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झारखंड के क्षेत्रीय गायक-गीतकार महावीर नायक राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री से सम्मानित

महावीर नायक ने झारखंड के गांवों-गलियों, चौपालों, क्षेत्रीय संस्कृति के विविध मंचों से लेकर विदेशों तक में अपने फन का जलवा दिखाया है। वह झारखंड की नागपुरी भाषा-संस्कृति में ‘भिनसरिया कर राजा’ के नाम से मशहूर रहे हैं। 

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Mukesh Pandit
Mahaveer Nayak
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रांची, आईएएनएस। झारखंड की क्षेत्रीय भाषा नागपुरी के गायक-गीतकार 82 वर्षीय महावीर नायक ने मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों पद्मश्री सम्मान प्राप्त किया। उन्होंने समाचार एजेंसी आईएएनएस से फोन पर कहा, “यह सम्मान अपने दिवंगत पिता-दादा और क्षेत्रीय नागपुरी भाषा के तमाम कलाकारों को समर्पित करता हूं। यह मुझसे ज्यादा यहां की मधुर संस्कृति का सम्मान है।” 

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‘भिनसरिया कर राजा’ 

महावीर नायक ने झारखंड के गांवों-गलियों, चौपालों, क्षेत्रीय संस्कृति के विविध मंचों से लेकर विदेशों तक में अपने फन का जलवा दिखाया है। वह झारखंड की नागपुरी भाषा-संस्कृति में ‘भिनसरिया कर राजा’ (सुबह का राजा) के नाम से मशहूर रहे हैं। दरअसल, यह एक राग है, जो एकदम सुबह-सुबह गाया जाता है। रात भर अखरा या मंच पर जब लोग नाच-गान कर थक जाते, तब भिनसहरे (सुबह) वह यह राग गाते और लोगों को घंटों बांधे रखते थे।

नागपुरी भाषा में पांच हजार से अधिक गीतों का संकलन किया 

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रांची के कांके क्षेत्र के उरूगुटु गांव में 24 नवंबर 1942 को जन्मे महावीर नायक ने नागपुरी भाषा में पांच हजार से अधिक गीतों का संकलन किया है, जबकि 300 से भी ज्यादा गीतों की रचना उन्होंने खुद की है। इसके पहले भारत सरकार के संगीत नाटक अकादमी की ओर से 2023 में उन्हें अमृत अवार्ड से नवाजा जा चुका है। यह पुरस्कार उन्होंने उपराष्ट्रपति के हाथों प्राप्त किया था। इसके अलावा क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न संस्थाओं-निकायों की ओर से उन्हें कई सम्मान और पुरस्कार हासिल हुए हैं।

पत्रिकाओं ‘डहर’ व ‘कला संगम’के सहयोगी संपादक रहे

महावीर नायक के गीतों का पहला संकलन 1962 में आया। वह क्षेत्रीय संस्कृति-भाषा की पत्रिकाओं ‘डहर’ और ‘कला संगम’ के सहयोगी संपादक भी रहे। साल 1992 में वह नागपुरी क्षेत्रीय कला दल के साथ कला का प्रदर्शन करने ताइवान गए थे। पद्मश्री रामदयाल मुंडा और पद्मश्री मुकुंद नायक 20 कलाकारों के दल की अगुवाई कर रहे थे। 1980 के दशक से आकाशवाणी और दूरदर्शन से उनका जुड़ाव रहा। 1993 में गीतों पर उनकी एक और किताब ‘नागपुरी गीत दर्पण’ प्रकाशित हुई।

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वर्ष 2002 में संगीत नाटक अकादमी से जुड़े

रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के अलावा 20 से भी ज्यादा सांस्कृतिक संस्थाओं के संचालन में उनकी सक्रिय भागीदारी रही। वर्ष 2002 में संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली की ओर से आयोजित कार्यशाला में उन्होंने प्रशिक्षक के रूप में योगदान दिया। उन्होंने 1959 से 1961 तक एक स्कूल में शिक्षक के तौर पर काम किया। बाद में जब रांची में सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम एचईसी (हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन) स्थापित हुआ तो उन्हें यहां नौकरी मिल गई। वह 2001 में सेवानिवृत्त हुए। नौकरी में रहते हुए और नौकरी के बाद भी नागपुरी गीत-संगीत उनकी धड़कनों में बसा रहा।

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