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Bijnor News: जब साली ने जीजा का चुराया जूता... फिर दूल्हे राजा का रिएक्शन जान दंग रह जाएंगे!

देहरादून से आए दूल्हे साबिर की शादी में जूता चुराई की परंपरा विवाद में बदल गई जब साली ने जूते के लिए रुपये मांगे और दूल्हे ने रुपये ही दिए।

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Ajit Kumar Pandey
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BIJNOR NEWS

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बिजनौर, वाईबीएन नेटवर्क।

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uttar pradesh update | uttar pradesh ki news | शादियों का मौसम हो और दूल्हा-दुल्हन की जोड़ी सात फेरों के बंधन में बंधने वाली हो, तो ऐसे में खुशियों के साथ-साथ कुछ रस्में भी होती हैं जो मजाक और मस्ती का हिस्सा होती हैं। लेकिन कभी-कभी यही मस्ती गंभीर विवाद में बदल जाती है।

कुछ ऐसा ही हुआ देहरादून से आए दूल्हे साबिर के साथ, जब उनकी साली ने जूता छुपाने की रस्म को लेकर ₹50,000 की मांग रख दी। मोल-तोल के बाद जब दूल्हे ने सिर्फ ₹5,000 दिए, तो किसी ने उन्हें "भिखारी" कह दिया।

 Groom : यहीं से शुरू हुई एक ऐसी कहानी जिसमें दूल्हे ने दुल्हन को ले जाने से इनकार कर दिया, बारातियों को बंधक बना लिया गया, और पुलिस को बीच-बचाव करना पड़ा।

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देहरादून से आया था दूल्हा, ब्याहने आई थी बारात

देहरादून के रहने वाले साबिर अपने परिवार और दोस्तों के साथ बिजनौर पहुंचे थे ताकि वह अपनी दुल्हन को ब्याह कर ले जा सकें। शादी की सभी रस्में पूरी हो चुकी थीं, और अब बस जूता छुपाने (जूता चुराई) की परंपरा निभानी बाकी थी। यह रस्म उत्तर भारत की शादियों में काफी प्रचलित है, जिसमें दूल्हे के जूते छुपा दिए जाते हैं और फिर उन्हें वापस लेने के लिए दूल्हे से पैसे मांगे जाते हैं।

साली ने मांगे ₹50,000, दूल्हे ने दिए सिर्फ ₹5,000

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जब दुल्हन की बहन (साली) और उसकी सहेलियों ने दूल्हे के जूते छुपाए, तो उन्होंने ₹50,000 की मांग रखी। दूल्हे साबिर ने इसे ज्यादा बताते हुए मोल-तोल किया और अंत में सिर्फ ₹5,000 देने पर सहमति जताई। यहीं से मामला गर्माने लगा।

"भिखारी" शब्द ने लगाई आग

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जब दूल्हे ने ₹5,000 दिए, तो किसी ने उन्हें "भिखारी" कह दिया। यह शब्द सुनते ही दूल्हे साबिर आगबबूला हो गए। उन्होंने दुल्हन को साथ ले जाने से साफ इनकार कर दिया और बारात वापस लौटने की तैयारी करने लगे।

दुल्हन के परिवार ने बारात को बंधक बना लिया

दूल्हे के इनकार के बाद दुल्हन के परिवार वालों ने गुस्से में आकर गुंडों को बुला लिया। बारातियों को घर में ही बंद कर दिया गया। दूल्हे के पिता, दादा, भाई और अन्य रिश्तेदारों को मारपीट की गई। घंटों तक बारातियों को बंधक बनाकर रखा गया।

पुलिस ने दखल देकर कराया समझौता

जब स्थिति हाथ से निकलने लगी, तो पुलिस को बुलाया गया। पुलिस ने आकर दोनों पक्षों के बीच बातचीत कराई और दूल्हे साबिर व उनके परिवार को सुरक्षित बाहर निकाला। अब दूल्हे थाने पहुंचकर अपने ऊपर हुए जुल्म की शिकायत दर्ज करा रहे हैं।

जूता चुराई की परंपरा : मस्ती या मजबूरी ?

उत्तर भारत में जूता छुपाने की परंपरा काफी पुरानी है। इसमें दूल्हे के जूते छुपाकर उससे मनचाही रकम मांगी जाती है। यह एक मजाकिया रिवाज माना जाता है, लेकिन कई बार यह हद से ज्यादा बढ़ जाता है।

क्यों बिगड़ जाते हैं मामले?

अत्यधिक पैसों की मांग: कई बार दुल्हन की तरफ से इतनी ज्यादा रकम मांग ली जाती है कि दूल्हा तंग आ जाता है।

अपमानजनक टिप्पणियां: "भिखारी" जैसे शब्दों का इस्तेमाल विवाद को हिंसक बना देता है।

हिंसक प्रतिक्रिया: जब बात बिगड़ती है, तो कुछ लोग गुंडागर्दी का रास्ता अपना लेते हैं।

पुलिस और प्रशासन की भूमिका

इस मामले में पुलिस ने समय रहते हस्तक्षेप करके स्थिति को बिगड़ने से बचाया। हालांकि, अब दूल्हे ने थाने में केस दर्ज कराया है, जिसमें दुल्हन के परिवार पर हमला और बंधक बनाने के आरोप लगाए गए हैं।

क्या कहता है भारतीय कानून ?

धारा 342 (गलत तरीके से बंधक बनाना): अगर किसी को जबरन रोका जाए, तो यह अपराध है।

धारा 323 (मारपीट): अगर किसी को शारीरिक नुकसान पहुंचाया जाए, तो यह दंडनीय है।

धारा 504 (अपमानजनक टिप्पणी): अगर कोई अपमानजनक बोलकर विवाद फैलाए।

शादी की रस्में या दबाव का तरीका ?

यह घटना एक बार फिर सवाल खड़ा करती है कि क्या शादी की रस्में मजाक और खुशियों तक ही सीमित रहनी चाहिए या फिर इन्हें दबाव बनाने के तरीके के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए ? जूता छुपाने जैसी परंपराएं तभी तक अच्छी हैं, जब तक वे मस्ती और हंसी-ठिठोली का हिस्सा बनी रहें। जब ये जबरदस्ती और हिंसा का रूप ले लें, तो यह पूरी शादी की खुशियों को बर्बाद कर देती हैं।

अब देखना यह है कि पुलिस इस मामले में क्या कार्रवाई करती है और क्या दूल्हा-दुल्हन के बीच यह विवाद सुलझ पाएगा या फिर यह शादी टूटने तक जाएगी।

शादी जैसे पवित्र बंधन में पैसों और अहंकार की लड़ाई कहां तक जायज है ? क्या हम परंपराओं को इतना महत्व देकर रिश्तों को खत्म करने लगे हैं ? यह मामला सभी के लिए एक सबक है कि शादी की रस्में खुशियों का हिस्सा होनी चाहिए, न कि विवाद का कारण।

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