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World Turtle Day: जानिए- शाहजहांपुर की दो खास बस्तियों की कहानी, पहरूआ में ग्रामीण पाल रहे ‘ कछुए’, फिरोजपुर में बन रही हैचरी

शाहजहांपुर के मिर्जापुर ब्लॉक के पहरूआ गांव में हजारों ‘कछुए’ ग्रामीण संरक्षण में पल रहे हैं, वहीं तिलहर के फिरोजपुर गांव में वन विभाग द्वारा हैचरी स्थापित कर नवजात कछुओं को सुरक्षित जीवन दिया जा रहा है।

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Ambrish Nayak
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Shahjahanpur news

Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

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शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता 

जल और थल दोनों में जीवन जीने वाले प्राचीनतम जीवों में शुमार कछुए जहां जल स्रोतों की सफाई और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं, वहीं आज उनका अस्तित्व संकट में है। विश्व कछुआ दिवस पर शाहजहांपुर से जुड़ी दो कहानियां उम्मीद की किरण बनकर सामने आई हैं। एक है मिर्जापुर ब्लॉक का पहरूआ गांव जहां ग्रामीणों की मेहनत और जिम्मेदारी से हजारों ‘ कछुए’ फल-फूल रहे हैं। दूसरी कहानी है तिलहर के फिरोजपुर गांव की जहां वन विभाग द्वारा हैचरी की स्थापना कर नवजात कछुओं को जीवन दिया जा रहा है।

पहरूआ: जहां तालाब बना बाहुबली कछुओं का घर

मिर्जापुर ब्लॉक के पहरूआ गांव के एक बड़े तालाब में पिछले दस वर्षों से कछुओं की आबादी लगातार बढ़ रही है। ग्रामीणों का दावा है कि यहां पांच हजार से अधिक कछुए हैं। इनका वजन 50 किलो से लेकर 1 क्विंटल तक पहुंच चुका है। यह कछुए 10 साल पहले बाढ़ में बहकर आए थे और यहीं बस गए। गांव वालों ने इन्हें संरक्षण दिया, दाना डाला और शिकारी से बचाया। अब यह तालाब इन कछुओं का स्थायी ठिकाना बन गया है। लोग इन्हें देखने दूर-दूर से आते हैं। जैसे ही कोई तालाब में दाना डालता है दर्जनों कछुए सतह पर आकर दृश्य को मनोहारी बना देते हैं।

फिरोजपुर हैचरी: कछुओं के नवजीवन की प्रयोगशाला

वहीं दूसरी ओर तिलहर ब्लॉक के फिरोजपुर गांव में वन विभाग और ग्राम पंचायत के संयुक्त प्रयास से एक हैचरी बनाई गई है। यहां कछुओं के अंडों को सुरक्षित वातावरण में रखा जाता है। अंडों से निकलने के बाद छोटे कछुओं को सुरक्षित जलाशयों में छोड़ा जाता है। यह हैचरी जिले में जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास है।

प्रभागीय वनाधिकारी डॉ. सुशील कुमार ने बताया कि विश्व वन्यजीव कोष और वन विभाग के संयुक्त प्रयासों से रामगंगा नदी के किनारे स्थित गांवों में कछुओं के लिए कई पहले की गई है अभी तक 1000 हजार यह कछुए छोड़े जा चुके है।  ‘जायनजेटिक सॉफ्टशेल टर्टल’ प्रजाति के हैं, जो मुलायम कवच वाले होते हैं। ये जलस्रोतों की जैविक सफाई में सहायक होते हैं। इनका संरक्षण न केवल पर्यावरण के लिए जरूरी है, बल्कि नदियों की स्वच्छता के लिए भी।

क्यों घट रही है कछुओं की संख्या?

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कछुए न केवल जैव विविधता को बनाए रखते हैं बल्कि जल स्रोतों की स्वच्छता में भी भूमिका निभाते हैं। इसके बावजूद अवैध शिकार प्राकृतिक आवास का क्षरण जल प्रदूषण जैसे कारणों से इनकी संख्या में गिरावट आई है। पहरूआ और फिरोजपुर गांवों में ग्रामीणों की निःस्वार्थ भागीदारी के बल पर कछुओं का संरक्षण हो रहा है लेकिन सरकारी हस्तक्षेप और संसाधनों की अभी भी कमी है। ग्रामीणों की मांग है कि इन दोनों स्थलों को कछुआ संरक्षण क्षेत्र घोषित किया जाए और तालाबों की सफाई का कार्य तत्काल शुरू हो।

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