इलाहाबाद, वाईबीएन नेटवर्क।
मस्जिद पर लगे लाउडस्पीकर और उसके आवाज को लेकर देश के अलग -अलग हिस्से में समय -समय पर विचार -विमर्श साथ ही बवाल होता आया है। फिलहाल मामले उत्तर प्रदेश से जुड़ा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक रिट याचिका खारिज कर दी, जिसमें राज्य अधिकारियों से मस्जिद पर लाउडस्पीकर लगाने की इजाजत मांगी गई थी। कोर्ट ने इस याचिका को ये कहते हुए खारिज किया कि धार्मिक स्थलों का असली मकसद प्रार्थना करना है, लाउडस्पीकर का इस्तेमाल अधिकार का विषय नहीं हो सकता।
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दो सदस्यीय बेंच ने खारिज की याचिका
बता दें ये याचिका पीलीभीत के रहने वाले मुख्तियार अहमद ने दाखिल की थी। याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट की जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्रा और जस्टिस डोनाडी रमेश की दो सदस्यीय बेंच ने खारिज कर दिया। बेंच ने कहा, "धार्मिक स्थान प्रार्थना के लिए होते हैं और लाउडस्पीकर का इस्तेमाल अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता, खासकर जब इसका इस्तेमाल अक्सर लोगों के लिए परेशानी का सबब बनता है।" याचिका खारिज करने की एक वजह और है और वो है 'लोकस'। बता दें लोकस एक कानूनी टर्म है, जो किसी भी आदमी या संस्था के किसी कानूनी कार्यवाही के लिए, मुकदमा दायर करने के अधिकार को दिखाती है। लाउडस्पीकर लगाने की मांग को लेकर जिस पीलीभीत के रहने वाले मुख्तियार अहमद ने याचिका दायर की थी, वो ना तो मुतवल्ली (संपत्ति या संस्था का संरक्षक) है और न ही मस्जिद उसकी है। जिसके बाद अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता के पास याचिका दायर करने के लिए लोकस नहीं है।
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लाउडस्पीकर पर गुजरात हाईकोर्ट का स्टैंड
गुजरात हाईकोर्ट ने नवंबर 2023 में कहा था कि मस्जिदों में अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करने से नॉइस पॉल्यूशन नहीं होता है। साथ ही, इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया था। तब गुजरात हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और जस्टिस अनिरुद्ध पी माई की बेंच ने याचिका को "पूरी तरह से गलत" करार देते हुए कहा था, "हम यह समझने में विफल हैं कि सुबह लाउडस्पीकर के जरिए अजान देने वाली मानवीय आवाज नॉइस पॉल्यूशन पैदा करने के स्तर तक कैसे पहुंच सकती है, जिससे आम लोगों के लिए स्वास्थ्य संबंधी खतरा पैदा हो सकता है।
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लाउडस्पीकर पर बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख
24 जनवरी, 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने मस्जिद पर लगने वाले लाउडस्पीकर को लेकर सख्त रुख अपनाया। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। अदालत ने इसी के साथ कानून प्रवर्तन एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे ध्वनि प्रदूषण के मानदंडों और नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करें।