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Nag Psnchami 2025: नाग पंचमी का पर्व आज.....सर्प देव की होगी पूजा

शाहजहांपुर में नाग पंचमी का पर्व मंगलवार को श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। नाग देवता की पूजा कर लोग कालसर्प दोष और सर्प भय से मुक्ति की कामना करेंगे। गांवों में गुड़िया पर्व और सांस्कृतिक आयोजन होंगे।

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Ambrish Nayak
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Photograph: (वाईबीएन netwrk)

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शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता। श्रावण मास की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला नाग पंचमी का पर्व मंगलवार को जिले में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाएगा। इस अवसर पर नाग देवताओं की पूजा-अर्चना की जाएगी जिससे सर्प भय से मुक्ति व कालसर्प दोष के निवारण की मान्यता जुड़ी है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी पर्व को लेकर विशेष तैयारी की गई है। महिलाओं और बच्चों में पर्व को लेकर खास उत्साह देखा जा रहा है। मंदिरों के साथ-साथ खेतों की मेडों पर भी लोग दूध, लावा और पुष्प चढ़ाकर नाग देवता को प्रसन्न करने की परंपरा निभाएंगे। इस दिन कई परिवार विशेष पकवान बनाएंगे और ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों पर गुड़िया पीटने की परंपरा का भी निर्वहन होगा। नाग पंचमी के दिन अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शह्णपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक और कालिया नामक नौ नागों की पूजा करनी चाहिए। इससे जीवन में आ रहे संकटों का नाश होता है और परिवार में सुख-शांति आती है। भगवान शिव के गले में विराजमान नागों को इस दिन विशेष रूप से दूध, चंदन, कुश और अक्षत चढ़ाकर पूजन करने की परंपरा है। नागों को देवताओं में विशिष्ट स्थान प्राप्त है जहां विष्णु शेषनाग पर शयन करते हैं, वहीं भगवान शिव नागों को यज्ञोपवीत के रूप में धारण करते हैं।

खेतों में नहीं चलेगी कुदाल, मनाया जाएगा गुड़िया का पर्व

गांवों में नाग पंचमी को गुड़िया का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन खेतों में न हल चलता है न कुदाल। किसान खेती से संबंधित कोई भी कार्य नहीं करते। बच्चे तालाबों के पास गुड़िया बनाकर लाते हैं और गांव के बटुक उन गुड़ियों को पीटकर तालाब में विसर्जित करते हैं। इसके बाद चना व गुड़ का प्रसाद बांटा जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस दिन कुश्ती, कबड्डी और अन्य खेलों का भी आयोजन किया जाता है। शहर के बाजारों में नाग पंचमी के लिए दूध, लावा, फूल और पूजा सामग्री की खरीदारी को लेकर चहल-पहल रही।

नाग पंचमी के विशेष मंत्र, जो दूर करें सर्प दोष और विष भय

1. सर्वे नागा प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिता॥

2.अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शह्ण पालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥

3. ॐ भुजंगेशाय विद्महे, सर्पराजाय धीमहि,
तन्नो नाग प्रचोदयात्।।

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