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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस: शिशु की पहली भाषा, जिससे उम्र भर रहता है लगाव

 'भाषाएँ मायने रखती हैं' की थीम के साथ अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस  का रजत जयंती वर्ष समारोह आयोजित किया जा रहा है।  भाषायी विविधता को समर्पित इस दिन पर वाईबीएन संवाददाता ने  समाज  के बुद्धिजीवी वर्ग से उसकी राय जानी।

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Dr. Swapanil Yadav
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INTERNATIONAL MOTHER LANGUAGE DAY Photograph: (INTERNET MEDIA)

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शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता:

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1999 को यूनेस्को द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को आज 25 साल हो गए हैं। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की अवधारणा सबसे पहले बांग्लादेश द्वारा प्रस्तावित की गई थी।  'भाषाएं मायने रखती हैं' की थीम के साथ अंतरराष्ट्रीय  मातृभाषा दिवस  का रजत जयंती वर्ष समारोह आयोजित किया जा रहा है।  भाषायी विविधता को समर्पित इस दिन पर वाईबीएन संवाददाता ने  समाज  के बुद्धिजीवी वर्ग से उसकी राय जानी

मातृभाषा से सहज सम्प्रेषण 

मातृभाषा अर्थात वह भाषा जिसे व्यक्ति अपने शैशव काल से सीखता है। मातृभाषा दिवस 21 फरवरी को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य दुनिया भर में भाषाई विविधता और बहुलता का सम्मान करना है। यह दिन मातृभाषाओं के संरक्षण और उनके महत्व को समझाने के लिए मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने 1999 में इस दिन को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मान्यता दी थी। मातृभाषा वह भाषा होती है, जिसे हम अपनी माँ से बचपन में सीखते हैं और यह हमारी पहचान और संस्कृति का हिस्सा होती है।मातृभाषा में संवाद करने से हमें अपने व अपनी अनमोल संस्कृति को कहीं बहुत गहरे तक समझने में सहायता प्राप्त होती है। क्योंकि मातृभाषा से उन शब्दों की मूल भावना तक सहजता से पहुँचा जा सकता है जिस उद्देश्य से संवाद बोला जा रहा होता है।इस दिन हमें यह समझने और महसूस करने की आवश्यकता है कि भाषा कोई भी हर भाषा का अपना महत्व है। मातृ भाषा सहज सम्प्रेषण की भाषा है। जो मानस पटल पर बहुत गहरे तक अंकित रहती है।

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कवि डॉ इन्दु अजनबी

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कवि डॉ. इंदु अजनबी

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दादी-नानी के किस्सों की भाषा 


मातृभाषा मां की लोरियों की भाषा है, दादी-नानी के किस्सों की भाषा है, बाबा के लाड़ की भाषा है। यह वही 'निज भाषा' है, जिसके लिए भारतेंदु कहते हैं 'मिटै न हिय को सूल'। हमारा प्रेम, सहानुभूति, करुणा आदि मनोभाव मातृ भाषा में ही सहजता से अभिव्यक्त हो सकते हैं। मातृ भाषा हमारे सीखने और ज्ञान अर्जित करने का प्रथम उपादान है। आज वैश्वीकरण के दौर में जब भाषाई साम्राज्यवाद के चलते तमाम भाषाएं मिटने के कगार पर हैं, हमें अपनी मातृभाषा को संजोकर रखना होगा। 

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डॉ. मोहम्मद अरशद खान, बाल कथाकार, प्रोफेसर जीएफ कॉलेज

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डॉ. मोहम्मद अरशद, बाल कथाकार Photograph: (Self)

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लुप्तप्राय भाषाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता


अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन भाषायी और सांस्कृतिक विविधता के बारे में जागरूकता फैलाने और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। दुनिया भर में कई भाषाएँ है जो विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस लुप्तप्राय भाषाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता पर भी ध्यान आकर्षित करता है। मातृभाषाओं को बढ़ावा देने से विशेषकर बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। हमें इसको संरक्षित करने की आवश्यकता है और इसके लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। 

शिवा सक्सेना, रंगकर्मी व नाट्य निर्देशक

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शिवा सक्सेना Photograph: (Self

हमारी परवरिश हिंदी में ही हुई है

हमने जितने संस्कार पाए वो मातृभाषा हिंदी में पाए, हमारी जो परवरिश हुई वह भी हिंदी में ही हुई है। आज हिंदी राज भाषा से राष्ट्र भाषा का सफर तय  कर रही है।  यह हमारे लिए गर्व का क्षण है।  भारत की अन्य भाषाओँ को भी सहजने की बहुत बड़ी आवश्यकता है।  

प्रतिष्ठा सिंह, शिक्षिका 

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प्रतिष्ठा सिंह शिक्षिका Photograph: (Self)

 

कार्यक्रमों में मातृभाषा में सामग्री का प्रसार किया जाना चाहिए

 

सरकारों को मातृभाषाओं के संरक्षण के लिए प्रोग्राम चलाने चाहिए। भाषा उत्सव, लेखन प्रतियोगिता और भाषाई शोध को बढ़ावा दिया जा सकता है।मातृभाषाओं में नाटक, गीत, कविता और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे भाषा की लोकप्रियता और समाज में उसके महत्व को दर्शाया जा सके। समाचार पत्रों, किताबों, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में मातृभाषा में सामग्री का प्रसार किया जाना चाहिए, ताकि भाषा को व्यापक पहचान मिले।

ललित हरि मिश्रा, यूथ आइकॉन 

 

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ललित हरि मिश्रा Photograph: (Self)


190 से अधिक भाषाएं विलुप्ति के कगार पर

दुनिया में लगभग 7,000 भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन हर दो सप्ताह में एक भाषा विलुप्त हो जाती है। भारत में 22 अनुसूचित भाषाएं और 120 से अधिक प्रमुख भाषाएं हैं, लेकिन 190 से अधिक भाषाएं विलुप्ति के कगार पर हैं। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस केवल भाषाओं का उत्सव मनाने का दिन नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान, भाषा संरक्षण और शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा को उचित स्थान देने की आवश्यकता को भी उजागर करता है।

डा. रूपक श्रीवास्तव,असिस्टेंट प्रोफेसर,स्वामी शुकदेवानंद महाविद्यालय

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डॉ. रूपक श्रीवास्तव Photograph: (Self)

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गन्ना वैज्ञानिक डॉ. संजीव पाठक ने अपने एहसास कविता के माध्यम से व्यक्त किये 

मातृभाषा है हमारी पहचान,  

इसी में बसी है जीवन की जान।  

शब्दों से जुड़ी हमारी संस्कृति,  

हर बोली में है हमारी समृद्धि।  

दूसरी भाषाएँ भी हैं प्यारी,  

पर अपनी भाषा से है गहरी यारी।  

आओ इसे सम्मानित करें, 

मातृभाषा को हमेशा सहेजें।  

 

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डॉ. संजीव पाठक Photograph: (Self)

 

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