बना तिलहर
कब्रिस्तान में होली का यह अनूठा आयोजन न केवल क्षेत्रीय सौहार्द को प्रकट करता है, बल्कि संपूर्ण देश के लिए प्रेरणा भी है। यह सिद्ध करता है कि त्योहार लोगों को जोड़ने के लिए होते हैं, तोड़ने के लिए नहीं। तिलहर के लोगों ने यह साबित कर दिया है कि सांप्रदायिक एकता केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक जीवंत वास्तविकता हो सकती है, बशर्ते हम इसे सच्चे मन से अपनाएं। यह परंपरा केवल तिलहर ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है। तिलहर की यह परंपरा पूरे समाज को यह संदेश देती है कि प्रेम, सौहार्द और भाईचारे से ही समाज में शांति और विकास संभव है।
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ईद की खुशियां हो या होली के रंग, दिवाली के पटाखे हो या हो मोहर्रम का गम, सब मिलजुल का एक साथ बैठते हैं और दुख दर्द में शामिल होते हैं यही तो हमारी संस्कृति है।
आमिर मियां शायर एवं समाजसेवी
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होली और रमजान हमें मतभेद भुलाकर परस्पर मेल मिलाप और भाईचारा सिखाते हैं, हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे का सहयोग करते हैं तो इसमेंबुरा क्या है। एक दूसरे के त्यौहार में हिस्सा लेने से प्रेम बढ़ता है।
डॉ.शुचि कश्यप , समाजसेवी एवं संचालक श्रीबालाजी हॉस्पिटल
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हिंदू मस्लिम को अलग-अलग ना पुकारो, हम कहो। यही तो तिलहर की तहजीब है। इसी पर क्षेत्र का हर कोई गर्व करता है और सीख लेता है।
सविता वर्मा, भाजपा नेत्री एवं ब्रांड एंबेसडर, स्वच्छ भारत मिशन,नगर पालिका परिषद तिलहर
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तिलहर नगर वास्तव में अन्य स्थानों के लिए एक मिसाल है। यहां के लोगों की परस्पर भाईचारे, रचनात्मक सोच और भाईचारे की भावना बेमिसाल है। दोनों समुदायों के बीच कायम सहयोग दिलको छू लेने वाला है।
राधारमण मिश्रा, सभासद नगर पालिका परिषद तिलहर
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65 साल से तो कब्रिस्तान में होली जलते और हंसी-खुशी त्यौहार मनाते बच्चों को मैं देख रहा हूं। जब साथ बैठकर हम सब त्यौहार मनाते हैं तो दिल खुश हो जाता है।
सालिक राम कश्यप, वरिष्ठ नागरिक