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Bihar Election: 'स्ट्राइक रेट' के इर्द-गिर्द घूम रहा महागठबंधन का सीट बंटवारा

बिहार की राजनीति में चुनावी हलचल तेज हो गई है। खास बात ये है कि महागठबंधन में इस बार फैसला पुराने फॉर्मूलों पर नहीं, बल्कि ‘स्ट्राइक रेट’ के आधार पर लिया जा सकता है। यानी पिछली बार किस पार्टी ने कितनी सीटों पर चुनाव लड़ा और उसमें से कितनी सीटें जीत पाई।

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Vibhoo Mishra
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पटना, वाईबीएन नेटवर्क। बिहार की राजनीति में चुनावी हलचल तेज हो गई है और महागठबंधन की एक बेहद अहम बैठक आज पटना में हो रही है। इस बार का पूरा खेल सीटों के बंटवारे को लेकर है, और खास बात ये है कि इस बार फैसला पुराने फॉर्मूलों पर नहीं, बल्कि ‘स्ट्राइक रेट’ के आधार पर लिया जा रहा है। यानी पिछली बार किस पार्टी ने कितनी सीटों पर चुनाव लड़ा और उसमें से कितनी सीटें जीत पाई, उसी हिसाब से इस बार हिस्सेदारी तय की जाएगी। 2020 के विधानसभा चुनावों में राजद सबसे बड़ी पार्टी थी, जिसने सबसे ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा और अच्छा प्रदर्शन भी किया। कांग्रेस को तब 70 सीटें मिली थीं, लेकिन वो सिर्फ 19 सीटें ही जीत सकी थी, जिससे उसका स्ट्राइक रेट केवल 27% रहा। इसके उलट वामपंथी दलों (माले, सीपीआई, सीपीएम) ने 29 सीटों में से 16 पर जीत दर्ज की, और उनका स्ट्राइक रेट करीब 55% रहा। यही कारण है कि इस बार कांग्रेस को पिछली बार की तुलना में कम सीटें दी जा सकती हैं, जबकि वाम दलों की हिस्सेदारी बढ़ने की संभावना है।

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बैठक में ये-ये दल शामिल 

आज की बैठक में राजद, कांग्रेस, वामपंथी दलों के अलावा मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी और पशुपति पारस की पार्टी भी शामिल है। तेजस्वी यादव खुद इस बैठक की अगुवाई कर रहे हैं, और माना जा रहा है कि वे जल्द से जल्द खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करवाना चाहते हैं। महागठबंधन में इस बार का समीकरण और भी जटिल हो गया है क्योंकि इसमें अब INDIA गठबंधन की छाया भी नजर आ रही है। यानी सिर्फ बिहार के आधार पर नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर की राजनीति भी अब इस बंटवारे को प्रभावित कर रही है। बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय नेतृत्व की तरफ से भी सलाह दी गई है कि “विजेता को प्राथमिकता” दी जाए, यानी जिस पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा है, उसे ज़्यादा सीटें मिलें।

जातीय समीकरणों की विशेष भूमिका 

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जातीय समीकरण भी इस पूरी प्रक्रिया में एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। बिहार की राजनीति में यादव, कुशवाहा, मुस्लिम, दलित, महादलित और सवर्ण वोटों की भूमिका हमेशा से निर्णायक रही है, इसलिए सीटों का बंटवारा करते समय इन जातीय समूहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर फैसला लिया जा रहा है। कांग्रेस इस बार मुस्लिम, दलित और सवर्ण वोटरों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है, वहीं मुकेश सहनी निषाद समुदाय को साधने की कोशिश में लगे हैं। सहनी ने जहां 60 सीटों की मांग रखी है और उपमुख्यमंत्री पद भी चाहा है, वहीं उनके प्रदर्शन को लेकर महागठबंधन में कुछ संदेह भी हैं, इसलिए उन्हें करीब 10-12 सीटें ही मिल सकती हैं। दूसरी ओर, पशुपति पारस भी अपनी जातीय पकड़ के आधार पर 10-15 सीटों की मांग कर सकते हैं, लेकिन उन्हें भी सीमित हिस्सेदारी ही मिलेगी।

झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी जगह 

महागठबंधन की रणनीति में यह भी शामिल है कि झारखंड से सटे जिलों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के लिए कुछ सीटें छोड़ी जाएं, ताकि सीमावर्ती इलाकों में पार्टी की पकड़ बढ़ सके। एक नया नाम जो इस बार चर्चा में है, वह है एसपी गुप्ता का। हाल ही में गांधी मैदान में हुई उनकी बड़ी रैली ने उन्हें चर्चा में ला दिया है और महागठबंधन उन्हें भी अपने साथ लाने पर विचार कर रहा है। वे युवाओं में लोकप्रिय हैं और उनके पीछे भी एक खास जातिगत समर्थन है, जिससे उन्हें कुछ सीटें दी जा सकती हैं।

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कौन कितनी सीट मांग रहा 

सूत्रों के अनुसार, राजद करीब 135 सीटों की मांग कर रही है, जबकि कांग्रेस को 45-50 सीटों पर सीमित किया जा सकता है। कांग्रेस हालांकि 70 सीटों से कम पर मानने को तैयार नहीं है। वाम दल अपने पिछले अच्छे प्रदर्शन के दम पर 35-40 सीटों की मांग कर रहे हैं। इस बैठक के बाद संभव है कि एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए सीटों के बंटवारे और मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर आधिकारिक ऐलान कर दिया जाए, हालांकि पूरी सहमति बनने तक कुछ और दौर की बातचीत भी हो सकती है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो बिहार का ये चुनाव सिर्फ राजनीतिक गठजोड़ का मामला नहीं रह गया है, बल्कि यह समझदारी, रणनीति और संतुलन का इम्तिहान है। स्ट्राइक रेट के आधार पर सीट बंटवारा सिर्फ नंबरों का खेल नहीं है, बल्कि यह तय करेगा कि चुनावी मैदान में कौन कितनी ताकत और दावेदारी के साथ उतरता है। आज की बैठक इस दिशा में पहला और निर्णायक कदम साबित हो सकती है।

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