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ग्राम सहतेपुर में शोपीस बने कुआं और इंडिया मार्का हैंडपंप Photograph: (नरेंद्र यादव)
शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाताः हमारी संस्कृति का हिस्सा थे। शुभ कार्यों में कुएं का पूजन अनिवार्य था। विवाह में कुआंवारा परंपरा थी, जिसे आज भी निभाया जाता है। इंडिया मार्का हैंडपंप आने के बाद कुआं का महत्व घट गया, लेकिन अब दोनों इतिहास बन गए। जलजीवन मिशन ने दोनों की विदाई कर दी।
इस तरह हो गई बाप बेटा कीकुआं विदाई....
रविवार को यंग भारत न्यूज की टीम ग्राउंड रिपोर्ट थी। इस दौरान निगोही विकास खंड के गांव सहतेपुर में जो दृश्य दिखा वह प्रगति को शर्मशार करने वाला था। दरअसल आधुनिकता की चकाचौंध, हमारी संस्कृति, सभ्यता के प्रतीक कहें कुओं को लील गई, या यूं कहें कि उन्हें पूरी तरह उपेक्षित कर दिया। गांव के मध्य में एक ही स्थान पर प्राचीन कुंआ था, जिसका महत्व इंडिया मार्का हैंडपंप लगने के बाद कम हो गया, लेकिन उसका महत्व बना रहा। गांव के लोग शुभ कार्यों पूजन करते रहे। हैंडपंप लगने के बाद भी कुएं भी जल भी था, हालांकि लोग शुद्धता के कारण इंडियामार्का हैंडपंप को ही महत्व देते हुए हैंडपंप का ही पानी पीने लगे। समय से ऐसी करवट ली कि अब कुआं और हैंडपंप अर्थाप बाप और बेटा दोनों की विदाई हो गई। हर घर जल पहुंचाने वाली जल जीवन मिशन योजना के तहत सभी घरों में जलापूर्ति के लिए कनेक्शन दिए जाने के कारण कुआं और इंडिया मार्का हैंडपंप निष्प्रयोज्य हो गए।
जानिए कुओं का क्या है महत्व
सहते गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सैकड़ों वर्ष पहले जब भी कभी कोई नई बस्ती या गांव बसाया जाता था तो आसपास जमीन में मीठा पीने योग्य पानी है कि नहीं, जरूर देखा जाता था। पशुओं और अपने नहाने धोने के लिए भी कुआं का ही प्रयोग किया जाता था। जिस गांव में तालाब होता था, वहां लोग तालाब में पशुओं को नहवाते थे। पेयजल व सिंचाई के लिए भी लोग कुएं खुदवाते थे। कुआं पर ही सिंचाई के लिए रहट , लगाया जाता था, लेकिन अब पूरी व्यवस्था बदल गई।
इस तरह खो गया कुआं और नल का महत्व
बदलाव प्रकृति का नियम है। जैसे जैसे आदमी ने नई तकनीकों का विकास किया कुओं और हैंडपंप का महत्व कम होता गया। सबसे पहले कुओं का स्थान नलकूपों और नल ने लेना शुरू कर दिया। जल जीवन मिशन को मूर्तरूप मिलने के बाद अब कुछ गांवों में जल संरक्षण व जलापूर्ति के प्रतीक कुआं पूर्वजों की धरोहर बनकर रह गए। अब उनमें सवच्छ जल की जगह गंदा पानी व कूड़े कचरे का डलाव है।
कुओं की पवित्रता का भी रखा जाता था ख्याल
कुओं की पवित्रता के लिए चारों ओर चबूतरा या बुर्जिया बनाई जाती थी, जो बाहर का गंदा पानी कुएं में जाने से रोकती थी, लेकिन अब कुआं ही नहीं बचे, सहतेपुर की तरह जिन गांवों में कुआं है, वह कचरा डलाव घर बन गए हैा।
कई तरह के होते थे कुआं
जानते हैं कि कुआं के कई प्रकार भी थे। पेयजल आपूर्ति के लिए उथले व सिंचाई के लिए गहरे कुएं बनाए जाते थे। चौडे व गहरे कुओं पर चरख लगाया जाता था। जिन क्षेत्रों में कुआं का जलस्तर नीचे रहता था, वहां गहरा कुआं खोदने के साथ उॅपर चरखी लगाई जाती था, लेकिन अब सब कुछ इतिहास बन गया। जल जीवन मिशन के आने के बाद कुआं व हैंडपंप सब बेकार हो गए।
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