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खेत में खरबूजा तोड़तीं स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता
शाहजहांपुर जनपद की पुवायां तहसील के गांव गंगसरा की महिलाएं पूरे देश के लिए मिसाल बनती जा रही हैं। स्वयं सहायता समूह से जुड़कर लखपति हुईं यह महिलाएं अपनी मेहनत के दम पर प्रतिवर्ष खरबूजा की खेती दुगनी और चौगुनी बढ़ा रही हैं। गंगसरा इलाका अब खरबूजा की पैदावार के लिए प्रचलित होता जा रहा है। प्रतिवर्ष सैकड़ों टन खरबूजा दिल्ली, पंजाब के साथ ही जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश की वादियों से होकर देश के अंतिम छोर तक पहुंचा रही हैं। वहां के लोगों में गंगसरा के खरबूजा के स्वाद मुंह लगता जा रहा है।
पुवायां से खुटार और गोला गोकर्णनाथ और लखीमपुर खीरी को जाने वाले हाइवे पर पुवायां से 14 किलोमीटर दूर गंगसरा गांव पड़ता है। गगंसरा में घुसते ही आपको खरबूजों खास नस्ल ठेले और दुकानों पर सजी मिल जाएगी। खास बात यह है कि खरबूजा की खेती स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं करती हैं। यहां राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहते पंजीकृत मंसूरी समूह और चांद महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ी करीब 40 महिलाओं ने खरबूज की फसल चार पांच साल पहले पांच एकड़ जमीन एक फसल के लिए (जनवरी से जून तक) छह माह को किराये पर लेकर शुरू की थी। मौजूदा समय में यह महिला समूह 65 एकड़ जमीन में खरबूज कर रही हैं। प्रतिवर्ष यह एक सीजन में एक-एक लाख रुपये से अधिक का मुनाफा इससे कर लेती हैं। इस बार ज्यादा जमीन पर खरबूज लगाया है तो कमाई भी ज्यादा होने की संभावना है।
सेब को लेकर दिमाग में आया आइडिया
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स्वयं सहायता समूह से जुड़ी अल्लाह रक्खी कहती हैं कि हमें आइडिया सेब से मिला। सोचा था कि जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश से जब सेब यहां आकर खूब बिकता है तो हमारे यहां से खरबूज भी वहां खूब बिक सकेगा। इसी आइडिया के तहत खरबूजा की खेती शुरू की गई। पांच साल में हमारा मुनाफा बढ़ता गया। हम लोग दिन रात मेहनत करके खरबूजा करते हैं। पांच महीने तक रात दिन की मेहनत से हमारा काम अच्छा चल जाता है। मेहनत तो हर काम में है लेकिन हमें मेहनत करके अच्छी बचत हो जाती है। अल्लाह रक्खी कहती हैं कि महिलाओं को स्वयं सहायता समूह बनाकर इस तरह के कामों से जुड़ना चाहिए ताकि तरक्की हो सके।
मेहनत से बनी लखपति दीदी
शाहजहां बेगम कहती हैं कि हमने मंसूरी स्वयं सहायता समूह बनाया था। इस समूह से जुड़ी महिलाओं को पहले बकरी पालन भी कराया। इसके बाद खरबूजा की खेती की। हर साल पचास हजार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन को किराए पर लेकर हम रकवा बढ़ाते रहे। हमे इसका फायदा मिलता गया। इससे हम लोग मेहनत से लगे रहे। हमें एक से डेढ़ लाख रुपये सीजन बचत होने लगी। इसीलिए खेती को बढ़ाते चले गए। हमें इसमें लाभ तो मिल रहा है, लेकिन खेतों में बीमारी लगने और फसल को छुट्टा पशुओं से बचाना बहुत बड़ी चुनौती है। रात भर खेतों पर रहकर रखवाली करनी पड़ती है।
खेती से लेकर ट्रांसपोर्ट तक की देखनी पड़ती है व्यवस्था
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चांद स्वयं सहायता समूह की पूनम बानो कहती हैं कि मेहनत है तो कमाई है। हम लोग मेहनत करने से पीछे नहीं हटते हैं। हम लोग खेती करते हैं तो हमारे घरवाले और बच्चे भी साइड बिजनेस के तौर पर हमारी मदद करते हैं। खरबूजा की बेल लगाने से लेकर दवा के छिड़काव तक कई चुनौतियां आती हैं। मौसम खराब होता है तब भी धड़कनें बढ़ जाती हैं कि कहीं नुकसान न हो जाए। इसके साथ ही खरबूज को कहां बेचने के लिए भेजना है यह भी देखना पड़ता है। जम्मू और हिमाचल बेचने में फायदा अधिक है। लेकिन हमारे खेत से ही आकर अगर कोई फसल उठाकर ले जाता है तो इसमें ज्यादा अच्छा रहता है। कमरजहां, हसीन बेगम, शायरा कहती हैं कि हमें खरबूज की खेती से अच्छा मुनाफा हुआ है।
बिक्री के लिए बाजार प्रबंधन भी संभालती हैं महिलाएं
स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं कम पढ़ी-लिखी हैं, लेकिन बेहतर बाजार प्रबंधन संभालती हैं। महिलाओं के परिवार से जुड़े शाहिद रजा खां कहते हैं कि हम सिर्फ देखरेख करते हैं। महिलाएं खुद ही बिक्री के बाजार प्रबंधन संभालती हैं। जम्मू और हिमाचल तक खरबूज भेजने का आइडिया भी महिलाओं का है। इसके अलावा खेतों पर आकर खरीदने वालों को अलग से रेट दिया जाता है। पांच रुपये किलो तक भी हम यहां से फसल को बेच सकते हैं। वैसे बाजार में खरबूज की कीमत पचास के तीन किलो तक मिल रहे हैं।
खरबूजा की गुरु और गुल्ला नस्ल की पैदावार अधिक
खरबूजा की गुरु और गुल्ला नस्ल की पैदावार यहां की जाती है। गुरु और गुल्ला का बीच यह लोग पंजाब की एक कंपनी से लेकर आए हैं। इस खरबूजा में मिठास बहुत है। इसे खाने में लगता है जैसे चीनी इसके अंदर घोल रखी है। सबसे ज्यादा गुरु को पसंद किया जा रहा है। एकदम पीले रंग का यह खरबूज गोल आकार में होता है। मिठास की वजह से ही लोग इसे पसंद कर रहे हैं।
जरूरतमंदों को उपलब्ध कराया रोजगार
खरबूज की खेती से स्वयं सहायता समूह की दीदी जहां मालामाल हो रही हैं वहीं इसमें जरूरतमंदों को रोजगार के अवसर भी पैदा कर रही हैं। प्रतिदिन खरबूज तोड़ने के काम में तमाम परिवार लगे हुए हैं। इन्हें प्रतिदिन का 300 रुपये मजदूरी दी जाती है। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोगों को भी गंगसरा से खरबूज की ढुलाई से फायदा मिल रहा है।
शाहजहांपुर में डेढ़ लाख से अधिक महिलाएं स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं
राष्ट्रीय आजीविका मिशन के जिला प्रबंधक प्रदीप यादव कहते हैं कि जिले में स्वयं सहायता समूह से महिलाएं लगातार जुड़ रही हैं। शाहजहांपुर में 1,55,302 महिलाएं जुड़ी हुई हैं। जिले में करीब 15039 समूह जुड़े हुए हैं। समूह की महिलाओं को लगातार प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्हें इस तरह के कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है जिसमें मुनाफा अच्छा हो। इसी वजह से समूह लगातार आगे बढ़ रहे हैं। लखपति दीदी की संख्या में भी इजाफा हो रहा है।
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