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Shahjahanpur News: मैं भद्रशीला... मेरी भगीरथ ने सुन ली पीर, अब आंचल में बहेगा नीर

में भद्रशीला हू,... मेरे भी भाग जाग उठे हैं। भैंसी की तरह हमे में भी नया जीवन मिलेगा। जानते हैं क्यों, हमें भी भगीरथ मिल गए हैं। उनका नाम है धमेंद्र प्रताप सिंह, वह जिलाधिकारी हैं शाहजहांपुर के। आज यानी गुरुवार तीन जुलाई को वह मेरी दशा देख चुके हैं।

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Narendra Yadav
शाहजहांपुर

भद्रशीला नदी के तट पर कथा में शामिल जिलाधिकारी। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

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शाहजहांपुर, वाईबीएन नेटवर्क। में भद्रशीला हू,--- मेरे भी भाग जाग उठे हैं। भैंसी की तरह हमे में भी नया जीवन मिलेगा। जानते हैं क्यों, हमें भी भगीरथ मिल गए हैं। उनका नाम है धमेंद्र प्रताप सिंह, वह जिलाधिकारी हैं शाहजहांपुर के। आज यानी गुरुवार तीन जुलाई को वह लोकभारती के स्वयंसेवकों संग हमारी दशा देख चुके हैं। हमारे आंगन उनके आगमन मात्र से अब विश्वास है कि अब हमें कोई मुझे ठांठ, बांझ नहीं कह पाएगा। मैं फिर से आंचल के निर्मल, अविरल जल से असंख्य जीवों को जीवनदान दे सकूंगी। उनकी प्यास बुझा सकूंगी। अगणित वृक्षों को भरपूर स्पंदन देने की सामर्थ्य होगी। इसलिए आज का दिन हमारे लिए इठराने, इतराने का है। हो भी क्यों न, हमारी सहेली भैंसी को नया जीवन मिल गया है। कालचक्र का ऐसा पहिया घूमा कि अब हमारी भी जिलाधिकारी ने पीर सुन ली।
मुझे याद है कि जब 15 जून 2020 को दैनिक जागरण में संवाददाता नरेंद्र यादव ने हमारी पीडा को नीर बिना मैं नदी अभागन शीर्षक से दर्शाया था। तब लोक भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री ब्रजेंद्र पाल सिंह, नदी प्रांत प्रमुख डॉ विजय पाठक तथा उनकी टीम ने हमें सहारा दिया। संजय उपाध्याय, अखिलेश पाठक, संतोष सिंह, गांधी जी समेत बडी संख्या में संस्था के स्वयंसेवकों ने पदयात्रा कर हमारी दशा देखी। हमारे आंचल में नमी का अहसास कराने वाले कुओं को साफ कराया। जिस स्कंद पुराण में हमारे गौरवशाली अतीत का वर्णन है, सत्यनारायण की कथा के माध्यम से उसका गुणगान किया गया। प्रत्येक सोमवार को हमारी जय जयकार करते हुए जब भक्त जाते तो तब मुझे लगता था कि जल्द ही नया जीवन मिल जाएगा, लेकिन जाने क्यों पांच साल इंतजार करना पडा।
कहते है न देर आय दुरुस्त आए, कोई नही। मेरी सहृदयता, नम्रता देख त्रऋषि मुनियों ने जो मुझे भद्रशीला नाम दिया था, वह फिर से सार्थक हो रहा। अब लोग मुझे भरगुदा, नहीं भद्रशीला के नाम से ही पुकारेंगे। हमारे आंचल पेड लगेंगे। उनकी हरियाली से लोगों को आनंद की अनुभूति होगी। असंख्य जीवों को फिर से आश्रय मिलेगा। लोग हमारे आंगन में ही सत्यनरायण व्रत की कथा श्रवण कर सकेंगे। जमदग्नि आश्रम और भगवान परशुराम का गुरुकुल को भी नया स्वरूप मिलेगा--- ऐसा मुझे विश्वास है।

100 किमी तक है मेरा विस्तार

जानते हैं मेरा उदभव बरेली की सीमा से हैं। करीब सौ किमी की छोटी यात्रा से मैं खुदागंज, तिलहर, कांट, मदनापुर होती हुई ब्लाक जलालाबाद रामगंगा में समाहित होकर मैं गंगा में विलीन हो जाती हूं। अभी बरसात के दिनों में ही मेरी प्यास बुझती थी, मैं सरस सलिला से गौरवान्वित होने के बावजूद नीर बिना मैं अभागिन नदी थी, लेकिन अब मैं मुझे प्राण उर्जा मिलने वाली है। जब हमें हमारा पूर्व स्वरूप व विस्तार मिल जाएगा तो भूगर्भ जलस्तर भी सुधरेगा। उद्गम से संगम तक गांव के लोगों की फसलों को मैं पानी भी दे सकूंगी।

वट का बढ़ेगा परिवार, कुओं का भी उद्धार

भद्रशीला को नया जीवन मिलने से कुओं का भी उद्धार होगा। हरिशंकरी के रोपण से हरियाली बढ़ेगी। भैंसी नदी के किनारे शुरुआत हो चुकी है। खास बात यह है कि परशुराम नगरी के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके जलालाबाद में जब लोग दर्शन को आएंगे तो वह भद्रशीला किनारे स्थित भगवान परशुराम के गुरुकुल को भी देख सकेंगे। इज़के महत्व इसलिते है क्योंकि यह भीष्म पितामह भी यही पढ़े। कर्ण ने भी शिक्षा पाई थी। ऊंचा सा टीला देखकर आप हमारा महत्वं जान सकते है। अज्ञातवाश में पांडवो ने यहां शस्त्र छिपाए थे।

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