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शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाताः शाहजहांपुर की मिट्टी ने जहां अमर शहीद अशफ़ाक उल्ला खां, पं. रामप्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह जैसे बलिदानी योद्धा दिए,वहीं इसी धरती से राजनीति में भी एक ऐसा युवा उतरा जिसने राजनीति को व्यवसाय नहीं, जनसेवा का माध्यम बनाया। लोगों के चेहरे पर खुशहाली लाने का प्रयास किया। जिंदगी आसान बनाने के लिए लोगों को रोजगार से जोड उन्हें नौकरी से जीविकोपार्जन का जरिया दिया। 58 साल के राजनीतिक जीवन में भी वह बेदाग रहे। आज उनकी 87 साल की अवस्था हो चुकी है, लेकिन अभी भी ओज, तेज और स्मरण शक्ति से वह परिपूर्ण है।
हम बात कर रहे हैं 1967 व 1974 में जलालाबाद से विधानसभा पहुंचे दलसिंह यादव की। सादगी और सेवाभाव से जनपद से लेकर प्रदेश तक अनूठी पहचान बनाने वाले दल सिंह यादव ने कलान तहसील व मिर्जापुर ब्लाक के गांव इस्माइलपुर के स्थाई निवासी हैं। गांव से ही उन्होंने राजनीति की शुरुआत की। उनके पास न बड़े संसाधन थे, न ही कोई वंशानुगत विरासत। केवल साइकिल, बैलगाड़ी और कुछ साथियों के सहारे उन्होंने 1967 का चुनाव लड़ा और अपनी सादगी व ईमानदारी से मात्र 750 रुपये के खर्च में चुनाव जीत लिया। यह संदेश भी दिया कि राजनीति केवल पैसे या जाति-धर्म की बंदिशों से नहीं, बल्कि सेवा और विश्वास से भी की जा सकती है।
आजादी की वह पहली रात, लोग लालटेन लेकर निकल पडे थे घर से
दल सिंह यादव की सबसे पुरानी यादों में वह रात आज भी ताजा है जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। वे मात्र आठ वर्ष के थे। पूरे गांव में लालटेन की रोशनी में लोग खेतों की मेड़ों से दौड़ते हुए कस्बों तक पहुंचे, भारत माता की जय के नारे लगाए और झंडा फहराया। चना-गुड़ खिलाकर मुंह मीठा किया गया और खुशी का इजहार हुआ। फूफा सालिकराम की अगुवाई में निकली प्रभात फेरी में शामिल होकर उन्होंने आजादी का उल्लास महसूस किया।
फरीदपुर में पढ़ाई के दौरान ही पड़ी राजनीति की नींव
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शिक्षा के प्रति लगन ने दल सिंह यादव को पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय तक पहुंचाया, जो उस दौर में भारत का पहला कृषि विश्वविद्यालय था। पूरे देश से चुने गए 250 छात्रों में से एक बनने का गर्व उन्हें मिला। उन्होंने बीएससी एग्रीकल्चर ऑनर्स की पढ़ाई पूरी की और फिर अध्यापन का कार्य शुरू किया। शाहजहांपुर व फरीदपुर में पढ़ाई के दौरान ही राजनीति का बीज अंकुरित हुआ। यही से उनके जीवन की दिशा बदल गई और वे छात्र जीवन से ही समाज सेवा के रास्ते पर चल पड़े। दल सिंह यादव बताते है कि उन्होंने राजनीति में बदायूं के राजेश्वर सिंह यादव को अपना आदर्श बनाया।
जनसंघ से राजनीति का सफर... पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने दिया था टिकट
सिर्फ 27 साल की उम्र में राजनीति की राह पकड़ने वाले दल सिंह यादव का टिकट पाने का किस्सा किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। उस समय वे फरीदपुर में पढ़ाई कर रहे थे और जनसंघ नेताओं से जुड़ चुके थे। एक दिन हिन्दू महासभा के नेता जापान बाबू ने बुलाया और कहा कल दीनदयाल उपाध्याय और रामप्रकाश गुप्ता आएंगे तुम्हें उनसे मिलवाना है। अगले दिन गंगा सिंह और नाथूसिंह के मकान पर उनका इंटरव्यू हुआ। रामप्रकाश गुप्ता ने सीधे सवाल दागा क्या तुम्हारे घर में पहले कभी किसी ने चुनाव लड़ा है, दल सिंह ने बेबाकी से जवाब दिया नहीं। बेझिझक बोले, लेकिन मैं खुद चुनाव लड़ना चाहता हूं, फिर पूछा गया कितना खर्च कर लोगे। दल सिंह ने बिना झिझक कहा एक हजार रुपये हैं मेरे पास है। यह सुनकर नेताओं ने मुस्कुराते हुए टोका, इतने में चुनाव हो पाएगा। तुरंत दल सिंह बोले मैं सिर्फ टिकट मांग रहा हूँ, बाकी जनता का साथ मेरे पास है। इतना ही नहीं युवाजोश में उन्होंने चुनौती दे डाली अगर मेरे सामने बड़े नेता चंद्रभान गुप्ता और कमलापति त्रिपाठी भी खड़े हो जाएं तो उन्हें भी हरा दूँगा।
भले ही हार जाए यह युवा, लेकिन कार्यकर्ता अच्छा बनेगा, बोले थे पंडित जी
यह सुनते ही कमरे में ठहाकों की गूंज उठी। सभी नेता हंस पड़े और कहने लगे देखते हैं विचार करते हैं। लेकिन जब नेताओं ने आपस में चर्चा की तो तय हुआ कि पार्टी लगातार चुनाव हार रही है ऐसे में इस नये और जुझारू लड़के को मौका दे देना चाहिए। पंडित दीनदयाल उपाध्याय बोले चुनाव वैसे भी हार जाएंगे, पिछड़े वर्ग का लड़का है। कुछ नही तो पार्टी कार्यकर्ता मजबूत मिल जाएगा। अंततः पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने दल सिंह यादव के नाम पर अंतिम मुहर लगाई। इसके बाद उन्होंने पार्टी फंड में 250 रुपये जमा किए और पूरा चुनाव 750 रुपये में लड़ डाला। उन्होंने छह हजार मतों से विधानसभा चुनाव जीतकर यह साबित कर दिया कि जोश, ईमानदारी और जनता का विश्वास किसी भी बड़े नाम और संसाधन से भारी पड़ सकता है।
दो बार रहे विधायक.... पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह, कल्याण सिंह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ के साथ किया विधानसभा में प्रतिनिधित्व
1967 और 1974 में विधायक चुने जाने के बाद दल सिंह यादव का राजनीतिक सफर मजबूत हुआ। विधानसभा में उन्होंने मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह और अवैद्यनाथ जैसे नेताओं के साथ कार्य किया। वे चार बार सहकारी बैंक के सभापति, 35 वर्ष तक उत्तर प्रदेश कॉरपरेटिव यूनियन के निर्देशक रहे। शाहजहांपुर अल्हागंज स्थित स्वामी विवेकानंद इंटर कॉलेज के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे, वर्तमान में भी वह प्रबंधक है। शिक्षा और सहकारिता के क्षेत्र में उनका योगदान आज भी जिले की नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा है।
वर्तमान राजनीति पर बेबाक राय
दल सिंह यादव का कहना है कि पहले राजनीति सेवा, त्याग और तपस्या का मार्ग थी। उस दौर के नेता साधारण वेशभूषा में रहते थे और जो कहते थे वही करते थे। लेकिन आज राजनीति पूरी तरह बदल गई है। अब स्वार्थ और धनबल का बोलबाला है। धर्म और जाति के नाम पर नफरत फैलाकर सत्ता हासिल की जाती है। वे कहते हैं आज के नेता सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, जबकि हमारे समय में राजनीति देशहित और समाजहित के लिए की जाती थी।
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चुनाव प्रचार पर करोडों खर्च, इसीलिए बढ रहा भ्रष्टाचार
58 वर्ष पहले दल सिंह यादव ने महज साइकिल और बैलगाड़ी से चुनाव प्रचार करके मात्र 750 रुपये के खर्च से चुनाव जीत लिया। अब प्रत्याशी करोडो रुपये खर्च करते हैं। यही कारण है कि भ्रष्टाचार की बेल भी उतनी ही तेजी से बढ रही है। दलसिंह यादव बताते है कि हमारे दौर में विचारधारा और निष्ठा पर चुनाव जीते जाते थे, अब पैसों और साधनों का बोलबाला है। हेलीकॉप्टर, गाड़ियों का काफिला और दिखावा राजनीति में आ चुका है। सिद्धांत और ईमानदारी हाशिये पर चली गई है, यही सबसे बड़ी पीड़ा है।
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