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Uttarkashi: आपदाओं की मार झेलता सीमांत जिला, फिर भी लापरवाह है सिस्टम

उत्तरकाशी भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाओं के लिए बेहद संवेदनशील है। विशेषज्ञों ने चेताया कि 1750 जैसी त्रासदी दोहराई जा सकती है। जानिए पूरी रिपोर्ट।

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Dhiraj Dhillon
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। Uttarakhand News:उत्तराखंड का सीमांत जिला उत्तरकाशी भौगोलिक रूप से अत्यंत संवेदनशील है। इतिहास गवाह है कि यह इलाका भूकंप, बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं से लगातार जूझता रहा है। वर्ष 1750 की आपदा इसका बड़ा उदाहरण है, जब एक पहाड़ी टूटकर भागीरथी नदी में गिर गई थी और 14 किलोमीटर लंबी झील बन गई थी, जिसमें तीन गांव समा गए थे।

भूवैज्ञानिकों की चेतावनी: इतिहास दोहराने के आसार

गढ़वाल विश्वविद्यालय के भू विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट बताते हैं कि वर्ष 1750 में हर्षिल के पास झाला क्षेत्र में "अवांड़ा का डांडा" नाम की पहाड़ी लगभग 2000 मीटर की ऊंचाई से टूटकर सुक्की गांव के नीचे भागीरथी नदी में समा गई थी। इससे नदी का प्रवाह बाधित हुआ और झाला से जांगला तक लंबी झील बनी। उनका कहना है कि हर्षिल और धराली में सेना के कैंप पुराने ग्लेशियर एवलांच जोन के नज़दीक स्थित हैं, जो खतरे को और बढ़ाते हैं।
आज भी पहाड़ियों पर जमा ग्लेशियर मलबा बरसात के दौरान आपदा को न्यौता देता है, लेकिन दुर्भाग्यवश सरकार इस ओर गंभीर नहीं है। लगातार असुरक्षित स्थानों पर निर्माण और बसावट हो रही है।

केदारताल: गंगोत्री पर मंडरा रहा खतरा

प्रो. बिष्ट के अनुसार गंगोत्री ग्लेशियर के समीप केदारताल नाम की एक झील लगातार बढ़ रही है, जो भविष्य में बड़ा खतरा बन सकती है। उन्होंने 2019 से सैटेलाइट डेटा के जरिए झील की स्थिति पर नजर बनाए रखी है। वे पहले उत्तराखंड स्पेस यूज़ सेंटर (यूसर्क) के निदेशक भी रह चुके हैं और ग्लेशियर जनित झीलों पर विशेषज्ञ माने जाते हैं। विज्ञानियों की स्पष्ट चेतावनियों के बावजूद सरकारी तंत्र आपदा प्रबंधन को लेकर लापरवाह बना हुआ है। यदि समय रहते कदम न उठाए गए, तो उत्तरकाशी जैसे संवेदनशील इलाके में भविष्य में भीषण त्रासदी से इनकार नहीं किया जा सकता।

उत्तराखंड में बढ़ रही हैं अतिवृष्टि और बादल फटने की घटनाएं

वरिष्ठ भू वैज्ञानिक डॉ. यशपाल सुंद्रियाल के अनुसार लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान की 500 वर्षों की रिपोर्ट में स्पष्ट हुआ है कि उत्तराखंड में बारिश घट रही है लेकिन बादल फटने और भारी वर्षा की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिसका कारण ग्लोबल वॉर्मिंग है। उन्होंने बताया कि 1978 में डबरानी के पास बादल फटने से झील बनी थी और उसके टूटने से भागीरथी में बाढ़ आ गई थी, जिससे उत्तरकाशी का जोशियाड़ा क्षेत्र तबाह हो गया था। 1998 के बाद गढ़वाल में कई बड़ी आपदाएं आ चुकी हैं, फिर भी सरकार की गंभीरता नदारद है। फ्लड प्लेन पर होटल और रिजॉर्ट्स बन रहे हैं, पर रोक नहीं लगाई जा रही। cloud burst | Uttarkashi Natural Disaster | Uttarkashi Rain Alert| 



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