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सपा संस्थापक नेता जी मुलायम सिहं यादव के चित्र Photograph: (इंटरनेट मीडिया)
पद्मविभूषण मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन कमरे में सिमटा, आखिर क्यों
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शाहजहांपुर में समाजवादी पार्टी के जिला कार्यालय पर मुलायम सिंह यादव के चित्र पर सिर्फ माल्यार्पण कर रस्म अदायगी कर दी गई। पद्म विभूषण से सम्मानित नेताजी के जन्मदिन पर किसी भव्य आयोजन का न होना कार्यकर्ताओं में निराशा का कारण बना। जबकि प्रतिद्वंद्वी दलों महापुरुषों के जन्मदिन के बहाने जनता से जुडने का कोई अवसर नहीं गंवा रहे हैं।
शीर्ष नेतृत्व की बेरुखी पर उठे सवाल
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न राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कोई कार्यक्रम घोषित किया और न ही अन्य वरिष्ठ नेताओं ने जन्मोत्सव पर ध्यान दिया। इससे यह संदेश गया कि पार्टी अपने संस्थापक के जन्मदिन को भी प्रचार-प्रसार और जनसंपर्क के अवसर में नहीं बदल सकी।
भाजपा व बसपा से सीख की जरूरत
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भारतीय जनता पार्टी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय से लेकर अहिल्याबाई होल्कर, झलकारी बाई, उदादेवी सहित हर महापुरुष का जन्मदिन बड़े पैमाने पर मनाती है। सार्वजनिक कार्यक्रम, सभाएं और रैलियां आयोजित कर जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत करती है। बसपा ने भी संस्थापक कांशीराम तथा मायावती का जन्मदिन रैली के रूप धूमधाम से मनाया, सपा व कांग्रेस अपने ही नेता का न तो सार्वर्जनिक सम्मान कर पा रही, न ही जनता को जोड पा रही है।
भाजपा ने पद्मविभूषण से दिया बडा सम्मान
भाजपा ने सपा संस्थापक व पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व रक्षामंत्री नेता जी मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत देश के दूसरे नंबर से सबसे बडे सम्मान पद्मविभूषण सम्मान दिया। शनिवार को उनके जन्मदिन पर भाजपा ने शीर्षस्थ नेताओं ने मुलायम सिंह के जन्मदिन पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि भी दी, लेकिन सपा का शीर्ष नेतृत्व अवसर को जन जन का कार्यक्रम न बना सका और एक अच्छा अवसर गवां दिया।
सपा की निष्क्रियता से कार्यकर्ताओं में बेचैनी
नेता जी हमेशा जनता के बीच रहते थे, समय प्रबंधन और जनसंपर्क उनकी ताकत थी। जनहित के मुददो के लिए वह संघर्ष करते थे, लेकिन वर्तमान नेतृत्व सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित दिखाई दे रहा है। बूथ स्तर पर नेटवर्क कमजोर है और जमीनी कार्यकर्ता दिशा के अभाव में परेशान हैं।
अवसर खो रही समाजवादी पार्टी
नेताजी के जन्मदिन पर अभियान, रैली या जनसंपर्क कार्यक्रम आयोजित कर जनता की भावनाओं से जुड़ने का मौका था। लेकिन कार्यक्रम साधारण बनकर रह गया। यह वही स्थिति है जो बिहार में विपक्ष को कमजोर कर चुकी है। सपा को लोकसभा चुनाव से सबक लेना चाहिए। जनता ने पार्टी को पूरा लोकसभा में प्रदेश से पहले नंबर की पार्टी बनाकर शक्ति भी और विश्वास भी मजबूत किया, लेकिन सपा लचर कार्यक्रम व नियोजन के चलतन जन समर्थन को सरकार में नहीं तब्दील कर पा रही।
भाजपा का बूथ तक सक्रिय नेटवर्क , सपा का कागजी व कमजोर संगठन
जहां भाजपा के विधायक और पदाधिकारी एसआइआर सर्वे से लेकर वोटर वेरिफिकेशन तक जनता के बीच लगातार सक्रिय हैं, वहीं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस अपने कार्यालयों से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। बाद में ईवीएम या वोट चोरी का आरोप लगाने से पहले संगठन की मजबूती जरूरी है।
यूपी में सरकार बनाने का सपना दूर होता दिख रहा
अगर यही स्थिति रही, नेतृत्व की निष्क्रियता, सिर्फ कागज़ी कार्यक्रम, सोशल मीडिया तक सीमित राजनीति - तो सपा के लिए 2027 में सरकार बनाना कठिन हो जाएगा। जनता से जुड़ाव के बिना विपक्ष सिर्फ नाम का विपक्ष बनकर रह जाएगा। इसके बाद भाजपा पर वोट चोरी, ईवीएम गडबडी के आरोप लगाकर हार का ठीकरा फोडने का प्रयास का प्रयास किया जाएग
बडे नेताओं ने भी बनाई दूरी
जनपद में सपा के कटरा के पूर्व विधायक राजेश यादव, तिलहर के पूर्व विधायक रोशनलाल वर्मा, आंवला सांसद नीरज मौर्या, पूर्व एमएलसी जयेश प्रसाद, पूर्व एमएलसी अमित यादव रिंकू आदि कददावर व बडे नेता है, जो मुलायम सिंह यादव के काफी नजदीकी रहे हैं, लेकिन नेताजी के जन्मदिन को यादगार बनाने के लिए किसी भी नेता ने बडा आयोजन करने की हिम्मत न जुटाई। जबकि अपने जन्मदिन पर यह नेता भी भव्य आयोजन कर चुके हैं। नतीजतन नेताजी को चाहने वाले काफी निराश व उदास हुए है।
संक्षिप्त बायोग्राफी : मुलायम सिंह यादव (1939–2022)
भारत के दिग्गज समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवम्बर 1939 को सैफई, इटावा में हुआ। वे शुरू में एक शिक्षक और कुश्ती खिलाड़ी थे, लेकिन बाद में राजनीति में आए। 1967 में पहली बार जसवंतनगर से विधायक बने। उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में तीन बार सेवा की—1989, 1993 और 2003।
1996 से 1998 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे। वे 7 बार लोकसभा सांसद चुने गए और उत्तर प्रदेश की राजनीति में लंबे समय तक सबसे प्रभावशाली नेता रहे। 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की।10 अक्टूबर 2022 को उनका निधन हो गया। उन्हें देश में “धरती पुत्र” के नाम से जाना जाता था। वह शाहजहांपुर की तिलहर विधान सभा से भी विधायक चुने गए, बाद में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया।
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