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बीएचयू व महामना की तरह स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज होगा मुमुक्षु आश्रम व स्वामी चिन्मयानंद का नाम, राज्य विश्वविद्यालय से देश में बढा मान

शाहजहांपुर को शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी सौगात मिली। कैबिनेट ने स्वामी शुकदेवानंद राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना को मंजूरी दी। मुमुक्षु आश्रम ट्रस्ट की शिक्षण इकाइयां अब राज्य विश्वविद्यालय में शामिल होंगी। इस निर्णय से चहुओंर प्रसन्नता है।

Narendra Yadav & Ambrish Nayak
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Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

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शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाताशाहजहांपुर-बरेली मार्ग पर मुख्य सड़क के किनारे लगभग 21 एकड़ में फैला मुमुक्षु आश्रम अब राज्य विश्वविद्यालय के रूप में अपनी नई पहचान बनाने जा रहा है। यह केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि शिक्षा का ऐसा केंद्र है, जिसकी नींव स्वामी शुकदेवानंद ने स्वतंत्रता से पहले रखी थी। उनके परम शिष्य स्वामी चिन्मयानंद विविध प्रकल्प जोडते हुए संस्था बीएचयू की तरह इतिहास के पन्नों में  स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करा दिया।

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स्थापना से विकास तक की यात्रा

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Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

स्वामी शुकदेवानंद ने शाहजहांपुर को अपनी कर्मभूमि बनाया और संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना कर शिक्षा का दीप प्रज्वलित किया। बाद में उन्होंने एसएस डिग्री कॉलेज समेत तीन प्रमुख शिक्षण संस्थानों की नींव रखी। 1965 में उनके निधन के बाद उनके शिष्य स्वामी सदानंद और स्वामी धर्मानंद ने आश्रम का दायित्व संभाला। स्वामी धर्मानंद के शिष्य रहे स्वामी चिन्मयानंद अस्सी के दशक में शाहजहांपुर पहुंचे। धर्मानंद के बाद उन्होंने आश्रम और उससे जुड़ी शिक्षण संस्थाओं की जिम्मेदारी संभाली।

शिक्षण संस्थाओं का विस्तार

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Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

चिन्मयानंद ने मुमुक्षु शिक्षा संकुल ट्रस्ट की स्थापना की। जिसके माध्यम से बेसिक शिक्षा परिषद, उप्र माध्यमिक शिक्षा परिषद, सीबीएसई से संबद्ध पब्लिक स्कूल से लेकर परास्नातक व विधि महाविद्यलाय स्तर के कॉलेज तक कई संस्थाओं का संचालन हुआ। इनमें से इंटर कॉलेज और एसएसपीजी कॉलेज अनुदान प्राप्त हैं, जबकि अन्य स्ववित्तपोषित हैं। मुमुक्षु शिक्षा संकुल की बुनियाद चिन्मयानंद की दूरदृष्टि और प्रबंधन क्षमता का परिणाम है। आश्रम की आय और संसाधनों को उन्होंने शिक्षा के विस्तार में लगाया।

राजनीति और साधु समाज में प्रभाव

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स्वामी चिन्मयानंद केवल शिक्षा और धर्म तक सीमित नहीं रहे। 80 के दशक के अंतिम वर्षों में वे राम मंदिर आंदोलन से जुड़े और महंत अवैद्यनाथ के साथ मिलकर राम मंदिर मुक्ति यज्ञ समिति बनाई। उनकी सक्रियता ने उन्हें भाजपा के मंच तक पहुंचाया। 1991 में बदायूं से सांसद बने। इसके बाद मछली शहर, जौनपुर से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे। राजनीति में उनकी पकड़ ने मुमुक्षु आश्रम और संस्थाओं के विकास को भी नई ऊँचाई दी। हालांकि शाहजहांपुर से उन्हें वह सम्मान नहीं मिल सका, जिसके वह असल हकदार रहे। 

विश्वविद्यालय बनने की राह

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Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

मुमुक्षु आश्रम की जमीनें जिन्हें स्थानीय लोगों ने श्रद्धा से दान किया था आज शाहजहांपुर की शिक्षा की सबसे बड़ी पूंजी साबित हो रही हैं। आश्रम की भूमि और भवनों का मूल्य 1 अरब 8 करोड़ 3 लाख रुपये आँका गया है, जिसे सरकार ने अब विश्वविद्यालय में तब्दील करने का निर्णय लिया है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विश्वविद्यालय स्थापना में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिए अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए। इस दौरान उन्होंने स्वयं स्वामी चिन्मयानंद से वार्ता की और हर कानूनी व शैक्षणिक अड़चन को खत्म करने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई।

बीएचयू संस्थापक महामना के कदमों पर चिन्मयानंद 

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जिस तरह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना में पंडित मदन मोहन मालवीय की भूमिका रही, ठीक उसी तर्ज पर स्वामी चिन्मयानंद ने एसएस कालेज को राज्य विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने में अहम भूमिका निभाई। दरअसल शाहजहांपुर के लोग जिस स्वामी शुकदेवानंद राज्य विश्वविद्यालय की खुशी मना रहे हैं, उसकी नींव असल में स्वामी चिन्मयानंद ने ही रखी थी। उन्होंने मुमुक्षु आश्रम को केवल एक धार्मिक संस्था न रहने देकर शिक्षा का सशक्त केंद्र बनाया। उसे राज्य विश्वविद्यालय तक पहुँचाकर स्वीकृति दिलाई। स्थानीय लोग भी मानते हैं कि अगर चिन्मयानंद न होते तो मुमुक्षु आश्रम केवल एक आश्रम ही रह जाता। आज यह विश्वविद्यालय बन पाया है तो उसकी सबसे बड़ी वजह उनका दृष्टिकोण और नेतृत्व है।

साधक, संत से  समाजसेवी तक

मुमुक्षु आश्रम की कहानी केवल एक आश्रम से विश्वविद्यालय बनने की गाथा नहीं है, बल्कि यह उस संत की दृष्टि और परिश्रम का परिणाम है जिसने साधु समाज, शिक्षा और राजनीति तीनों में अपनी पकड़ बनाकर शाहजहांपुर को राष्ट्रीय पहचान दिलाई। आज जब शाहजहांपुर में स्वामी शुकदेवानंद राज्य विश्वविद्यालय की मंजूरी मिल चुकी है, तो यह निश्चय ही स्वामी चिन्मयानंद की दशकों की तपस्या और प्रयासों का प्रतिफल है।

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