नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क
उच्चतम न्यायालयने गुजरात में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के एक मामले में शुक्रवार, 21 मार्च को छह लोगों को बरी कर दिया और कहा कि सामूहिक झड़पों के मामलों में यह सुनिश्चित करना अदालतों का कर्तव्य है कि किसी भी प्रत्यक्षदर्शी को दोषी नहीं ठहराया जाए।
भरोसा करने में ‘सावधानी’ बरतनी चाहिए
न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि दंगों के ऐसे मामलों में, जिनमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हों, अदालतों को उन गवाहों की गवाही पर भरोसा करने में ‘सावधानी’ बरतनी चाहिए, जिन्होंने आरोपियों या उनकी भूमिकाओं का विशेष संदर्भ दिए बिना सामान्य बयान दिए हों।
गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को पलटा
बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने मामले में 6 लोगों को बरी कर गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया है। गोधरा कांड मामले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए 6 लोगों को दोषी ठहराया था और 12 लोगों को बरी किया था। अभियोजन पक्ष का कहना था कि 28 फरवरी, 2002 को गांव में दंगा हुआ, जिसमें सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा था और पुलिस की कई गाड़ियां तोड़ी गई थी।
उन्हीं को दोषी ठहराए जिनके खिलाफ सबूत हैं
मामले में अदालत का कहना है कि झगड़े जब होते हैं तो बहुत लोग शामिल होते हैं। अदालतों का कर्तव्य है कि कोई निर्दोष व्यक्ति सजा न पाए। कोर्ट ने कहा कि कई बार, खासकर जब घटना सार्वजनिक जगह पर होती है, तो लोग उत्सुकता में अपने घरों से बाहर निकलते हैं। लोग सिर्फ देखने के लिए होते हैं, लेकिन गवाहों को लग सकता है कि वे दंगाई हैं। इसलिए सावधानी के साथ केवल उन्हीं को दोषी ठहराए जिनके खिलाफ सबूत हैं।