/young-bharat-news/media/media_files/2025/08/12/supreme-court-of-india-1-2025-08-12-16-33-21.jpg)
Photograph: (IANS)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: हिमाचल प्रदेश में तेजी से बिगड़ते पर्यावरणीय संतुलन और पारिस्थितिक असंतुलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जताई है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई कर रही है।
न्याय मित्र की होगी नियुक्ति
अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए न्याय मित्र (Amicus Curiae) नियुक्त करने का निर्णय लिया है। यह न्याय मित्र अदालत को निष्पक्ष रूप से पर्यावरण से जुड़ी परिस्थितियों, तथ्यों और विशेषज्ञता के आधार पर आवश्यक जानकारी देगा और सुनवाई में सहयोग करेगा। सोमवार को हिमाचल प्रदेश के एडवोकेट जनरल और अतिरिक्त एडवोकेट जनरल ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने 23 अगस्त कोपर्यावरणीय हालात पर रिपोर्ट सौंप दी है। इसके बाद पीठ ने अगली सुनवाई चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दी, लेकिन यह साफ कहा कि राज्य के हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं।
‘हरित क्षेत्र’ घोषित इलाकों पर विवाद
हिमाचल सरकार ने जून 2025 में कुछ संवेदनशील क्षेत्रों को ‘हरित क्षेत्र’ घोषित कर वहां निर्माण कार्य पर रोक लगा दी थी। हालांकि,इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी, जहां से याचिका को खारिज कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने फिर इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 28 जुलाई को जस्टिस जेपी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने इस पर सुनवाई करते हुए चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगर हालात नहीं सुधरे तो हिमाचल प्रदेश एक दिन हल्की सी हवा में उड़ जाएगा। पीठ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव यहां साफ नजर आ रहा है।
विकास कार्यों पर सवाल
- कोर्ट ने कहा कि विभिन्न विशेषज्ञों के मुताबिक राज्य में प्राकृतिक आपदाओं की एक बड़ी वजह हैं:
- हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स
- चार लेन हाईवे का निर्माण
- बहुमंजिला इमारतें
- बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई।
- हिमालयी क्षेत्र में विवेकपूर्ण निर्माण की जरूरत
भू-विज्ञानियों की सलाह लेना बेहद जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हिमालय की गोद में बसे हिमाचल जैसे संवेदनशील राज्य में कोई भी निर्माण कार्य शुरू करने से पहले भू-विज्ञानियों और विशेषज्ञों की सलाह लेना बेहद जरूरी है। अदालत ने राज्य में बेतरतीब पर्यटन गतिविधियों को भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला करार दिया और कहा कि बिना योजनाबद्ध विकास राज्य के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार से भी अपील की है कि वह राज्य सरकारों के साथ समन्वय बनाकर इस मुद्दे पर ठोस और दीर्घकालिक नीति बनाए। supreme court cbse | environment | himachal pradesh