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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: राजस्थान के उदयपुर जिले के झाड़ोल क्षेत्र से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने सरकारी जनसंख्या नियंत्रण अभियान की सच्चाई उजागर कर दी है। आदिवासी अंचल में रहने वाली 55 वर्षीय रेखा कालबेलिया ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में अपनी 17वीं संतान को जन्म दिया है। यह घटना उस समय चर्चा में आई जब अस्पताल स्टाफ को पहले बताया गया कि यह उनकी चौथी संतान है, लेकिन बाद में सच्चाई सामने आने पर सभी हैरान रह गए।
मां बनने वाली महिला के बच्चों की हो चुकी है शादी
रेखा के अब तक 17 बच्चे हो चुके हैं, जिनमें से 5 (चार बेटे और एक बेटी) की मौत जन्म के कुछ समय बाद हो गई थी। उनके पांच बच्चे अब शादीशुदा हैं और उनके खुद के भी बच्चे हैं। रेखा के पति कवरा कालबेलिया ने बताया कि उनके पास अपना मकान नहीं है और वे भंगार (कबाड़) बीनकर किसी तरह जीवन यापन कर रहे हैं। बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए उन्हें साहूकार से 20% ब्याज पर कर्ज लेना पड़ा, जिसमें लाखों रुपये चुका देने के बावजूद अब तक पूरा ब्याज नहीं चुका पाए हैं।
चिकित्सक बोले- दी जाएगी नसबंदी की सलाह
शिक्षा और आवास जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित यह परिवार अब भी सरकारी योजनाओं के लाभ से पूरी तरह जुड़ नहीं सका है। पीएम आवास योजना के तहत उन्हें मकान आवंटित तो हुआ था, लेकिन ज़मीन के मालिकाना हक के अभाव में वे आज भी बेघर हैं। उनके बच्चे स्कूल तक नहीं जा सके। झाड़ोल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रोशन दरांगी ने बताया कि अब रेखा और उनके पति को नसबंदी की प्रक्रिया के बारे में समझाया जाएगा, ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति से बचा जा सके। यह मामला न केवल सरकारी जागरूकता अभियानों की जमीनी हकीकत को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि जब तक आदिवासी और पिछड़े इलाकों का समग्र विकास नहीं किया जाएगा, तब तक देश का विकास केवल आंकड़ों तक सीमित रहेगा।
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