शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता
बहुत हुआ, अब पाकिस्तान से निर्णायक युद्ध का समय
वायुसेना के ग्रुप कैप्टन पद से सेवानिवृत्त हुए प्रमोद कुमार गुप्ता कहते हैं कि वास्तविकता यह है कि हम पाकिस्तान से 1965 से किसी न किसी रूप में युद्ध ही लड़ रहे हैं। कभी सीधा पाकिस्तान की सेनाओं से हुआ, जैसे कि 1971/ 1999 में जिसमें उद्देश्य और लक्ष्य दोनों ही स्पष्ट थे। परन्तु लगभग प्रतिदिन पाकिस्तानी सेना के संरक्षण में सीमाओं पर लड़े जाने वाला आतंकी युद्ध या आईएसआई के निर्देशन में भारत के अंदर अराजकता फैलाकर, निर्दोषों को क्षति पहुंचाकर या धर्म के नाम पर नरसंहार कर लड़े जाने वाला युद्ध भारत के अमन चैन, विकास व सौहार्द में बाधक बनता जा रहा है। जिसका अंत आवश्यक है। पहलगाम की घटना ने भारत की अस्मिता को न सिर्फ चोट पहुचाई है, बल्कि हमे चैलेंज भी किया है। पाकिस्तान के इस दुस्साहस का मुहंतोड़ जबाव देने का यही सही समय है।
वैश्विक माहौल भी भारत के पक्ष में है
पाकिस्तान ने कश्मीर के मुद्दे को UN तक ले जाकर इस द्विपक्षीय से अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाने का कुत्सित प्रयास किया है, जो अब तक असफल रहा है। पहलगाम की घटना के बाद भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद से लड़ने का व्यापक समर्थन मिला । जिसका लाभ भारत को उठाना चाहिए। आज की परिस्थिति में नहीं लगता कि पाकिस्तान से युद्ध टालना संभव होगा और पाकिस्तान का व्यवहार देखते हुए यह अवश्यक भी नहीं है। पाकिस्तान को न सिर्फ राजनीतिक, कूटनीतिक बल्कि आर्थिक व सैन्य तरीके से सबक सिखाना ही होगा। आज के युद्ध का स्वरूप मल्टी डाइमेंशन है, सही माने तो पानी रोककर, व्यापार बंदकर, हवाई सीमाएं बंद कर, मीडिया एकाउंट ब्लॉक कर हमने युद्ध का पहला कदम ले ही लिया है, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी कारगर कूटनीति से पाकिस्तान को अलग थलग भी करने में सफलता पाई है। अधिकतर वेस्टर्न देश, नाटो के सदस्य, रूस, दक्षिण-पूर्व के देश यहां तक कि अधिकतर मुस्लिम देश भी भारत के पक्ष में दिख रहे हैं। इजराइल स्वयं आतंकवाद से पीड़ित है, अत: वह तो मारल और मैटीरियल दोनो सपोर्ट देने को तैयार है। सऊदी अरब, बांग्लादेश अज़रबैजान, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि चुप हैं, परन्तु पाकिस्तान को बहुत अधिक सहायता देने की स्थिति में नहीं हैं और युद्ध की परिस्तिथि में तटस्थ ही रहेगें। अब बात पाकिस्तानी समर्थन में खड़े चीन व तुर्किए की करते हैं। चीन पाकिस्तान का मारल व मैटीरियल समर्थक बना रहेगा। सभी वैश्विक मंचों पर वह अपने दूरगामी लाभ के लिए पाकिस्तानका साथ देगा। अभी हाल में UN में उसने एक ऐसे प्रस्ताव का समर्थन भी किया है जिसमें यह कहा गया था कि पहलगाम की हत्याएं धर्म पूछ कर नहीं हुई हैं। लेकिन यह भी सत्य हे कि चीन कभी भी सीधे तौर पर युद्ध में नहीं कूदेगा। उसका चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कारीडोर POK से होकर ग्वादर तक जाता है जिसको लेकर वह अपने भारी आर्थिक इनवेस्टमेंट को दांव पर नहीं लगा सकता। हां तुर्की एक समस्या है, वह पाकिस्तान को हर संभव सहायता इसलिए दे रहा है क्योंकि वह 56 मुस्लिम देशों का लीडर (खलीफा) बनना चाहता है और सऊदी अरब को वर्तमान लीडरशिप से हटाना चाहता है। लेकिन उसके लिए एक समस्या भी है। तुर्की नाटो का भी सदस्य है और अधिकतर नाटो देश भारत के साथ हैं, अत: संभव है कि वेस्टर्न देशों के कारण तुर्की कुछ ढीला पड़ जाए। अज़रबैजान, तुर्कमेनिस्तान, इंडोनेशिया या कुछ अन्य मुस्लिम देश काफी दूर हैं अत: केवल मॉरल सपोर्ट ही दे सकते हैं, मटेरियल सपोर्ट नहीं।
पाकिस्तान के तीन प्रांत खुद आजादी चाहते हैं
अब बात युद्ध के एक दूसरे आयाम की करते हैं। हमारी इंडस्ट्रियल व इकोनॉमिकल ताकत के आगे पाकिस्तान कहीं नहीं ठहरता। हमारी जीडीपी, हमारा फॉरेन रिजर्व, सोने का, अन्न का, ईंधन का, गोला बारूद का भंडार इतना है कि पाकिस्तान उसके आगे भिखारी लगता है। यदि हमें दो मोर्चों पर दो महीने भी युद्ध लड़ना पडे तो भी हम सक्षम हैं। अब थोड़ी बात पाकिस्तान के अंदरूनी हालात की भी करते हैं। पाकिस्तान में अफगानिस्तान-बलूचिस्तान बार्डर गर्म है। पिछले 40 साल से बलूच आजादी की मांग कर रहे हैं और पाकिस्तान के दमन चक्र से मुक्ति पाना चाहते हैं। भारत की एक बहुत बड़ी सफलता यह होगी कि यदि हम युद्ध की स्थिति में हैं अफगानिस्तान बॉर्डर पर तालिबान या तहरीके पाकिस्तान द्वारा एक वार फ्रंट खुलवा दें और यह संभव लगता है। इसी प्रकार खैबर पखतूनख्वा, POK, सिंध प्रांत की जनता भी पाकिस्तान से त्राहिमाम कर रही है और रिवोल्ट के मूड में है, जिसका लाभ भारत को मिल सकता है। पाकिस्तान के तीन प्रांत आजादी चाहते हैं। इन परिस्तिथियों में पाकिस्तान के अंदर ही युद्ध के हालात बन सकते हैं और सिर्फ 10 दिन में ही पाकिस्तान के 4 टुकड़े भी हो सकते हैं।
परमाणु युद्ध की स्थिति में नुकसान पाकिस्तान का ही होगा
अंदरूनी तौर पर भारत में जो पाकिस्तान के राजनैतिक समर्थक, स्लीपर सेल के सदस्य या ओवर ग्राउंड वर्कर हैं, हमें उनसे सतर्क रहना होगा, वे हमारी जान माल के लिये खतरा बन सकते हैं।
हमारी तैयारी राजस्थान से लेकर कारगिल तक पूरी है, नौसेना कराची तक और वायु सेवा पूरे पाकिस्तान में मारक क्षमता रखती है। फिर भी हमारा कम से कम नुकसान हो इसके लिए सिविल डिफेंस को भी एक्टिवेट करना होगा। वैसे तो परमाणु युद्ध की संभावना नहीं है लेकिन असहाय होने की स्तिथि में, मुल्ला, मौलवियों और आतंकवादी संगठनों के दबाव में वहशी पाकिस्तान किसी भी हद तक जा सकता है। लेकिन अटल बिहारी बाजपेई का 1999 का वह स्टेटमेंट भी याद करने योग्य है जब उन्होंने कहा था कि परमाणु युद्ध की स्तिथि में हम 1/10 हिंदुस्तान तो खोने के लिए तैयार हैं, परंतु विश्व के नक्शे से 100% पाकिस्तान गायब हो जायेगा। लोहा गर्म है, भारत को हथौड़ा मारने का सही समय है।
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