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नवरात्रि समापन पर हवन करते जेल अधीक्षक Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता
जनपद में जिला कारागार में जेल अधीक्षक मिजाजीलाल द्वारा नवरात्रि के पावन अवसर पर जेल परिसर में नवरात्रि और रामनवमी पर विशेष आयोजन किया गया। श्रीराम और देवी मां की भक्ति से गूंज उठा। विशेष बात यह रही कि नवरात्रि व्रत केवल हिंदू बंदियों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि मुस्लिम समुदाय के 7, सिख समाज के 3 और नेपाल के एक बंदी ने भी आस्था के इस पर्व में भागीदारी की।
धर्म की सीमाएं नहीं, इंसानियत की एक पहचान बनी नवरात्र
शाहजहांपुर जिला जेल में इस बार नवरात्र कोई साधारण धार्मिक आयोजन नहीं था यह एक आध्यात्मिक मिलन समारोह बन गया। जहाँ एक ओर देवी मां के जयकारे गूंज रहे थे, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम और सिख बंदी अपने हाथों से हवन सामग्री तैयार कर रहे थे। सात मुस्लिम, तीन सिख और एक नेपाली बंदी ने 9 दिनों तक व्रत रखकर यह साबित कर दिया कि भक्ति की कोई जाति या मजहब नहीं होता।
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जेल बना तपोभूमि, साधना का केंद्र
कारागार जहाँ आमतौर पर कठोरता और अनुशासन का माहौल रहता है, वहां इस बार का वातावरण किसी आश्रम से कम नहीं था। बंदियों ने व्यक्तिगत स्तर पर पूजा की, कुछ ने पाठ किया और कईयों ने पहली बार रामायण के प्रसंगों को ध्यान से सुना। इस दौरान कई बंदी भावविभोर होकर रो पड़े उनका कहना था कि "हमने जीवन में बहुत कुछ खोया, पर इस व्रत में कुछ पा भी लिया।"
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प्रशासन की संवेदनशीलता बनी मिसाल:
जेल अधीक्षक सहित सभी स्टाफ ने इन धार्मिक आयोजनों को न केवल अनुमति दी, बल्कि स्वयं सक्रिय भूमिका निभाई। हर दिन व्रतधारी बंदियों को ताजे फल, दूध, चाय और उबले आलू समय पर मुहैया कराए गए । साफ-सफाई, पूजा स्थलों की व्यवस्था और सुरक्षा का भी विशेष ध्यान रखा गया।
रामनवमी पर अखंड रामायण पाठ –24 घंटे का श्रद्धा संग्राम
रामनवमी के मौके पर शुरू हुआ अखंड रामायण पाठ पूरी रात चला। कुछ बंदी पाठ कर रहे थे, कुछ ध्यान लगा रहे थे, तो कुछ अपने कक्षों से ही मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। सुबह आरती और हवन के समय जेल परिसर में ऐसा प्रतीत हुआ मानो स्वयं श्रीराम का जन्मोत्सव हो रहा हो।
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सुधार की दिशा में आध्यात्मिकता का नया प्रयोग
जेल प्रशासन द्वारा यह आयोजन सुधारात्मक दृष्टिकोण से भी एक प्रयोग था। इस दौरान जिन बंदियों ने नियमपूर्वक व्रत रखा, उनके व्यवहार में शांति, धैर्य और आत्मविश्लेषण की झलक देखी गई। यह पहल बताती है कि सुधार केवल नियमों से नहीं, बल्कि मानवता और अध्यात्म से भी संभव है।
‘श्रीराम’ और ‘इंसानियत’ एक साथ गूंजे कारागार में
इन आयोजनों में सबसे खूबसूरत बात रही सबकी सहभागिता। किसी ने चाय बनाई, किसी ने फूल सजाए, किसी ने आरती की थाली सजाई। इसने यह अहसास कराया कि "जेल में केवल कैदी नहीं, इंसान रहते हैं।"
यह आयोजन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं था, बल्कि एक आध्यात्मिक पुनर्जागरण था। जिस जेल को अक्सर डर और अपराध की नजर से देखा जाता है, वहीं से उठी यह भक्ति की आवाज हमें बताती है कि हर अंधेरा खत्म हो सकता है अगर विश्वास का दीप जले।
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