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मिसालः 180 किमी साइकिल चलाकर नमक-रोटी बांधकर पूर्व मुख्यमंत्री से मिला था राजेश, अब है साइकिल योद्धा

शाहजहांपुर के पैना बुजुर्ग गांव के राजेश यादव ने भूखे पेट नमक-रोटी खाकर शाहजहांपुर से लखनऊ तक 180 किलोमीटर साइकिल चलाई। साइकिल रेस के प्रदेश स्तर पर विजेता बने। आज भी ई-रिक्शा चलाते हुए अपने संघर्ष को जिंदा रखते हैं। आइए जानते है राजेश की पूरी कहानी...

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Ambrish Nayak
शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता।

राजेश यादव की कहानी । Photograph: ( वाईबीएन नेटवर्क )

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शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता 

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राजेश यादव की कहानी: नमक-रोटी, पत्नी का हौसला और 180 किमी पैडल की प्रेरक गाथा

जिसके पास न पैसे थे न साधन लेकिन सपना था बड़ा। 40 वर्षीय राजेश यादव ने साइकिल को अपना हथियार बनाया और गरीबी से लड़ते-लड़ते मिसाल बन गए। साल 2013 में उन्होंने भूखे पेट, सिर्फ नमक-रोटी खाकर शाहजहांपुर से लखनऊ तक 180 किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय की। छह घंटे का यह सफर उन्हें सीधा मुख्यमंत्री के दरवाजे तक ले गया।

 

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राजेश यादव की कहानी:
राजेश यादव की कहानी: Photograph: ( वाईबीएन नेटवर्क )

 

पत्नी का सहारा बना संबल

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राजेश जब संघर्ष की राह पर चले तो उनके पास कुछ नहीं था। लेकिन एक चीज़ थी जो उन्हें बार-बार खड़ा करती रही उनकी पत्नी का विश्वास। कई बार घर में खाना नहीं था लेकिन पत्नी ने मुझे कहा तुम बस चलो, मैं संभाल लूंगी।इस एक वाक्य ने राजेश को थकने नहीं दिया।

थैले में थी सिर्फ नमक-रोटी, पैरों में था हौसला

1 मई 2013 की बात है। राजेश ने तय किया कि वो साइकिल रेस में भाग लेंगे। जेब में पैसे नहीं थे पेट में भरपेट खाना नहीं, फिर भी वो निकल पड़े। 6 घंटे में 180 किमी की दूरी तय करके जैसे ही लखनऊ पहुंचे, मुख्यमंत्री आवास की सुरक्षा में तैनात कर्मियों ने जब उनके सामान की तलाशी ली, तो थैले में सिर्फ कपड़े में लिपटी नमक-रोटी मिली। यह दृश्य सबकी आंखें नम कर गया।

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मुख्यमंत्री ने बुलाया, दिया सम्मान और सहारा

तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जब राजेश की मेहनत और संघर्ष से रूबरू हुए तो उन्होंने न सिर्फ सम्मानित किया, बल्कि एक आवास और एक एकड़ ज़मीन का पट्टा भी दिया। उस दिन झोपड़ी में रहने वाले राजेश को पहली बार अपनी मेहनत का इनाम मिला।

 

 

बेटे की पीड़ा ने दी पिता को फौलादी हिम्मत

राजेश के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा राज शारीरिक रूप से विकलांग है। राजेश बताते हैं कि जब उन्होंने अपने बेटे को पहली बार बिना सहारे खड़े होते देखा तो सारी थकान सब दुख मिट गया। बेटे ने मुझसे हिम्मत ली और मुझे उससे जीने का मकसद मिला राजेश की आंखें यह कहते हुए भर आती हैं।

अब भी जारी है जद्दोजहद, पर रुके नहीं हैं कदम

आज राजेश साइकिल रेस के प्रदेश स्तर के विजेता हैं लेकिन आजीविका के लिए ई-रिक्शा चलाते हैं। नाम मिला पहचान बनी लेकिन पेट पालने के लिए आज भी रोज़ सड़क पर निकलता हूं वे मुस्कराते हुए कहते हैं। वह आज भी सुबह-सुबह दंड-बैठक करते हैं दौड़ते हैं और युवाओं को साइकिल अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। साइकिल मेरा साधन नहीं मेरी साधना है उनका यह वाक्य आज के युवाओं को सोचने पर मजबूर कर देता है। राजेश यादव जैसे लोग साइकिल को सिर्फ चलाते नहीं उसे जीते हैं। वे बताते हैं साइकिल से मैंने नाम कमाया गरीबी को हराया और दुनिया को दिखाया कि अगर मन में इरादा हो तो रास्ते खुद बन जाते हैं।

विश्व विजेता बनने का सपना, जारी है संघर्ष

राजेश यादव का सपना है कि वे एक दिन भारत का नाम विश्व स्तर पर रोशन करें। 40 वर्ष की उम्र में जहाँ लोग जीवन की गति धीमी कर देते हैं वहीं राजेश आज भी प्रतिदिन दंड-बैठक दौड़ और अभ्यास में जुटे हैं। उनका कहना है अगर जज्बा हो तो कोई भी उम्र रास्ता नहीं रोक सकती।

राजेश यादव की कहानी:
राजेश यादव की कहानी: Photograph: ( वाईबीएन नेटवर्क )

 

गांव के युवाओं के लिए प्रेरणा

राजेश यादव आज गांव के युवाओं के लिए मिसाल बन चुके हैं। सीमित संसाधनों में भी उन्होंने यह साबित किया कि इच्छाशक्ति और मेहनत के दम पर कुछ भी संभव है। साइकिल दिवस पर राजेश का यह समर्पण उन सभी के लिए प्रेरणास्रोत है जो चुनौतियों से घबराते हैं।

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