नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क | दिल्ली उच्च न्यायालय ने पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज एक मामले में आरोपी युवक को सामुदायिक सेवा का आदेश देते हुए उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द कर दी है। न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने आरोपी को दिल्ली के लोक नायक जयप्रकाश नारायण (LNJP) अस्पताल में एक महीने की सामुदायिक सेवा करने और ‘युद्ध हताहत सेना कल्याण कोष’ में 50,000 रुपये जमा कराने का निर्देश दिया।
क्या था मामला?
आरोप है कि युवक ने एक नाबालिग स्कूली छात्रा से पैसे की मांग की और जब उसने इनकार किया, तो उसे उसकी निजी तस्वीरें सोशल मीडिया पर सार्वजनिक करने की धमकी दी। अदालत ने आरोपी के इस व्यवहार को "डिजिटल मंच के गंभीर दुरुपयोग" और "सहमति व निजता के प्रति चिंताजनक अनादर" बताया।
अदालत की टिप्पणी
जस्टिस नरूला ने कहा कि मामला गंभीर था और इसमें एक नाबालिग लड़की का शोषण शामिल था। यह सोशल मीडिया के ऐसे पहलुओं को उजागर करता है जहां तकनीक का इस्तेमाल डर फैलाने और गरिमा को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है। हालांकि, अदालत ने कहा कि पीड़िता ने इस घटना से आगे बढ़ने की इच्छा जाहिर की है और लंबी कानूनी प्रक्रिया उसके भविष्य और सामाजिक स्थिति पर प्रतिकूल असर डाल सकती है।
अदालत ने क्या कहा?
अदालत ने अपने फैसले में लिखा, "शिकायतकर्ता ने स्पष्ट रूप से इस स्थिति से आगे बढ़ने की इच्छा व्यक्त की है, तथा इस आपराधिक मामले के लंबित रहने से उस पर पड़ने वाले सामाजिक और भावनात्मक बोझ का जिक्र किया है, विशेष रूप से उसके विवाह सहित भविष्य की संभावनाओं के संदर्भ में।" प्राथमिकी को रद्द करते हुए कोर्ट ने आरोपी को सामुदायिक सेवा के जरिए जवाबदेही और आत्मचिंतन करने का मौका देने की बात कही। कोर्ट ने उसे आदेश दिया कि वह जून माह में LNJP अस्पताल में सेवा पूरी करने के बाद रजिस्ट्री में प्रमाण पत्र दाखिल करे।
Delhi high court